समाजवादी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के बीच पड़ी दरार भरने की संभावना क्षीण होती जा रही है। दोनों पक्ष चुनाव आयोग की शरण में पहुंच गये हैं और स्वयं को असली अध्यक्ष सिद्ध करने की दिशा में जुटे हुए हैं। गवाह और साक्ष्य के सहारे साईकिल चुनाव चिन्ह लेने का प्रयास करते नजर आ रहे हैं। बात नियमों की करें, तो जानकारों का कहना है कि अखिलेश यादव की स्थिति मजबूत है, क्योंकि कार्यकारिणी, विधायक और सांसदों का बहुमत उनके पक्ष में है। बताते हैं कि गुरुवार को अखिलेश के पक्ष में लगभग 218 विधायकों ने समर्थन का शपथ पत्र भी दे दिया है, जो शुक्रवार को चुनाव आयोग में दाखिल किया जा सकता है, इसलिए माना जा रहा है कि प्रो. रामगोपाल द्वारा बुलाये गये आपातकालीन अधिवेशन में अखिलेश के पक्ष में हुए प्रस्तावों को चुनाव आयोग मान्यता दे देगा, जिसके बाद साईकिल चुनाव चिन्ह भी अखिलेश यादव का हो जायेगा।
खैर, चुनाव आयोग द्वारा कुछ ही दिनों में स्थिति स्पष्ट कर दी जायेगी। बात समाजवादी पार्टी में चल रहे घमासान की करते हैं, तो इस घटनाक्रम से अधिकांश लोग दुखी हैं। कार्यकर्ताओं और समर्थकों के साथ आम आदमी भी एक-दूसरे से पल-पल की जानकारी लेते हुए नजर आ रहे हैं। कहीं से सुलह की दिशा में आगे बढ़ने की खबर आती है, तो लोग चहक उठते हैं, यही हाल परिवार का है। मुलायम सिंह यादव का पूरा खानदान स्वयं को इस स्थिति में बेबस सा महसूस कर रहा है, लेकिन विशाल परिवार में सबसे ज्यादा दुखी कोई है, तो वो हैं सांसद धर्मेन्द्र यादव, क्योंकि धर्मेन्द्र यादव नेता जी के जितने नजदीक हैं, उतने ही नजदीक अखिलेश यादव के हैं।
पूरा परिवार एक साथ जमा हो और नेता जी को कुछ बोलना हो, तो पहला नाम वे धर्मेन्द्र यादव का ही पुकारते हैं। सत्र के समय नेता जी दिल्ली में रहते हैं, तो नेता जी की सेवा करना धर्मेन्द्र यादव की दिनचर्या का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य होता है। स्वयं तैयार होकर वे नेता जी को संसद लेकर जाते हैं और फिर उन्हें छोड़ कर अपने आवास पर लौटते हैं, इस दौरान संसद में भी नेता जी के साथ साए की तरह रहते हैं, उनकी हर छोटी-बड़ी जरूरत का ध्यान रखते हैं, ऐसा ही आत्मीय संबंध उनका अखिलेश यादव से है।
यहाँ ध्यान देने की विशेष बात यह है कि धर्मेन्द्र यादव के लिए नेता जी न सिर्फ बड़े हैं, बल्कि उनके आदर्श हैं, वंदनीय हैं, उनकी आधारशिला हैं। धर्मेन्द्र यादव के लिए नेता जी के शब्दों का अर्थ अकाट्य है। नेता जी बोल दें कि छत से कूद जाओ, तो धर्मेन्द्र यादव सोचने में एक पल नहीं गंवायेंगे, ऐसी स्थिति में धर्मेन्द्र यादव अखिलेश यादव का साया बने हुए हैं, तो सीधी सी बात है कि नेता जी किसी बिंदु पर बहुत गलत हैं।
मीडिया में कई तरह की खबरें आती रहती हैं कि अमुक ने सुलह के प्रयास किये, जबकि असलियत यह है कि धर्मेन्द्र यादव से ज्यादा प्रयास कोई और कर ही नहीं सकता, वे नेता जी से लगातार विनती कर रहे हैं, वे बेहद दुखी मन के साथ अखिलेश यादव के योद्धा बन कर लगातार लड़ने को मजबूर भी हैं, इसलिए सबसे ज्यादा दुखी धर्मेन्द्र यादव ही हैं। यहाँ विशेष ध्यान देने की एक और बात यह है कि मुलायम-अखिलेश के बीच वर्चस्व की नहीं, बल्कि अधिकारों की जंग है। अखिलेश अपने अधिकार के लिए जूझ रहे हैं, जो कई कारणों के चलते मुलायम चाह कर भी दे नहीं सकते।
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