शाहजहाँपुर का पत्रकार जगेन्द्र हत्या कांड वर्तमान में भले ही सुर्खियों में हो, लेकिन अतीत की बात करें, तो भी जनपद शाहजहांपुर पत्रकारों के लिए तालिबान जैसा इलाका साबित होता रहा है। शाहजहाँपुर में पत्रकारों की हत्या होना साधारण सी घटना है, इससे पूर्व की घटनाओं में शासन-प्रशासन ने हत्यारों और माफियाओं के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की होती, तो पत्रकारों के साथ लगातार हो रही वारदातों की पुनरावृत्ति नहीं होती।
शाहजहाँपुर में प्रदीप शुक्ला जैसे तेजतर्रार पत्रकार को मौत के घाट उतारा जा चुका है, लेकिन पुलिस उस प्रकरण में मगरमच्छों को बचा गई, ऐसे ही उभरते युवा पत्रकार संतोष श्रीवास्तव की हत्या कर दी गई, इस प्रकरण में एक बड़े उद्योगपति का नाम उछला था, लेकिन उसे बचाते हुए पुलिस ने अन्य कई तरह की कहानियाँ गढ़ लीं, जिससे शाहजहाँपुर में दबंगों, माफियाओं और अपराधियों के हौसले बुलंद होते चले गये, जिसके दुष्परिणाम के रूप में पत्रकारों को लगातार निशाना बनाया जा रहा है।
शाहजहाँपुर में अपराधी और माफियाओं का पुलिस से ऐसा अटूट रिश्ता बन गया है कि पुलिस की जगह माफिया खुद ही कार्रवाई कर देते हैं। दिवंगत पत्रकार जगेन्द्र ने एक तेल माफिया के विरुद्ध कुछ खबरें प्रकाशित कर दीं, तो एक झूठे प्रकरण में उस माफिया ने जगेन्द्र के शाहजहाँपुर में पुलिस की ओर से बड़े-बड़े होर्डिंग लगवा दिए, जिसको लेकर जगेन्द्र 13 नवंबर 2014 को आमरण अनशन पर बैठ गये थे, इसके बाद होर्डिंग तो पुलिस-प्रशासन ने हटवा दिए, लेकिन होर्डिंग लगवाने वाले माफिया के विरुद्ध कार्रवाई नहीं की, जिससे अपराधियों का दुस्साहस बढ़ता गया और जगेन्द्र मारा गया। जगेन्द्र के परिवार को न्याय मिलने की उम्मीद कम ही है, क्योंकि प्रदीप शुक्ला और संतोष श्रीवास्तव का उदाहरण सामने हैं। मृत पत्रकारों की तो बात ही छोड़िये, शाहजहाँपुर के एक जीवित पत्रकार को भी अभी तक न्याय नहीं मिल पाया है।
जी हाँ, दैनिक जागरण के बेहद गंभीर और लोकप्रिय पत्रकार नरेंद्र यादव 17 सितंबर 2014 की रात को करीब 10: 30 बजे कार्यालय से काम समाप्त कर घर जाने के लिए निकले, तभी उन पर अज्ञात लोगों ने धारदार हथियार से हमला कर दिया। हमलावरों का इरादा उनकी गर्दन अलग करने का था, लेकिन नरेंद्र यादव का यह सौभाग्य रहा कि किसी तरह हमलावर गर्दन अलग करने में कामयाब नहीं हो पाये, पर नरेंद्र बुरी तरह घायल हो गये। चूँकि कार्यालय के पास की ही घटना थी, जिससे उन्हें प्राथमिक उपचार समय से मिल गया। उनके सिर में 28 और गले में 42 टाँके लगाये गये। अस्पताल में 11 दिन भर्ती रहे, तब जान बच पाई। इस घटना में अज्ञात हमलावरों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कराया गया, लेकिन पुलिस आज तक एक भी सही हमलावर को नहीं पकड़ पाई है। दस महीने बीत जाने के बाद प्रगति के नाम पर सिर्फ इतना है कि पुलिस दो विवेचना अधिकारी बदल चुकी है। फिलहाल विवेचना सदर कोतवाली के एसएसआई के पास है, लेकिन वे भी यूं ही समय बिता रहे हैं, उनके हाथ भी अभी तक पूरी तरह खाली हैं, ऐसे में शाहजहाँपुर पुलिस से जगेन्द्र के परिजनों को न्याय मिलने की उम्मीद भी कैसे की जा सकती है?
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