सरकार के भारत संचार निगम लिमिटेड का विशाल नेटवर्क है, उसके नेटवर्क पर ही तमाम निजी कंपनियां उपभोक्ताओं को बेहतरीन सेवायें दे रही हैं, लेकिन बीएसएनएल के कर्मचारी और अधिकारी इतने लापरवाह हो चुके हैं कि अधिकांश उपभोक्ता तंग आ चुके हैं और नेटवर्क बदल रहे हैं। एक ऐसा उपभोक्ता सामने आया है, जो कर्मचारियों और अधिकारियों की लापरवाही से तंग आकर नेटवर्क बदलने की जगह उनका त्याग पत्र लेने पहुंच गया, तो विभाग में हड़कंप मच गया और कुछ ही मिनट में उसका फोन ठीक हो गया।
बीएसएनएल के अफसरों की लापरवाही और उपभोक्ता की साहसिक पहल की कहानी बदायूं की है। लाबेला चौक पर स्थित ओम कंप्यूटर्स का लैंड लाइन फोन काफी दिनों से खराब था। शिकायतें की गईं, लेकिन विभागीय अफसर व कर्मचारी अनदेखी करते रहे। उपभोक्ता अभिषेक उपाध्याय ने और बड़े अफसरों से संपर्क किया, तो भी कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकला।
तंग आकर उपभोक्ता अभिषेक ने एक त्याग पत्र लिखा और उसका प्रिंट लेकर बीएसएनएल के कार्यालय में पहुंच गया। अभिषेक ने शनिवार को संबंधित अफसरों के सामने कागज रख कर कहा कि इस पर हस्ताक्षर कर दीजिये। कागज पड़ कर सभी के होश उड़ गये। एक अफसर ने अभिषेक को हड़काने का भी प्रयास किया, पर वह अपनी जिद पर अड़े रहे कि जब आप काम नहीं कर सकते, तो त्याग पत्र दीजिये। हस्ताक्षर तो किसी ने नहीं किये, लेकिन सकारात्मक परिणाम यह हुआ कि महीनों से खराब चल रहा फोन दस मिनट में सही करा दिया गया, साथ ही अफसर ने दुःख प्रकट करते हुए क्षमा भी मांगी।
रिलायंस के जिओ नेटवर्क के विज्ञापन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फोटो प्रकाशित होने पर उनकी कड़ी आलोचना हो रही है। बीएसएनएल में सुधार करने की आवाज बुलंद होने लगी है। प्रधानमंत्री की सोच प्राइवेट कंपनी साकार कर सकती है, तो संसाधन होते हुए भी सरकार का नेटवर्क बेहतर सेवा क्यों नहीं दे सकता?, प्रधानमंत्री को इसका न सिर्फ जवाब देना चाहिए, बल्कि उन्हें बीएसएनएल की सेवा प्रणाली को दुरुस्त भी कराना चाहिए। और अगर, ऐसा नहीं हो सकता, तो पूरी व्यवस्था को ही प्राइवेट कंपनियों के हवाले कर देना चाहिए।
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