पीएम इन वेटिंग कहलवा कर खुद की फजीहत कराने वाले लालकृष्ण आडवाणी का नाम भाजपा की ओर से इस बार प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवारों की सूची तक में नहीं दिख रहा, इसीलिए उनके चेहरे के साथ शब्दों में भी मायूसी स्पष्ट नजर आती है। सत्ता सुख से दूर जा चुके लालकृष्ण आडवाणी परोक्ष रूप से भाजपा के दुश्मन भी नजर आने लगे हैं। उनके द्वारा लिखे जा ब्लाग में सच्चाई कम, उनका अपना दर्द ही अधिक दिखाई देता है। नरेन्द्र मोदी को लेकर भाजपा का आम कार्यकर्ता उत्साहित नजर आ रहा है, ऐसे में वह कह रहे हैं कि अगला प्रधानमंत्री न भाजपा का होगा और न ही कांग्रेस का। उनके इस लेख से भाजपा कार्यकर्ताओं के मन पर दुष्प्रभाव पडऩा स्वभाविक ही है। उनके इस तरह के लेखों से उनका शेष बचा कद भी घट रहा है, क्योंकि एक दौर में वह भाजपा के कट्टरपंथी नेताओं में शीर्ष पर गिने जाते थे, लेकिन जिन्ना पर विवादित बयान देकर उन्होंने अपनी कट्टरपंथी छवि को झटके से साफ कर लिया, इसीलिए उनके पीएम इन वेटिंग होने के बावजूद भाजपा के आम कार्यकर्ताओं ने पिछले लोकसभा में चुनाव खास रुचि नहीं ली, तभी नतीजा उनकी अपेक्षा के विपरीत ही आया। इस बार नरेन्द्र मोदी को लेकर आस जगी है, लेकिन भाजपाई अपनी ऊर्जा कांग्रेस के विरुद्ध खफाने की बजाये, अपनी पार्टी के ही प्रतिद्वंदियों के विरुद्ध बर्बाद करते दिखाई दे रहे हैं। सत्ता से दूर होने के बावूजद भाजपा में लंबे समय से प्रधानमंत्री पद की जंग चल रही है, जिससे पार्टी का ही नुकसान हो रहा है। भाजपा के ही शीर्ष नेता खुद खुल कर मोदी के विरुद्ध नहीं बोल पा रहे हैं, लेकिन अन्य हथकंडे अपना कर मोदी को गुजरात तक ही सीमित रखना चाहते हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नितिश कुमार प्रधानमंत्री पद के सशक्त दावेदार नरेन्द्र मोदी के विरुद्ध खुल कर यूं ही नहीं बोलने लगते। उन्हें भी भाजपा के ही कुछ शीर्ष नेताओं की ओर से हरी झंडी मिलती है। यह आशंका इसलिए प्रबल है कि नितीश कुमार की नाराजगी पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी यह कहते हैं कि नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नहीं हैं, जबकि गडकरी यह स्पष्ट बोलने की जगह हाल-फिलहाल बात टाल सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया, साथ ही सवाल यह भी उठना चाहिए कि नरेन्द्र मोदी सांप्रदायिक हैं, तो नितीश कुमार राजग का हिस्सा ही क्यूं हैं? गुजरात में केशुभाई पटेल द्वारा मोदी का खुल कर विरोध करना और बाद में अपनी पार्टी बना लेने की घटना भी कूटनीतिक दिमाग की ही उपज नजर आ रही है, क्योंकि नरेन्द्र मोदी का नाम आम चर्चा का विषय बन जाने के बाद ही उनका विरोध लगातार बढ़ता चला गया, जबकि वह सालों से उसी गुजरात में रहते आ रहे हैं, जिसके मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं। खैर, कुल मिला कर यह स्पष्ट तौर पर कहा जा सकता है कि भाजपा के दुश्मन नंबर-वन, भाजपाई ही हैं।
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