– पानी और जहरीले जीव-जंतुओं से घिरा है कैंपस
सरकारी स्कूल्स की स्थिति किसी से छुपी नहीं है। मिड डे मील पकाने-खिलाने और घोटाले करने के रूप में ही कुख्यात हैं। कोई देखने वाला तक नहीं है, जिससे बच्चों की जान तक पर बन आई है। जगह-जगह आए दिन बच्चों की जान से खिलवाड़ होता भी रहता है, इसके अलावा कहीं भवन जर्जर है, तो कहीं स्टाफ नहीं हैं और जहां स्टाफ और भवन है, वहाँ शिक्षक पढ़ाते नहीं हैं, जिससे सरकारी स्कूल्स की छवि बेहद खराब हो चुकी है, इसीलिए अपने तमाम खर्चे काट कर अधिकांश अभिवावक अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल्स में भेजते हैं। अभिवावकों की अपेक्षा रहती है कि यहाँ बच्चे पढ़ने-लिखने के साथ सुरक्षित भी रहेंगे, लेकिन ऐसा है नहीं।
बरेली के टाप टेन स्कूल्स में शुमार पीलीभीत बाईपास रोड पर स्थित जिंगल बेल्स पब्लिक स्कूल की बात करें, तो स्कूल देखने में मौत का तालाब नज़र आ रहा है। स्कूल के अंदर जाने का रास्ता नहीं है। चार-पाँच वर्ष आयु के बच्चे डूब सकते हैं, इसके अलावा आसपास की झाड़ियों में तमाम तरह के जहरीले जीव-जन्तु भी हैं, जो क्लास रूम तक भी जा सकते हैं और नन्हें-मुन्नों को अपना शिकार बना सकते हैं, ऐसी दयनीय अवस्था तब है, जब शिक्षा और प्रशासन से जुड़े अधिकांश बड़े अफसर बरेली में बैठते हैं। जिंगल बेल्स का नज़ारा देखने से यह साफ भी हो रहा है कि अधिकारी बरेली में सिर्फ बैठते ही हैं, घूमते-फिरते और कुछ देखते नहीं हैं, वरना अब तक हालात सुधर चुके होते या जिंगल बेल्स प्रबंधन के विरुद्ध कार्रवाई हो चुकी होती।
अभिवावकों में आज कल जरूरत के साथ ग्लैमर भी हावी है, बड़े नाम वाले स्कूल में बच्चों को भेज कर स्वयं को गौवान्वित महसूस कर लेते हैं और मौके पर जाकर नहीं देखते कि स्कूल में क्या हो रहा है? अभी कोई घटना घटित हो जाए, तो शासन-प्रशासन के साथ पूरी दुनिया को कोसते दिखेंगे। खैर, फिलहाल तो सवाल यह उठता है कि फीस के नाम पर खुलेआम डकैती डाल रहे जिंगल बेल और जिंगल बेल्स जैसे अन्य तमाम स्कूल्स बच्चों को फीस के अनुपात में सुविधाएं क्यूँ नहीं दे रहे और इनके विरुद्ध प्रशासन कार्रवाई क्यूँ नहीं कर रहा, साथ ही किसी बच्चे के साथ कोई अनहोनी हो गई, तो उसका जिम्मेदार कौन होगा?