बदायूं स्थित जिला कारागार में उत्पन्न हुआ संकट डीसीबी के चेयरमैन ब्रजेश यादव के प्रयासों से भले ही टल गया, लेकिन सवाल यह है कि ऐसा भयावह संकट उत्पन्न क्यों हुआ? सवाल यह भी है कि समय-समय पर निरीक्षण करने वाले जिलाधिकारी कारागार में जाकर क्या देखते रहे हैं, साथ ही दबंगई, गुंडई और भ्रष्टाचार करने वाले जेल अफसरों को शक्ति कहाँ से मिलती रही है?
उक्त सवालों के जवाब चारों दिशाओं में स्वयं ही चीखते सुनाई दे रहे हैं। सिर्फ इतनी सी जाँच होनी है कि जेल के अंदर मैस कौन चलवाता है, उसकी आमदनी किस की जेब तक जाती है, साथ ही जेल के अंदर खाद्य पदार्थ कौन सप्लाई करता है? जेल के अंदर पांच रूपये की कीमत का बीड़ी का बंडल बीस रूपये में और साठ रूपये वाली सिगरेट का पैकेट सौ रूपये में कैसे बिकता रहा है? पचास रूपये की दाल फ्राई की प्लेट आम बंदी खरीदने की सोच भी नहीं सकता, लेकिन यह सब खुलेआम होता रहा है। आज के बवाल के बाद भी बंद होने की संभावना न के बराबर ही है, क्योंकि जेल के अंदर हो रही लूट का हिस्सा जिलाधिकारी तक पहुंचता रहा है, पर जिलाधिकारी स्वयं को बड़ा ही ईमानदार प्रदर्शित करते हैं, ऐसा होता, तो बंदी उनके एक-एक शब्द पर अक्षरशः विश्वास करते, जबकि आक्रोशित बंदियों ने जिलाधिकारी के विरुद्ध जमकर नारे लगाये। बंदियों को प्रशासन के तमाम अफसरों के साथ जिलाधिकारी पर आंशिक विश्वास भी होता, तो जेल के अंदर ब्रजेश यादव को नहीं जाना पड़ता। जेल के अंदर भ्रष्टाचार और मिलीभगत को लेकर प्रशासन की पोल खुली, इसके बावजूद जिलाधिकारी ने स्वयं को बेहतर अफसर साबित करने के उददेश्य से भूख हड़ताल खत्म करने का श्रेय लेते हुए फर्जी प्रेस नोट जारी करा दिया, जिसमें यह कहीं नहीं लिखा है कि उनके विरुद्ध भी जेल में नारे लगाये गये हैं। प्रेस नोट में यह भी नहीं लिखा है कि जेल के अंदर नेता मौजूद भी थे, जबकि ब्रजेश यादव आज जेल में न पहुंचे होते, तो बड़ा बवाल होने की संभावनायें थीं। प्रेस नोट पढ़ कर लग रहा है कि जैसे जिलाधिकारी सीपी त्रिपाठी अगला चुनाव लड़ने वाले हैं और अगर, ऐसा नहीं है, तो इसे अति की आत्म मुग्धता की बीमारी ही कहा जायेगा।
पिछले कुछ दिनों से जेल से बाहर बंदियों के मस्ती करने की खबरें छाई रही हैं। दो सिपाही हाल ही में बर्खास्त भी हो चुके हैं, यह बंदी जेल प्रशासन ने जिस नेता के कहने पर बाहर भेजे थे, इसकी जानकारी हर बंदी को है, इसीलिए बंदी नेताओं की भी बात सुनने को तैयार नहीं थे। बंदियों को पता था कि जेल अफसर नेताओं के ही चमचे हैं, तभी खुलेआम गुंडई और भ्रष्टाचार कर पा रहे हैं। आक्रोशित बंदी जिले के सपा नेताओं पर विश्वास न करते हुए सांसद को बुलाने की मांग इसीलिए कर रहे थे, लेकिन सांसद की अनुपस्थिति में डीसीबी चेयरमैन ब्रजेश यादव ने संकट का न सिर्फ सामना किया, बल्कि तटस्थ भाव से समाधान भी किया। सुबह से समूचा जिला प्रशासन जिस समस्या से जूझ रहा था, उस समस्या का ब्रजेश यादव ने मात्र चालीस मिनट में समाधान कर दिया।
खैर, शुरुआत में जो सवाल उठाये गये थे, उनका सीधा सा जवाब यही है कि जेल अफसरों को जिलाधिकारी के साथ सपा के ही कुछ नेताओं का संरक्षण प्राप्त था, तभी जेल के अंदर न सिर्फ तानाशाही, बल्कि तालिबानों जैसी व्यवस्था फल-फूल रही है। जिलाधिकारी और सपा नेताओं का संरक्षण समाप्त हुआ, तो व्यवस्था स्वतः बेहतर हो जायेगी।
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