बदायूं में जिलाधिकारी के पद की गरिमा शून्य पर पहुँच गई है। भ्रष्टाचार का खेल खुलेआम चल रहा है। जातिवाद चरम पर है, लेकिन यह सब कारनामे खुद की ब्रांडिंग के सहारे प्रोन्नत जिलाधिकारी चन्द्रप्रकाश त्रिपाठी दबाए हुए हैं, जबकि जनता हाहाकार कर रही है। चमचागीरी के चलते सत्ताधारी शीर्ष नेता सब कुछ जानते हुए भी मूक दर्शक बने हुए हैं।
बात पूर्ति विभाग से शुरू करते हैं। एक महीने का केरोसिन लगातार ब्लैक हो रहा है। ग्रामीणों को तीन महीने में एक बार तेल नसीब होता है। आंगनवाणी केंद्र सिर्फ कागजों में ही चल रहे हैं। पीडब्ल्यूडी भ्रष्टाचार के नये कीर्तिमान बना रहा है। डीआरडीए, आरईएस, डूडा, जल निगम और नल कूप विभाग कमीशनखोरी में पिछले रिकॉर्ड ध्वस्त करते नज़र आ रहे हैं। सफाई कर्मचारी अन्य अफसरों की तो बात ही छोड़िये डीएम तक के आवास पर संबद्ध हैं। शस्त्र कार्यालय की स्थिति और भी बुरी है। जाति और पैसे के आधार पर लाइसेंस जारी किये गये हैं। उद्योग बंधुओं के सदस्यों में भी जाति को बढ़ावा दिया जा रहा है। रिश्वतखोर लेखपालों और भ्रष्ट सचिवों ने हाहाकार मचा रखा है, लेकिन उनसे शिकायत करने के बावजूद कोई परिणाम नहीं निकलता।
डीएम कार्यालय से संबंद्ध बाबू संतोष शर्मा की छवि बेहद खराब है, इसीलिए निवर्तमान डीएम ने इसका प्रवेश आवास पर प्रतिबंधित करा दिया था, लेकिन चन्द्रप्रकाश त्रिपाठी ने संतोष को पुनः महत्वपूर्ण कार्य दे दिए हैं, जो दो नंबर के कार्यों में मध्यस्थता की भूमिका निभाता नज़र आ रहा है। इसने आय से अधिक संपत्ति अर्जित कर ली है, लेकिन डीएम का खुला सरंक्षण होने के चलते कोई कुछ कहने को तैयार नहीं है। इस सब के अलावा विपरीत हालातों में डीएम की भूमिका और भी बढ़ जाती है, लेकिन कानून व्यवस्था के मामलों में डीएम पूरी तरह फेल साबित हो रहे हैं।
गोकशी का धंधा जिले भर में खुलेआम चल रहा है। कई बार बवाल भी हुआ है, लेकिन डीएम कभी हस्तक्षेप नहीं करते। फिलहाल इस्लामनगर थाना क्षेत्र में हालात बदतर हैं, लेकिन डीएम ने अपने स्तर से किसी तरह की जाँच के आदेश नहीं दिए हैं, जबकि इतनी बड़ी घटना में मजिस्ट्रेट से जांच कराने के आदेश पहले ही दिन दिए जाने चाहिए थे।
जिलाधिकारी चन्द्रप्रकाश त्रिपाठी का सबसे बड़ा घपला तो यह है कि उन्होंने एक बीडीओ को वित्तीय अधिकार देते हुए डीपीआरओ का प्रभार दे रखा है, जबकि नियमानुसार वह ऐसा नहीं कर सकते। उनके आदेश को शासन ने अनुमोदित भी नहीं किया है, इसके बावजूद जिलाधिकारी ने अपना आदेश वापस नहीं लिया है। प्रभारी डीपीआरओ लगातार गलत निर्णय ले रहे हैं, जिससे पूरी व्यवस्था पर ही प्रश्न चिन्ह लग गया है।
जिलाधिकारी चन्द्रप्रकाश त्रिपाठी के कारनामों की जानकारी सत्ताधारी दल से जुड़े शीर्ष नेताओं को भी है, पर चमचागीरी से खुश होने के कारण मौन हैं। इस संबंध में जिलाधिकारी चन्द्रप्रकाश त्रिपाठी और नेताओं से बात करने का प्रयास किया गया, लेकिन बात नहीं हो पाई, इसलिए मान कर चलना चाहिए कि फिलहाल कुछ बदलने वाला नहीं है।
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