बदायूं जिले के थाना वजीरगंज में तैनात थानाध्यक्ष ओमकार सिंह का नियम-कानून से कोई संबंध नहीं है। स्थानीय नगर निकाय चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी संगीता वार्ष्णेय और उसके परिवार को हतोत्साहित करने को ओमकार सिंह हर सीमा लाँघ गये। पीड़ित प्रत्याशी संगीता ने पुलिस, प्रशासन और आयोग के अफसरों से शिकायत भी की थी, लेकिन अफसरों ने चुनावी आरोप समझ कर शिकायत को गंभीरता से नहीं लिया, जिसके बाद एसओ ने संगीता के परिवार के साथ वह सब भी किया, जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। अब एसओ की भूमिका को न्यायालय ने भी गंभीर माना है और कड़ी चेतावनी दी है।
उल्लेखनीय है कि नगर पंचायत वजीरगंज में चेयरमैन पद के लिए भाजपा से कई लोग टिकट मांग रहे थे। भाजपा ने शकुंतला देवी को टिकट दिया, तो दीपेश वार्ष्णेय ने भाजपा से विद्रोह कर अपनी भाभी संगीता वार्ष्णेय का नामांकन करा दिया, उनके पक्ष में विभिन्न बूथों पर भारतीय जनता पार्टी की ओर से अध्यक्ष पद का दायित्व संभाल रहे अमित कुमार पाठक, अंकुर साहू और तरुण शंखधार ने भी भारतीय जनता पार्टी से त्याग पत्र दे दिया, इस पर सत्ता पक्ष के नेता आक्रोशित हो उठे। दीपेश को भाजपा से निष्कासित करने के बाद पुलिस को हथियार बना लिया और पूरे परिवार का जमकर शोषण कराया, जो अभी तक जारी है।
थानाध्यक्ष ओमकार सिंह की एक पक्षीय कार्रवाई से भयभीत होकर संगीता वार्ष्णेय ने पुलिस, प्रशासन और आयोग के अफसरों से मिल कर शिकायत की। एसओ को चुनाव से पहले हटवाने की मांग की, लेकिन अफसरों ने संगीता की शिकायत को सामान्य चुनावी आरोप समझ कर गंभीरता से नहीं लिया, जिसे एसओ ने अफसरों की मूक सहमति माना और फिर खुला तांडव शुरू कर दिया। संगीता और उसके परिवार के लोगों का घूमना बंद कर दिया। दीपेश को हिरासत में लेकर समर्थकों की बाइक सीज कर दीं। चुनाव वाली रात पूरा परिवार घर में ही बंधक बना दिया। संगीता के पिता, ससुर और जेठ को गिरफ्तार कर हवालात में बंद कर दिया, इस पर रात में ही 12 बजे के बाद महिलाओं ने सड़क पर जमकर प्रदर्शन कर नारेबाजी भी की थी।
एसओ की मनमानी आगे भी जारी रही। संगीता का आरोप है कि एसओ ने डरा-धमका कर उसके अभिकर्ताओं को भगा दिया, साथ ही दोपहर के समय पति ब्रजेश वार्ष्णेय को गिरफ्तार कर लिया, जिसे धारा- 420, 468 और 471 आईपीसी के अंतर्गत जेल भेज दिया और फिर एसओ ने न्यायालय में रिकॉर्ड भी नहीं भेजा, इस पर अपर मुख्य न्यायायिक मजिस्ट्रेट कक्ष संख्या- 2 ने एसओ को लापरवाह माना और 28 नवंबर को रिकॉर्ड न भेजने पर वरिष्ठ अफसरों को कार्रवाई हेतु लिखने की चेतावनी दी। एसओ ओमकार सिंह की भूमिका को न्यायालय ने महसूस कर लिया, जिसे पुलिस, प्रशासन और चुनाव आयोग के अफसरों ने भी महसूस कर लिया होता, तो निर्दलीय प्रत्याशी संगीता वार्ष्णेय, उसके परिवार और समर्थकों का भी शोषण होने से बच जाता एवं वजीरगंज में चुनाव भी नियमानुसार हो जाता।
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