अपने हितों की पूर्ति के लिए नेता किसी भी हद तक जाने लगे हैं। अधिकांश नेताओं का एकमात्र उददेश्य न सिर्फ विधायक व सांसद बन रह गया है, बल्कि सत्ता की मलाई खाना हो गया है, इसीलिए अब किसी नेता के बारे में यह नहीं कहा जा सकता कि वह आने वाले समय में किस दल में रहेगा। राजनीति को अवसरवादियों ने इस हद तक गंदा कर दिया है कि सामान्य व्यक्ति राजनीति के नाम से घृणा सी करने लगा है। अब तक सत्ता की मलाई चाटते रहे समाजवादी पार्टी के एक अवसरवादी नेता को भाजपाईयों ने मंच पर नहीं चढ़ने दिया, जिससे अवसरवादी नेता की जमकर फजीहत हो रही है।
जी हाँ, घटना संभल जिले के विधान सभा क्षेत्र गुन्नौर की है, इस क्षेत्र में एक नेता हैं अजीत कुमार “राजू यादव”। गुन्नौर विधान सभा क्षेत्र यादव बाहुल्य है, इसलिए यहाँ यादवों के कई गुट हैं। राजू यादव वर्ष- 2002 में जद (यू)-भाजपा गठबंधन से पहली बार चुनाव लड़े, उन्हें गुटबाजी का लाभ मिला और चुनाव जीत गये। वर्ष- 2003 में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी, तो राजू ने सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के लिए विधान सभा की सदस्यता से त्याग पत्र दे दिया। सपा सुप्रीमो रिकॉर्ड मतों से विजयी घोषित हुए। बदले में सपा सुप्रीमो ने राजू को एमएलसी नामित करा कर राज्यमंत्री बना लिया, जिससे राजू ने जमकर सत्ता सुख भोगा।
सरकार का समय पूरा होते ही राजू ने अपने छोटे भाई दीपक यादव को बसपा से टिकट दिला दिया, लेकिन दीपक वर्ष- 2007 में चुनाव जीतने में कामयाब नहीं हुए, पर बसपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बन गई, सो क्षेत्र में हनक-सनक कायम हो गई, इस बीच राजू ने सपा को बर्बाद करने की कसम भी खाई। कहा जाता है कि राजू ने अपनी कोठी पर लगे सपा के झंडे में गोली मारी थी और फिर उस झंडे को गंगा में प्रवाहित किया था।
बसपा सरकार का भी कार्यकाल पूरा हो गया, तो राजू ने कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली, वे वर्ष- 2012 में कांग्रेस से चुनाव लड़े, पर मतदाताओं ने उन्हें स्वीकार नहीं किया, इस बार राजू न विधायक बने और न ही सत्ता सुख मिला, सो छटपटाहट बढ़ गई, लेकिन ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा। लोकसभा चुनाव का लाभ उठा कर राजू पुनः सपा में आ गये और तब से सपा की सरकार की छाया में है, लेकिन चुनाव आते ही फिर रंग बदलने लगे हैं। अब भाजपा में जाने के जोर लगा रहे हैं।
राजू यादव गाँव भकरौली में दस अक्टूबर को आयोजित किये गये भारतीय जनता पार्टी के बूथ अध्यक्षों के सम्मेलन में न सिर्फ पहुंच गये, बल्कि मंच की ओर बढ़ने लगे। मंच के पास पहुंचने से पहले ही भाजपा नेताओं ने उन्हें रोक दिया, तो वे यह कहते हुए पीछे को लौट गये कि बैठक के बाद मिल लेंगे, इस घटना की जानकारी क्षेत्र की जनता को हुई, तो अधिकाँश लोग यही कहते दिखे कि ऐसे अवसरवादी नेताओं के साथ ऐसे ही पेश आना चाहिए। राजू की क्षेत्र में व्यापक स्तर पर फजीहत हो रही है। चूँकि चुनाव का समय है और राजू टिकट के लिए छटपटा रहे हैं, वरना वे अपमानित करने वाले नेताओं के विरुद्ध खुल कर बयानबाजी भी कर रहे होते। फिलहाल खून का घूँट पीकर क्षेत्र में फजीहत होने के बावजूद राजू मौन हैं और भाजपा में घुसने के प्रयास कर रहे हैं। सूत्रों का तो यहाँ तक कहना है कि उन्होंने क्षेत्र के एक बड़े भाजपा नेता से अनैतिक समझौता भी किया है।
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