बदायूं शहर में हुए दिल दहला देने वाले दोहरे हत्या कांड में पुलिस के पास अभी बताने को बहुत कुछ नहीं है। एसटीएफ के साथ घटना के खुलासे के लिए चार टीमें गठित की गई हैं। सनसनीखेज वारदात पुलिस के लिए चुनौती है, वहीं घटना को लेकर हर कोई स्तब्ध है, साथ ही जघन्यतम वारदातों के चलते अधिकाँश लोग दहशत में भी हैं।
उल्लेखनीय है कि बदायूं में सदर कोतवाली क्षेत्र के मोहल्ला ब्राह्मपुर में रहने वाले सेवानिवृत अभियंता वीके गुप्ता (72) और उनकी पत्नी शन्नो देवी (68) के बुधवार रात उनके घर में शव बरामद हुए थे। पति-पत्नी घर में अकेले रहते थे। हत्या का पता तब चला, जब बनारस में रहने वाली विवाहित बेटी मधु ने फोन किया और लगातार घंटी करने पर फोन रिसीव नहीं हुआ। चिंतित मधु ने बदायूं शहर में ही लाबेला चौक पर रहने वाले ममेरे बहनोई मनोज कुमार गुप्ता को फोन किया और उनसे निवेदन किया कि वे घर जाकर बात करा दें। मनोज ब्राह्मपुर स्थित घर पर आये, तो उन्होंने देखा कि अंदर से दरवाजा बंद है और दुर्गंध आ रही है, इससे उन्हें अनहोनी की आशंका हुई, तो उन्होंने पुलिस को सूचना दी। पुलिस ने दूसरी मंजिल से अंदर झाँका, तो दोनों के रसोई में शव पड़े नजर आये, इसके बाद पुलिस विभाग में हड़कंप मच गया।
सूचना पर मृतकों के बेटे दिल्ली से शेखर गुप्ता व बरेली से हेमंत गुप्ता आज आ गये। शेखर ने अज्ञात हत्यारों के विरुद्ध तहरीर दी है, जिस पर पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर लिया है। पुलिस द्वारा पोस्टमार्टम के लिए दोपहर में ही शव पंचनामा भर कर भेज दिए गये। पैनल द्वारा पोस्टमार्टम करने का डीएम ने आदेश दे दिया, लेकिन हाई-प्रोफाइल प्रकरण होने के बावजूद पोस्टमार्टम बहुत देर से शुरू हुआ। रोते-विलखते परिजन व रिश्तेदार पोस्टमार्टम हाउस पर ही जमे हुए हैं। शुरुआती जांच में बता चला है कि चाकू व लोहे की सरिया से उन्हें गोदा गया है। स्पष्ट है कि हत्या इरादे से की गई है एवं हत्यारे पेशेवर हैं।
घटना स्थल का दोपहर में डीआईजी आरकेएस राठोर व आईजी विजय सिंह मीना ने दौरा किया एवं पुलिस लाइन स्थित सभागार में घटना से संबंधित पत्रकारों को जानकारी दी। विजय सिंह मीना ने बताया कि दरवाजे के नीचे से डाले गये तीन दिन के अखबार वहीं पड़े हैं, जिससे प्रतीत होता है कि घटना तीन दिन पुरानी है। उन्होंने बताया कि घर में पुताई का भी कार्य चल रहा था, जिससे पुलिस इस दिशा में भी जांच कर रही है कि घटना की पृष्ठभूमि में लूट तो नहीं है। उन्होंने अन्य कई कारण बताये, पर उन्होंने मुकुल हत्या कांड की बात नहीं की, इस पर पत्रकारों ने सवाल किया, तो उन्होंने कहा कि पुलिस उस दिशा में भी जांच करेगी। हाई-प्रोफाइल प्रकरण में वीके गुप्ता के वादी होने पर उन्हें सुरक्षा न देने के सवाल पर आईजी ने कहा कि उनकी ओर से सुरक्षा मांगने का प्रार्थना पत्र नहीं दिया गया था।
यहाँ यह भी बता दें कि 30 जून 2007 को बरेली में एएसपी के पद पर तैनात प्रशिक्षु जे. रवीन्द्र गौड़ के नेतृत्व में बरेली जिले के फतेहगंज पश्चिमी क्षेत्र में एक मुठभेड़ हुई, जिसमें बदायूं निवासी एक युवा मुकुल गुप्ता को मार गिराया था। पुलिस ने उसे खूंखार अपराधी बताया था, जबकि मुकुल बरेली में साधारण कम्प्यूटर ऑपरेटर था। मुकुल मृतकों का सबसे छोटा बेटा था, वे घटना के बाद स्तब्ध थे। बूढ़े माता-पिता पुलिस की कहानी पहले दिन से ही खारिज करते आ रहे थे और वीके गुप्ता ने तो दोषी पुलिस कर्मियों को सज़ा दिलाना अपने जीवन का ध्येय बना लिया था।
बुजुर्ग पिता वीके गुप्ता ने अदालत में प्रार्थना पत्र देकर उस समय ही पुलिस के विरुद्ध एफआईआर लिखाने की गुहार लगाई थी, जिस पर अदालत ने मुकदमा लिखने का आदेश दे दिया, लेकिन पुलिस ने मुदकमे में एफआर लगा दी, इसके बाद बदायूं शहर के पूर्व विधायक महेश चंद्र गुप्ता ने मामले को विधान सभा में उठाया, तो शासन ने सीबीसीआईडी जांच के आदेश दे दिए, पर इस जांच में भी कुछ नहीं हुआ। हार कर बुजर्ग पिता ने हाईकोर्ट का सहारा लिया और 26 फरवरी 2010 को हाईकोर्ट ने मामले की सीबीआई जांच करने के आदेश दिए। सीबीआई ने इस मामले में सबसे सिपाही जगवीर सिंह यादव को गिरफ्तार किया, लेकिन मुकुल को मुठभेड़ में मार गिराने वालों की सूची में जगवीर का नाम नहीं है, जबकि मुकुल की मौत जगवीर की गोली से ही हुई थी। सीबीआई ने जगवीर को रिमांड पर लेकर पूछताछ की थी, तो उसने कई अधिकारियों को दोषी बताया था, जिसके आधार पर सीबीआई ने आईपीएस जे. रविन्द्र गौड़ के विरुद्ध सुबूत जुटाये और शासन से अभियोजन की अनुमति मांगी, लेकिन शासन ने अनुमति नहीं दी। आरोपी जे. रविन्द्र गौड़ बरेली में ही एसएसपी बनाये गये, वे लखनऊ में भी एसएसपी रहे हैं और वर्तमान में अलीगढ़ में तैनात हैं, इससे सहज की कल्पना की जा सकती है कि उनकी राजनैतिक पकड़ बेहद मजबूत है। इस घटना में उनके साथ दस पुलिस कर्मी आरोपी हैं।
मानव अधिकार आयोग के निर्देश पर वीके गुप्ता को पांच लाख रूपये दिए गये, लेकिन तंत्र से त्रस्त वीके गुप्ता ने रूपये लेने से मना कर दिया। बाद में उन्हें न्याय दिलाने का विश्वास दिलाया गया, तब उन्होंने रूपये स्वीकार किए। वीके गुप्ता को आरोपियों ने तरह-तरह के प्रलोभन दिए, लेकिन वीके गुप्ता लालच में नहीं फंसे और समूचे प्रकरण में एक साहसी पिता की भूमिका निभाते हुए भ्रष्ट तंत्र से दृढ़ता के साथ लड़ते रहे, ऐसे जीवट पिता की मौत पर हर किसी का स्तब्ध होना स्वाभाविक ही है। अब देखने वाली अहम बात यह है कि अपने बेटे मुकुल को लेकर उन्होंने धरती से लेकर आकाश तक नाप दिया, लेकिन उनके लिए कोई लड़ेगा, या नहीं और न्याय मिलेगा, या नहीं? सवाल यह भी है कि सेवानिवृत अभियंता वीके गुप्ता और उनकी पत्नी शन्नो देवी की हत्या के दोषी अज्ञात दरिंदे हैं, या भ्रष्ट व लापरवाह तंत्र भी है?
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