समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव के दामन पर दो ऐसे दाग हैं कि उनके लंबे और संघर्ष भरे संपूर्ण राजनैतिक जीवन को विवादित बनाये हुए हैं। 2 नवम्बर 1990 का दिन आज भी लोगों को याद आता है, तो उनका गुस्सा और घृणा का स्तर वही होता है, जो उस दिन था, इस दिन मुख्यमंत्री के रूप में मुलायम सिंह यादव पर अयोध्या में जुटे निहत्थे कारसेवकों पर गोली चलवाने का आरोप है, जिसमें लगभग 16 कारसेवकों की जान चली गई थी, इस घटना पर हाल ही में मुलायम सिंह यादव सार्वजनिक रूप से दु:ख व्यक्त कर चुके हैं, लेकिन दुःख व्यक्त करने भर से उन पर लगा आरोप साफ नहीं हो जाता।
इसी तरह 2 अक्टूबर 1994 का दिन लोग याद करते हैं, तो आज भी गमगीन हो उठते हैं, इस दिन मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहे पर अलग उत्तराखंड राज्य की मांग करने वाले आंदोलनकारियों पर कहर ढाया गया था, जिसमें 7 लोग शहीद हुए थे और महिलाओं का बर्बरतापूर्वक पुलिस द्वारा यौन शोषण किया गया, उस समय भी मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे, इन दोनों घटनाओं के चलते उन्होंने बहुत कुछ खो दिया, क्योंकि एक बहुत बड़ा वर्ग उनसे दूर चला गया, वरना देश की राजनीति में उनकी और बड़ी भूमिका होती, उन पर और भी कई तरह के आरोप लगते रहे हैं, जैसे परिवारवाद को बढ़ावा देना, जातिवाद को बढ़ावा देना, साथ ही आय से अधिक संपत्ति अर्जित करना।
वर्तमान में उनके बेटे अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। अखिलेश यादव मुख्यमंत्री पिता के कारण ही हैं, राजनीति उन्हें भले ही विरासत में मिली है, लेकिन कार्यप्रणाली और व्यवहार में वे अपने पिता से भिन्न माने जाते हैं। अखिलेश यादव अपने राजनैतिक जीवन के प्रथम चरण में ही हैं, पर मुख्यमंत्री बने उन्हें चार वर्ष हो गये हैं और इस कार्यकाल में उन पर अभी तक परिवारवाद, जातिवाद और भ्रष्टाचार जैसा आरोप नहीं लगा है, जो उनकी व्यक्तिगत बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है, लेकिन व्यक्ति जब समूह का नेतृत्व करता है, तो समूहगत गुण-दोष का जिम्मेदार भी नेतृत्वकर्ता ही माना जाता है।
अखिलेश यादव भले ही निष्कलंक हों, लेकिन सरकार के नेतृत्वकर्ता के रूप में देखें, तो उनकी सरकार पर मुलायम सिंह यादव की सरकार से कम गंभीर आरोप नहीं हैं। भू-तत्व एवं खनिकर्म मंत्री गायत्री प्रजापति ने समूची सरकार की बड़ी फजीहत कराई है। भ्रष्टाचार के आरोप और भी कई मंत्रियों पर लगते रहे हैं। दबंगई के आरोप और भी ज्यादा हैं। हाल ही में दर्जा राज्यमंत्री और सपा प्रत्याशी कुलदीप उज्ज्वल को बर्खास्त करना पड़ा। सत्ता की शह पर सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे करने के आरोप पूरे उत्तर प्रदेश में लग रहे हैं। गंगा की सहायक नदियों और तालाबों का अस्तित्व मिटा दिया गया है। प्रशासन भी भ्रष्टाचार मुक्त नहीं हो सका। कानून व्यवस्था की स्थिति लगातार दयनीय बनी हुई है। लोकायुक्त प्रकरण में भी बड़ी फजीहत हुई थी, लेकिन यह ऐसी कमियां हैं, जो किसी के भी कार्यकाल में हो सकती थीं। भाजपा, बसपा, कांग्रेस के मुख्यमंत्री भी अछूते नहीं रहे हैं। माना जा सकता है कि उत्तर प्रदेश क्षेत्रफल और जनसंख्या की दृष्टि से बहुत बड़ा है और साधन उस अनुपात में कम हैं, जो अचानक नहीं जुटाये जा सकते। संपूर्ण तंत्र को व्यवस्थित करने में समय लगेगा, इसलिए इन सभी समस्याओं को दरकिनार भी किया जा सकता है, लेकिन अखिलेश यादव के कार्यकाल में कई ऐसी जघन्य वारदातें भी घटित हुई हैं, जो इतिहास के पन्नों में मोटे-मोटे काले अक्षरों से दर्ज हो चुकी हैं, जिन्हें किसी के लिए भी भुला पाना आसान नहीं है।
अखिलेश यादव ने 15 मार्च 2012 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण की थी और मात्र पांच महीने बाद 27 अगस्त 2013 को मुजफ्फरनगर के कवाल में ऐसा दंगा भड़का कि दुनिया हिल गई। सेना को मोर्चा संभालना पड़ा। जन और धन की हानि का अनुमान लगा पाना आसान नहीं है, इस दंगे को लेकर अखिलेश यादव ने स्वयं भी कहा था कि यह दंगे उनके दामन पर जीवन भर के काले धब्बे हैं, इसके अलावा प्रदेश के अन्य हिस्सों की बात करें, तो लखनऊ, मुरादाबाद, बरेली, फैजाबाद, मेरठ, अलीगढ़ और गाजियाबाद में न भूलने वाली वारदातें लगातार होती रही हैं।
प्रदेश भर के पीड़ितों के घाव समय ने भर दिए थे, आंसू सूख रहे थे और उन्होंने दर्द को जीवन का हिस्सा बना लिया था, लेकिन जिस प्रकार सरकार के प्रथम वर्ष के कार्यकाल में मुजफ्फरनगर का दंगा हुआ, उससे भी अधिक भयावह सरकार के कार्यकाल के अंतिम पांचवे वर्ष की शुरुआत में ही मथुरा में जवाहर बाग कांड हो गया, जिसने प्रदेश भर के पीड़ितों के घाव हरे कर दिए हैं। मुजफ्फरनगर कांड से तुलना की जाये, तो मथुरा कांड ज्यादा गंभीर है, क्योंकि मुजफ्फरनगर कांड में शासन-प्रशासन की असफलता थी और मथुरा कांड में दोषी ही शासन-प्रशासन है। कुल मिला कर उत्तर प्रदेश दंगा प्रदेश बन कर रह गया है। अखिलेश के दामन पर लगे दागों की तुलना मुलायम से ही की जाये, तो अखिलेश के दामन पर लगे दाग और भी गहरे नजर आते हैं, जिनमें कवाल और जवाहर बाग कांड के पीड़ित प्रलय तक न्याय मांगते नजर आयेंगे।