उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के डॉ. अनिरुद्ध सिंह यादव अध्यक्ष नियुक्त कर दिए गये हैं, उनकी विवाद रहित नियुक्ति को लेकर अधिकांश लोग स्तब्ध हैं, क्योंकि पिछले अध्यक्ष अनिल यादव और अनिरुद्ध सिंह यादव के नाम व सरनेम में बड़ा अंतर नहीं है। नाम में शुरू के दो अक्षर मिल रहे हैं, वहीं सरनेम में कोई अंतर नहीं है, इसीलिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा भेजे गये प्रस्ताव को लेकर चर्चा नहीं है। चर्चा इस पर है कि राजभवन ने भी प्रस्ताव आसानी से स्वीकार कर लिया, क्योंकि राजभवन से इस तरह के अनुमोदन की संभावना कम लोगों को ही थी।
बदायूं जिले में भागीरथी के तट पर स्थित कस्बा कछला में गोविंदबल्लभ पंत महाविद्यालय जिले का सबसे प्राचीन महाविद्यालय है, जहाँ जिला अलीगढ़ में स्थित विकास क्षेत्र अकबरपुर के गाँव जिझारपुर में 2 जुलाई 1957 को जन्मे डॉ. अनुरुद्ध सिंह यादव 17 अप्रैल 2002 से प्राचार्य हैं और बदायूं शहर में किराये पर रहते हैं। गोविंदबल्लभ पंत महाविद्यालय में डॉ. तुफैल अहमद कार्यवाहक प्राचार्य थे, उनसे डॉ. अनिरुद्ध सिंह यादव ने बमुश्किल कार्यभार लिया था, यही अनिरुद्ध सिंह यादव आज मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की संस्तुति पर राज्यपाल ने उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष नियुक्त किये हैं। इस वक्त डॉ. सुनील कुमार जैन आयोग के कार्यवाहक अध्यक्ष थे, इनसे पहले आयोग के अध्यक्ष डॉ. अनिल यादव थे, जिनकी नियुक्ति को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रदद कर दिया था। अनिल कुमार यादव की जाति को लेकर बड़ा बवाल होता रहा है और कई तरह के सवाल उठते रहे हैं, जिससे वे सरकार के लिए बड़ी मुसीबत बन गये थे, ऐसे में सरकार से भी कम लोगों को उम्मीद थी कि वो किसी यादव के नाम का प्रस्ताव करेगी, लेकिन संभावनाओं के विपरीत सरकार ने यादव का ही नाम प्रस्तावित किया, लेकिन अधिकांश लोग इस बात को लेकर चकित हैं कि राजभवन ने भी कोई आनाकानी नहीं की, इस राज को अधिकांश लोग जानना चाहते हैं।
गोविंदबल्लभ पंत महाविद्यालय राजनीति से दूर रहते हुए पढ़ाई के लिए सुविख्यात है, जिसका स्तर डॉ. अनिरुद्ध सिंह यादव ने नहीं गिरने दिया, वे बेहद सरल, सौम्य और गंभीर स्वभाव के व्यक्ति माने जाते हैं, साथ ही कहा जाता है कि संघ और भाजपा के उच्चस्तरीय लोगों से उनके प्रगाढ़ संबंध हैं, उन्हीं संबंधों के आधार पर वे कभी डॉ. तुफैल अहमद से कार्यभार ले पाये थे और आज वैसे ही संबंधों के आधार पर उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष की कुर्सी तक पहुंच गये हैं।
बताया जाता है कि मध्य प्रदेश के राज्यपाल रामनरेश यादव से डॉ. अनिरुद्ध सिंह यादव के प्रगाढ़ संबंध हैं, जिन्होंने राजभवन से आयोग के अध्यक्ष की कुर्सी की ओर निकलने वाली राह आसान कर दी, वरना राजभवन एक-दो बार पत्रावली वापस अवश्य करता। डॉ. अनिरुद्ध सिंह यादव ही नहीं, बल्कि सरकार और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के लिए भी उत्पन्न होने वाली मुश्किलें रामनरेश यादव ने समाप्त कर दीं, वरना चुनावी वर्ष में समाजवादी पार्टी और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को छोटा सा विवाद भी बड़ा नुकसान पहुँचा सकता था।
खैर, डॉ. अनिरुद्ध सिंह यादव पहले ऐसे व्यक्ति हैं, जिनके नाम पर समाजवादी पार्टी और सरकार से भाजपा तो सवाल कर ही नहीं सकती, साथ में कांग्रेस भी कोई सवाल नहीं उठा सकेगी, जिससे उम्मीद है कि डॉ. अनिरुद्ध सिंह यादव निर्विवाद अध्यक्ष साबित होंगे।