उत्तर प्रदेश का शहर मथुरा विश्व विख्यात है। धर्म के अलावा राजनीति और बवाल को लेकर मथुरा चर्चाओं के केंद्र में भी बना रहता है। द्वापर युग के महाभारत काल से लेकर अब तक सर्वाधिक कुख्यात व्यक्ति कंस ही माना जाता है। कंस के बाद दूसरा नाम गुरुवार को रामवृक्ष यादव के रूप में सामने आया, जिसके आतंक से समूचा तंत्र हिल गया है। प्रदेश और देश ही नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर लोग रामवृक्ष यादव के कुकृत्य की निंदा कर रहे हैं।
प्रशासनिक जानकारी के अनुसार रामवृक्ष यादव 15 मार्च 2014 को लगभग 200 लोगों के साथ मथुरा आया था और प्रशासन से मथुरा में रहने के लिए दो दिन की अनुमति ली थी। चूँकि मथुरा में दुनिया भर से लोग आते रहते हैं, जो ठहरते हैं और चले जाते हैं, सो वहां का प्रशासन बहुत अधिक गंभीरता से नहीं लेता, लेकिन रामवृक्ष यादव और उसके साथ आये लोग दो दिन बाद भी मथुरा से नहीं गये। रामवृक्ष यादव उद्यान विभाग के जवाहर बाग में एक छोटी सी झोपड़ी बना कर रहने लगा और सोची-समझी नीति के अनुसार झोपड़ियों को विस्तार देता चला गया। रामवृक्ष यादव ने करीब 270 एकड़ क्षेत्र में फैली जमीन पर कब्जा कर लिया। हांलाकि प्रशासन ने जमीन को कब्जा मुक्त कराने का प्रयास किया, जिसके चलते मथुरा में वर्ष- 2014 से लेकर 2016 तक रामवृक्ष यादव के विरुद्ध तमाम धाराओं के अंतर्गत दस से ज्यादा मुकदमे दर्ज कराये गये हैं। सरकारी संपत्ति पर अवैध कब्जा करने के साथ अफसरों पर हमला करने और सरकारी कार्य में बाधा डालने तक की धारायें लगाई गई हैं, लेकिन रामवृक्ष यादव और उसका कथित गैंग प्रशासन पर इस हद तक हमलावर रहता आया है कि प्रशासन चाह कर उसके विरुद्ध कड़ी कार्रवाई नहीं कर पाया। संख्या बल के साथ राजनैतिक संरक्षण के चलते रामवृक्ष यादव मथुरा डॉन बन गया।
इस बीच स्थानीय लोग लिखित में शिकायतें भी दर्ज कराते रहे, पर प्रशासन असहाय बना रहा, तो विजयपाल तोमर नाम के एक व्यक्ति द्वारा इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर कर जमीन को कब्जा मुक्त कराने की गुहार लगाई गई। न्यायालय की दहशत के चलते रामवृक्ष यादव भी न्यायालय की शरण में पहुंच गया, उसका इरादा न्यायालय में प्रकरण को उलझाने का था, लेकिन मई माह में न्यायालय ने रामवृक्ष यादव की झूठी याचिका को न सिर्फ निरस्त किया, बल्कि उस पर 50 हजार का जुर्माना भी लगाया। विजयपाल तोमर की याचिका पर हाईकोर्ट ने जमीन को कब्जा मुक्त कराने का आदेश पारित किया था, जिसके चलते तीन दिन से पुलिस-प्रशासन जमीन को खाली करने की घोषणा कर रहा था। रामवृक्ष यादव ने हाईकोर्ट के आदेश को गंभीरता से नहीं लिया और न ही प्रशासन की घोषणा से डरा, वह आपराधिक किस्म के लोगों को जमा करने लगा। आतंकियों की तरह गोला बारूद जमा कर लिए, जिसमें हैंड ग्रेनेड, हथगोला, रायफल, विभिन्न बोर के तमंचे, कारतूस जमा कर उसने पुलिस-प्रशासन से जंग की तैयारी कर ली, इस सबका पुलिस-प्रशासन को शायद अहसास तक नहीं था।
गुरूवार को पुलिस-प्रशासन जमीन खाली कराने पहुंचा, तो रामवृक्ष यादव और उसके कथित गैंग ने पुलिस-प्रशासन पर अप्रत्याशित अंदाज में आक्रमण कर दिया। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि बच्चे, बूढ़े, जवान और महिलायें आत्मघाती दस्तों की तरह पुलिस से लड़ रहे थे। सबके पास हथियार थे और पुलिस-प्रशासन के अफसरों व कर्मचारियों को सीधा निशाना बना रहे थे। सीधी लड़ाई में बड़ी संख्या में जनहानि हुई, जिसमें एक एएसपी भी शहीद हुए हैं। हृदय विदारक घटना के बाद प्रदेश और देश की सरकारों का ध्यान रामवृक्ष यादव रुपी कंस की ओर गया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। पुलिस-प्रशासन और सरकार की नाकामी की भयानक कहानी इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुकी थी, जो सदियों तक कंस की कहानी की तरह ही दोहराई जाती रहेगी।
कंस रूपी शातिर दिमाग रामवृक्ष यादव के बारे में कहा जाता है कि यह बाबा जय गुरुदेव का कथित शिष्य था। बाबा के निधन के बाद उनकी संपत्ति कब्जाने की नीयत से मथुरा आया था और इसने जय गुरुदेव की विरासत के लिए दावेदारी भी की थी, लेकिन पंकज यादव के सामने यह बौना साबित हुआ। दिल्ली राजमार्ग के किनारे जय गुरुदेव आश्रम लगभग डेढ़ सौ एकड़ भूमि पर बना है, जो ऐश्वर्य और वैभव का भी प्रतीक माना जाता है। बाबा जय गुरुदेव का वास्तविक नाम तुलसीदास था, उनके गुरु श्री घूरेलाल जी थे, जो अलीगढ़ जिले की इगलास तहसील क्षेत्र के गाँव चिरौली के मूल निवासी थे। बाबा ने अपने गुरु स्थान चिरौली के नाम पर सन् 1953 में मथुरा के कृष्णा नगर में चिरौली संत आश्रम की स्थापना की थी, इसके बाद बाबा जय गुरुदेव ने वर्ष- 1962 में मथुरा में ही दिल्ली राजमार्ग के किनारे मधुवन क्षेत्र में डेढ़ सौ एकड़ भूमि खरीदी थी, जहां आज विशाल आश्रम बन चुका है, जिसका पंकज यादव उत्ताराधिकारी बन चुका है, इसलिए रामवृक्ष यादव ने अपना गैंग बनाया और सत्याग्रही नाम से उसे संचालित करने लगा।
रामवृक्ष यादव मूल रूप से गाजीपुर जिले के थाना मुरगढ़ थाना क्षेत्र में स्थित गाँव रामपुर बांगसुर का रहने वाला है, जो बाबा जय गुरुदेव के संरक्षण में उनकी संपत्ति हड़पने की नीयत से मध्य प्रदेश के सागर में रह रहा था, जहाँ से पहले दिल्ली आया और फिर बाबा के निधन के बाद मथुरा आ गया। बाबा की संपत्ति कब्जाने में सफलता नहीं मिली, तो मथुरा में उद्यान विभाग की जमीन पर कुंडली मार कर बैठ गया।
खैर, अब सवाल यह नहीं है कि क्या हुआ? सवाल यह है कि कैसे हुआ? दो सिपाही और एक लेखपाल के स्तर का प्रकरण यहाँ तक कैसे पहुंच गया? रामवृक्ष यादव को कंस बनने की शक्ति कौन दे रहा था? द्वापर युग में श्री हरि विष्णु श्री कृष्ण के अवतार में आकर कंस से निजात दिला गये थे, अब वे नहीं आने वाले, इसलिए पुलिस-प्रशासन और सरकारों को ही इतना सतर्क रहना होगा कि कंस के जीन की अनुभूति होते ही शिकंजा कस दिया जाये। मथुरा के बवाल से पुलिस-प्रशासन और सरकार को सबक लेना चाहिए। उत्तर प्रदेश के अधिकांश जिलों, शहरों और कस्बों में कंस पल-बढ़ रहे हैं, इन पर तत्काल अभियान चला कर अंकुश लगाया जाना चाहिए, वरना आने वाले समय में जवानों की जानें ऐसे ही जाती रहेंगी, पर सरकार की मंशा कंसों से निपटने की नहीं लगती। मथुरा की हृदय विदारक घटना से दुनिया भर में फैले लोग दुखी हैं, लेकिन सरकार ने मात्र 12 घंटे के अंदर जाँच अधिकारी बदल दिया, जो सरकार की नीयत पर सवाल उठाने को काफी है। सरकार शिकंजा नहीं कसना चाहती, सरकार की नीयत कंसों को बचाने वाली प्रतीत हो रही है। उत्तर प्रदेश के हालात भयावह कहे जा सकते हैं, जिन्हें कोई क्रांतिकारी सोच का राष्ट्रवादी नेता ही सही कर सकता है।
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