उत्तर प्रदेश के 80 लोकसभा क्षेत्रों में कुछ लोकसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां की राजनैतिक स्थिति और परिणामों को लेकर समूचे उत्तर प्रदेश और देश के मतदाताओं की नज़र जमी रहती है, ऐसा ही एक लोकसभा क्षेत्र है बदायूं। रुहेलखंड खंड क्षेत्र में गंगा और रामगंगा के बीच बसे बदायूं जिले से सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव का गहरा और लंबा राजनैतिक रिश्ता रहा है। वह बदायूं जिले के विधान सभा क्षेत्र सहसवान और गुन्नौर से विधायक रह चुके हैं। गुन्नौर विधान सभा क्षेत्र अब संभल जिले का हिस्सा है, लेकिन गुन्नौर विधान सभा क्षेत्र के मतदाता अपना मत बदायूं लोकसभा क्षेत्र में ही डालते हैं। गुन्नौर क्षेत्र परिसीमन से पहले संभल लोकसभा क्षेत्र का अंग था और तब इस क्षेत्र का जिला बदायूं था।
संभल लोकसभा क्षेत्र से सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह सांसद चुने गये थे और उनके बाद उनके अनुज प्रो. रामगोपाल यादव भी चुने गये। पिछले लोकसभा चुनाव में सपा सुप्रीमो के भतीजे धर्मेन्द्र यादव बदायूं लोकसभा क्षेत्र से समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी बनाये गये और जीते, इस बार भी धर्मेन्द्र यादव ही समाजवादी पार्टी की ओर से प्रत्याशी हैं।
बदायूं जिला समाजवादी पार्टी का गढ़ माना जाता है, इसलिए सपा प्रत्याशी धर्मेन्द्र यादव की जीत को लेकर अधिकाँश लोग आश्वस्त हैं, लेकिन पिछले चुनाव से तुलना करते हुए बात आंकड़ों की करें, तो धर्मेन्द्र यादव चुनावी समर में बुरी तरह फंसे नज़र आ रहे हैं।
जाति, धर्म और प्रलोभन को दरकिनार कर निष्पक्ष चुनाव कराने की दिशा में भारत निर्वाचन आयोग ने कड़े दिशा-निर्देश दे रखे हैं, लेकिन वास्तव में जाति और धर्म इस चुनाव में भी पूरी तरह हावी हैं। स्वयं प्रत्याशी भी जाति और धर्म के नाम पर ही सहयोग मांगते दिख रहे हैं, ऐसे में स्पष्ट है कि परिणामों को लेकर आंकलन करते समय जाति-धर्म को नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता।
भारतीय जनता पार्टी ने कस्टम विभाग से सेवा निवृत्त भाजपा जिलाध्यक्ष प्रेम स्वरूप पाठक के पुत्र वागीश पाठक को प्रत्याशी बनाया है। बहुजन समाज पार्टी ने व्यापारी अकमल खां “चमन” को मैदान में उतारा है। 23 बदायूं लोकसभा क्षेत्र में अभी 15 प्रत्याशी मैदान में हैं, लेकिन मुख्य लड़ाई इन्हीं तीन प्रत्याशियों के बीच होना निश्चित है। इन तीनों प्रत्याशियों की राजनैतिक शक्ति का आंकलन करने से पहले पिछले लोकसभा चुनाव के परिणामों का उल्लेख करना बेहद आवश्यक है। पिछले लोकसभा चुनाव में कुल दस प्रत्याशी मैदान में थे, लेकिन मुख्य मुकाबला सपा के धर्मेन्द्र यादव, बसपा के डीपी यादव और कांग्रेस के प्रत्याशी सलीम इकबाल शेरवानी के बीच ही हुआ था। जद (यू) के प्रत्याशी डीके भारद्वाज इन तीनों से बहुत पीछे रहे थे। विजयी प्रत्याशी सपा के धर्मेन्द्र यादव को 2,33,744 मत, दूसरे नंबर पर रहने वाले बसपा के डीपी यादव को 2,12,02 मत, तीसरे नंबर पर रहने वाले कांग्रेस के सलीम इकबाल शेरवानी को 1,93,34 मत और जद (यू) के प्रत्याशी डीके भारद्वाज को 740,79 मत मिले थे। सलीम इकबाल शेरवानी बदायूं लोकसभा क्षेत्र से सपा प्रत्याशी के रूप में लगातार चार बार सांसद रहे हैं। वर्ष 2009 के चुनाव में सलीम इकबाल शेरवानी का समाजवादी पार्टी ने टिकट काट दिया था, जिससे वह विद्रोह कर कांग्रेस में चले गये और कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े। इस चुनाव में मुस्लिम मतदाता पूरी तरह सलीम इकबाल शेरवानी के साथ रहे, जबकि भाजपा प्रत्याशी न होने के कारण हिंदू मत समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी धर्मेन्द्र यादव के पाले में चला गया, जिसने उनकी जीत में अहम भूमिका निभाई। मतलब, वर्ष 2009 के चुनाव में सशक्त भाजपा प्रत्याशी मैदान में रहा होता, तो सपा के धर्मेन्द्र यादव तीसरे नंबर पर रहते। दूसरा नंबर कांग्रेस के सलीम इकबाल शेरवानी का रहता और जीत बसपा के डीपी यादव के नाम दर्ज होती।
धर्मेन्द्र यादव को वर्ष 2009 के चुनाव में 2,33,744 मत मिले, जिनमें से भाजपा के लगभग 70 हजार मत घटा दिए जायें, तो उनके मत 1 लाख 60 हजार के आसपास बचते हैं, साथ ही पिछ्ला चुनाव बसपा सरकार के कार्यकाल में हुआ था। राजनैतिक वातावरण पूरी तरह बसपा सरकार और उसके प्रत्याशियों के विरुद्ध था, जिसके चलते 25-30 हजार मत धर्मेन्द्र यादव को अतिरिक्त मिला था, जिसे भी घटा दिया जाये, तो धर्मेन्द्र यादव के पास 1 लाख 30 हजार के आसपास मत बचते हैं, जो मुकाबला करने लायक भी नहीं कहे जा सकते।
वर्तमान चुनाव की बात करने से पहले यह बताना आवश्यक है कि विजयी होने और उत्तर प्रदेश में सपा की सरकार बनने के बाद धर्मेन्द्र यादव ने बदायूं लोकसभा क्षेत्र में कई अहम विकास कार्य कराए हैं, जिनमें राजकीय मेडिकल कॉलेज, ओवर ब्रिज और सड़कें और भी खास हैं। विकास की दृष्टि से उनका पलड़ा भारी नज़र आता है, साथ ही उन्होंने कई विरोधियों को भी अपने साथ जोड़ लिया है, जिनमें गुन्नौर विधान क्षेत्र के प्रमुख नेता पूर्व बेसिक शिक्षा राज्यमंत्री अजित कुमार सिंह यादव “राजू” प्रमुख कहे जा सकते हैं। राजू सपा में शामिल न होते, तो 30 से 40 हजार तक वोट का नुकसान सपा प्रत्याशी धर्मेन्द्र यादव को पहुंचा सकते थे, इसके अलावा डीपी यादव भी समाजवादी पार्टी के 30 से 40 हजार वोट तोड़ लेते थे। इस बार डीपी यादव भी मैदान में नहीं हैं, जिसका सीधा लाभ धर्मेन्द्र यादव को मिल सकता है। मतलब, राजू के सहयोगी बनने से और डीपी यादव की अनुपस्थिति से सपा प्रत्याशी धर्मेन्द्र यादव को 60 से 80 हजार तक वोट का लाभ मिल सकता है। ऊपर घटा कर धर्मेन्द्र यादव के बचे 1 लाख 30 हजार वोट में 70 हजार वोट जोड़ दिए जायें, तो धर्मेन्द्र यादव को इस बार मिलने वाले वोट का जोड़ 2 लाख के आसपास पहुंचने की संभावना है। छुटभैये नेताओं के सहारे और विकास के नाम पर जनता को लुभा कर अगर, वह 50 हजार और वोट पाने में कामयाब हो जाते हैं, तो भी 2 लाख 50 हजार से ऊपर उनका आंकड़ा जाता नज़र नहीं आ रहा।
अब बसपा प्रत्याशी की बात करने से पहले पिछले चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में सलीम इकबाल शेरवानी को मिले मतों की एक बार फिर चर्चा करते हैं। उन्हें 1,93,34 मत मिले थे, जिनमें 40-45 हजार मत उनके निजी संबंधों वाले मान लिए जायें, तो शेष बचे 1 लाख 50 हजार मत उन्हें मुस्लिम समाज के ही मिले थे। इस बार सलीम इकबाल शेरवानी भी बदायूं लोकसभा क्षेत्र से चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, वहीं बसपा ने मुस्लिम प्रत्याशी अकमल खां “चमन” को मैदान में उतारा है। चमन को सलीम इकबाल शेरवानी वाले 1 लाख 50 हजार मत दे दिए जायें और उनमें बसपा के मतदाताओं को जोड़ कर देखा जाये, तो कुल मतों की संख्या 3 लाख से ऊपर हो जाती है, जो सपा प्रत्याशी धर्मेन्द्र यादव को मिलने वाले मतों की तुलना में बहुत अधिक है। उधर देश के बाकी हिस्सों की तरह नरेंद्र मोदी के नाम की लहर बदायूं क्षेत्र में भी चल रही है, जिसका लाभ भाजपा प्रत्याशी वागीश पाठक को पूरी तरह मिलने की संभावना है। गैर यादव और गैर जाटव मतदाता अधिकांशतः भाजपा प्रत्याशी के पाले में जा सकते हैं, जिसकी कुल संख्या बसपा प्रत्याशी से भी अधिक है, ऐसे में स्पष्ट है कि सपा प्रत्याशी धर्मेन्द्र यादव चुनावी चक्रव्यूह में पूरी तरह फंसे हैं, जिससे वह सिर्फ विकास के मुददे के सहारे ही निकल सकते हैं, लेकिन वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्हें जिस तरह बसपा विरोधी वातावरण का लाभ मिला था, उसी तरह इस चुनाव में उन्हें बिगड़ी कानून व्यवस्था के चलते बना सपा सरकार विरोधी माहौल का नुकसान भी उठाना पड़ सकता है।
खैर, वास्तविक परिणाम जानने के लिए 16 मई तक इंतजार करना ही पड़ेगा। बदायूं लोकसभा क्षेत्र में इस बार 913736 पुरुष, 725444 महिलायें और 48 किन्नरों सहित कुल 1639228 मतदाता हैं और उम्मीद है कि सभी जाति, धर्म, लिंग, क्षेत्र और निजी स्वार्थ से ऊपर उठ कर देश हित में मतदान कर लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए सही व्यक्ति को चुनेंगे।
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