बदायूं महोत्सव को लेकर अधिकाँश लोगों की समझ में यह बात नहीं आ रही कि महोत्सव के नाम पर जिले भर में खुलेआम लूट हो रही है, साथ ही अधिकाँश लोग महोत्सव आयोजन करने के पक्ष में नहीं हैं, तो प्रशासन महोत्सव का आयोजन जबरन क्यूं करा रहा है। भ्रष्टाचार और मनमानी को लेकर तमाम स्वयं सेवी संगठनों के सभ्रांत लोग धरने पर बैठे हैं, इसके बावजूद प्रशासन ने आयोजकों को लूट की खुली छूट दे रखी है।
उल्लेखनीय है कि बदायूं महोत्सव के नाम पर चंद लोग खुद की ब्रांडिंग का काम करते रहे हैं, साथ ही महोत्सव के नाम पर शासन-प्रशासन की मदद का खुला दुरूपयोग भी करते रहे हैं। महोत्सव के नाम पर लाखों रूपये का चंदा एकत्रित किया जाता है, लेकिन उसकी रसीद जारी नहीं की जाती और न ही चंदे में मिला रुपया खाते में जमा किया जाता है। सीधे उगाही कर अधिकाँश रूपये का सीधा खर्च दिखा दिया जाता है, जिसका कोई लेखा-जोखा नहीं रहता, इसलिए लाखों रूपये हड़प लिए जाते हैं, इसके अलावा मंच और वीआईपी गैलरी में अपने चहेतों को ही स्थान दिया जाता है, जिसको लेकर अधिकांश लोगों में आक्रोश रहता है, लेकिन शासन-प्रशासन का खुला सरंक्षण होने के कारण लोग चुप रह जाते हैं, पर इस बार भी मनमानी और लूट खुलेआम हो रही है।जिले भर में घूम-घूम कर तमाम लोग चंदे के नाम पर वसूली कर रहे हैं। चूँकि डीएम चन्द्रप्रकाश त्रिपाठी का खुला संरक्षण मिला हुआ है, जिससे प्रधान व कोटेदार दहशत में रूपये दे रहे हैं, वहीं बड़े नेताओं के नाम पर बड़े व्यापारियों से भी वसूली की जा रही है, जिसकी कोई रसीद नहीं दी जा रही है, तो धन के लेखा-जोखा का सवाल ही नहीं उठता। इसी तरह की मनमानी और लूट को लेकर जिले भर के हजारों लोग चाहते हैं कि महोत्सव का आयोजन न हो, साथ ही तमाम सभ्रांत लोग धरने पर बैठे हैं, लेकिन प्रशासन उनकी मांग पर ध्यान तक नहीं दे रहा है। सूत्रों का कहना है कि आयोजकों के लिए कुछ सत्ताधीशों का खुला संरक्षण मिला हुआ है और अगर, यह सही है, तो इसका असर आने वाले चुनाव में साफ़ नज़र आयेगा।
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