कान फोड़ देने वाले धमाकेदार संगीत के बीच नशे का सेवन कर लडख़ड़ाने का अवसर अगर मेट्रो शहर के युवक/युवतियों को नहीं मिल पा रहा है, तो समझो जिंदगी बेकार। मेट्रो की सोच बदलती जा रही है। धनाढ्य वर्ग के लिए मस्त जिंदगी का मतलब गाड़ी, नशा और लडक़ी ही रह गया है, तभी रेव पार्टियों का चलन बढ़ता ही जा रहा है।
युवाओं की सोच पूरी तरह बदल चुकी है। गाड़ी और लडक़ी के साथ नशे में झूमने का मतलब ही मस्त जिंदगी है। इस बदली सोच के कारण ही मेट्रो शहर में रेव पार्टियों का चलन बढ़ता जा रहा है, जो समूचे समाज के लिए चिंता का बड़ा विषय होना चाहिए।
पिछले शुक्रवार को हैदराबाद के उपनगर हयातनगर में पिगलीपुरम स्थित एक रिसार्ट पर पुलिस ने देर रात रेव पार्टी पर छापा मारकर 15 लड़कियों सहित 3० युवाओं को गिरफ्तार किया। श्रीनिवास रेड्डी नाम के व्यक्ति की बर्थडे पार्टी में लड़कियों को हैदराबाद, मुंबई और बेंगलूर से लाया गया था। यहां से शराब, अश्लील सीडी, कंडोम आदि भी बरामद हुए। गिरफ्तार किये गये लोगों में बड़े कारोबारियों और नौकरशाहों के बच्चे भी शामिल थे। इसी तरह पिछली 2० मई को इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के दौरान जुहू के एक होटल में रेव पार्टी में ड्रग्स लेने के आरोपियों में 44 की रिपोर्ट पॉजीटिव आई है। रिपोर्ट के अनुसार 27 ने चरस पी थी और एक ने नशे की गोलियां ली थीं, जबकि अन्य 16 ने नशे की गोलियों के साथ चरस भी पी थी। इस पार्टी में फिल्म अभिनेता अपूर्व अग्निहोत्री और उसकी पत्नि शिल्पा भी शामिल थी। पार्टी में छापे की कार्रवाई के दौरान 92 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। आईपीएल खिलाड़ी राहुल शर्मा और दक्षिण अफ्रीका के वेन पर्नेल सहित शेष लोगों की रिपोर्ट अभी नहीं आई है। पॉजीटिव पाये गये लोगों में अधिकांश विदेशी और हाई प्रोफाइल परिवारों से जुड़े लोग ही बताये जा रहे हैं।
सवाल उठता है कि धनाढ्य वर्ग के लिए जिंदगी जीने का मतलब क्या यही रह गया है? गाड़ी, लडक़ी और नशे के अलावा इन्हें कुछ और क्यूं नहीं सूझता? इन सवालों के जवाब में जानकार लोगों का कहना है कि मेट्रो शहर का समाज पूरी तरह से वैज्ञानिक हो गया है। उसके लिए देश, धर्म, रिश्ते और भावनायें जैसी बातों का कोई मायना नहीं रहा है। परंपरा और संस्कृति की बात करना तो शहरी युवाओं के लिए पूरी तरह दकियानूसी विचारधारा है, ऐसे में वह यह सब तो करेंगे ही।
जानकारों का कहना है कि यह सब कानून से नहीं रोका जा सकता, इसे रोकने के लिए शिक्षा पद्धति में परिवर्तन करना पड़ेगा। सामाजिक स्तर पर व्यापक जागरुकता अभियान चलाने की आवश्यकता है, इसमें जितनी देर की जायेगी, हालात उतने ही और भयावह होते चले जायेंगे।