बदायूं में सोत नदी के प्रकरण में सिटी मजिस्ट्रेट ने नोटिस जारी कर दिए हैं। सिटी मजिस्ट्रेट ने कब्जाधारकों को अपना पक्ष रखने के लिए 31 अगस्त की तिथि निर्धारित की है। प्रशासन द्वारा की जा रही कार्रवाई के दायरे में पूर्व दर्जा राज्यमंत्री आबिद रजा का भवन अब भी नहीं आयेगा, क्योंकि उनका भवन कई बार हुई जांचों में सही पाया गया है, साथ ही प्रकरण न्यायालय में भी विचाराधीन है।
समाजवादी पार्टी की सरकार में सदर क्षेत्र के पूर्व विधायक व पूर्व दर्जा राज्यमंत्री आबिद रजा के भवन का प्रकरण उछला और जाँच भी हुई, जिसमें आबिद रजा का भवन सोत नदी की सीमा से बाहर पाया गया। पुनः रिपोर्ट मांगी गई, तो जाँच के बाद तहसीलदार ने 23 सितंबर 2016 को रिपोर्ट में पुनः वही लिखा कि अवैध कब्जा नहीं किया गया है। भाजपा सरकार आने पर सोत नदी की फिर जाँच हुई, जिसमें तहसीलदार ने 10 मई 2017 को भेजी रिपोर्ट में लिखा कि नदी अपने दायरे में है और अतिक्रमण नहीं किया गया है, इसके बाद भाजपा विधायक महेश चंद्र गुप्ता के आग्रह पर मुख्यमंत्री ने डीएम को निर्देश दिया, तो सीडीओ की अध्यक्षता में गठित कमेटी ने 12 जून 2017 को भेजी रिपोर्ट में लिखा कि आबिद रजा का भवन सोत नदी के रकवे से बाहर है, इसके अलावा सपा सरकार के समय ही आबिद रजा न्यायालय की शरण में चले गये थे। प्रकरण न्यायालय में विचाराधीन है, ऐसे में उनका भवन प्रशासनिक कार्रवाई के दायरे में तब तक नहीं आ सकता, जब तक न्यायालय से अनुमति न ली जाये।
अब बात करते हैं सौन्दर्यकरण और नदी के विस्तार को लेकर भूमि अधिग्रहण करने की, तो सरकार को सिर्फ कृषि भूमि अधिग्रहित करने का अधिकार है। सरकार आवासीय भूमि अधिग्रहित नहीं कर सकती। आबिद रजा के नाम संबंधित भवन के नौ बैनामे हैं, जो विधिवत दाखिल खारिज हुए हैं, जिसके बाद भूमि को आवासीय क्षेत्र में घोषित कराया गया है। संबंधित भवन तीन जांचों में सही पाया गया है एवं प्रकरण न्यायालय में भी विचाराधीन है, ऐसे में प्रशासन आबिद रजा के भवन के आसपास भी नहीं फटक सकता। स्पष्ट है कि बयान देकर आम जनता को भ्रमित किया जा रहा है।
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