उत्तर प्रदेश में जाति और धर्म के आधार पर भेदभाव बरतने के आरोप को पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता, लेकिन भाजपा को यह प्रमुख मुददा बनाने से बचना चाहिए, क्योंकि भाजपा हिंदू और मुस्लिम की बात करेगी, तो समाजवादी पार्टी पलटवार में विकास की बात करेगी और हिंदू-मुस्लिम के पुराने मुददे के साथ विकास की बात सुनने में ज्यादा अच्छी लगेगी, इसलिए भाजपा को समाजवादी पार्टी द्वारा कराये गये विकास में ही कमियां निकालनी चाहिए। प्रदेश में चल रही योजनाओं और विकास कार्यक्रमों में केन्द्र का हिस्सा कितना है, साथ ही बड़े स्तर पर कौन से कार्यक्रम व योजनायें केंद्र के निर्देश पर चलाये जा रहे हैं, इस सबसे जनता अभी तक अनभिज्ञ है।
भाजपा को बताना चाहिए कि उत्तर प्रदेश में कितने प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र हैं, उन पर कितने डॉक्टर, फार्मासिस्ट और कंपाउंडर तैनात हैं और कितने केंद्र खुलते हैं। उत्तर प्रदेश की प्राथमिक चिकित्सा झोलाझाप डॉक्टरों के हवाले है। अगर, झोलाझाप डॉक्टरों के कथित क्लीनिक बंद करा दिए जायें, तो वास्तव में उत्तर प्रदेश में बीमारियों को लेकर हाहाकार मच जायेगा, इसी तरह प्राथमिक शिक्षा के बारे में बताना चाहिए कि प्रति स्कूल कितने शिक्षक तैनात हैं, क्योंकि प्राथमिक शिक्षा भी झोलाझाप शिक्षकों के हवाले है। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी हाईस्कूल पास लोग प्राथमिक स्कूल चला रहे हैं, जो पढ़ाने की जगह नौनिहालों का भविष्य बर्बाद ही करते दिख रहे हैं।
भाजपा को सस्ते गल्ले की सरकारी दुकान की सच्चाई बतानी चाहिए, जहाँ सिर्फ माफियाराज कायम है। शहरों के आसपास के गांवों में गरीबों को निर्धारित दाम से महंगा सामान खरीदना पड़ रहा है और जो गाँव जिला मुख्यालय से दूर हैं, वहां कोटेदार की इच्छा पर निर्भर है। कोटेदार कई-कई महीने का केरोसिन व राशन स्वयं ही हजम कर जाता है, जिसका हिस्सा ऊपर तक पहुंचता है। सहकारी समितियों की स्थिति यह है कि सहकारी शब्द सिर्फ कागजों में ही शेष रह गया है। वास्तव में समितियों को कर्मचारी-अधिकारी और सहकारिता विभाग से जुड़े नेता काफी पहले ही पचा चुके हैं, इसी तरह केंद्रीय योजना के अंतर्गत चलाये जा आंगनबाड़ी केन्द्रों का उत्तर प्रदेश में बुरा हाल है। पोषाहार कार्यकत्रियों और अफसरों के ही पेट में जा रहा है। बच्चों के टीकाकरण की स्थिति भी भयावह है।
उत्तर प्रदेश सरकार एंबुलेंस सेवा की चर्चा करते हुए उत्साहित नजर आती है, लेकिन उसकी असलियत बताने के लिए इतना ही काफी है कि सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी के विधायक हाजी इरफान की लापरवाही के चलते एंबुलेंस में ही मृत्यु हुई थी, जिसका बदायूं जिले में मुकदमा भी दर्ज है। एंबुलेंस सेवा का जनता से अधिक ठेकेदारों को लाभ मिल रहा है। अगर, सही से जाँच हो जाये, तो यूपी का बड़ा तेल घोटाला सामने आ सकता है। कानून व्यवस्था का आलम यह है कि बीस वर्ष पहले होने वाली आपराधिक वारदातें पुनः घटित होने लगी हैं। डकैती लगभग खत्म हो चली थी, पर समाजवादी पार्टी की सरकार में डकैती की भी वारदातें घटित होने लगी हैं। अपहरण, लूट और राहजनी आम वारदातें कही जाने लगी हैं। प्रदेश भर में बड़ी संख्या में अज्ञात लाशें बरामद हो रही हैं, लेकिन मेडिकल परीक्षण में हत्या की पुष्टि होने के बावजूद मुकदमा दर्ज कर विवेचना तक नहीं की जाती। उत्तर प्रदेश सरकार महिला हेल्पलाइन को लेकर बड़ी ही गद्गद् नजर आती थी, इससे बड़ा उदाहरण अव्यवस्था का और क्या होगा कि उस हेल्पलाइन का ही प्रभारी पीड़ित को फोन पर प्रताड़ित करने लगा। प्रदेश की चारों दिशाओं में ऐसे-ऐसे बवाल हो चुके हैं, जिनमें बड़ी धन और जनहानि हो चुकी है, उन वारदातों के पीड़ित ता-उम्र खून के आंसू रोते रहेंगे, जिसमें मुजफ्फरनगर, शामली और मथुरा कांड सरकार के माथे पर लगे सबसे बड़े कलंक कहे जा सकते हैं।
जमीन पर दिखने वाले विकास कार्यों में सड़कों की बात करें, तो कार्यदायी संस्थाओं में निविदा निकालने की सिर्फ औपचारिकता पूर्ण की जा रही है। आरोप लगते रहे हैं कि संबंधित जिलों के शक्तिशाली नेता, या प्रदेश स्तर से ठेकेदारों के नामों की सूची आती है, जिसके अनुसार कार्यदायी संस्था के अफसर संबंधित ठेकेदारों के बीच कार्यों का बंटवारा कर देते हैं। कार्रवाई करने की बात तो बहुत बड़ी है, कार्यों की गुणवत्ता देखने तक का साहस किसी अफसर में नहीं है, जिससे ऐसी-ऐसी सड़कें बनी हैं, जो अंतिम भुगतान होने से पहले उखड़ चुकी हैं, ऐसा ही हाल भवनों का है। विकास कार्यों के लिए प्रति वर्ष सवा करोड़ रुपया विधायकों को भी मिलता है, जिसमें बीस लाख रुपया भी जमीन पर नहीं लगाया जाता, साथ ही विधायकों के इशारे पर गंगा की सहायक नदियों और प्राचीन तालाबों की बेशकीमती जमीनें भी कब्जा ली गई हैं।
नियुक्तियों की बात करें, तो गरिमामयी आयोग के अध्यक्षों से लेकर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की नियुक्तियों तक में सरकार की फजीहत होती रही है। नियुक्तियों को लेकर उत्तर प्रदेश में एक चुटकुला बेहद चर्चा में है कि यहाँ आवेदन, परीक्षा, साक्षात्कार के साथ उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय तक की औपचारिकता पूर्ण करनी पड़ती है। शुद्ध पेयजल की तो उत्तर प्रदेश में कोई चर्चा तक नहीं करता। बिजली अव्यस्था ने समूचे प्रदेश में हाहाकार मचा रखा है। भ्रष्टाचार से हर आदमी प्रभावित हो रहा है, इन सब मुददों पर प्रदेश के प्रत्येक आम आदमी की न सिर्फ गहरी नजर है, बल्कि वह भोग भी रहा है, त्रस्त है, पर कुछ कह भी नहीं पा रहा, इसलिए भाजपा को इन मुददों पर चर्चा करनी चाहिए, जिसका उत्तर समाजवादी पार्टी के पास नहीं होगा।
बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती जब भी प्रेस कांफ्रेंस करती हैं, वे आम आदमी से जुड़े मुददे पर बात करती हैं, कानून अव्यवस्था और भ्रष्टाचार की बात करती हैं, जिससे समाजवादी पार्टी तिलमिला उठती है, लेकिन भाजपा हिंदू-मुस्लिम की बात कर के समाजवादी पार्टी को और ताकत दे देती है, क्योंकि हिंदू-मुस्लिम के मुददे के नीचे सरकार की बड़ी-बड़ी कमियां दब जाती हैं और सरकार द्वारा प्रचारित कराये जा रहे विकास कार्य चमक उठते हैं, इसलिए भाजपा को बसपा की नीति अपनानी चाहिए, क्योंकि उत्तर प्रदेश में भाजपा का मुकाबला कांग्रेस से नहीं, बल्कि समाजवादी पार्टी से है। भाजपा को बिहार, तमिलनाडू और पश्चिम बंगाल के विधान सभा चुनावों से सबक लेना चाहिए, इन राज्यों में कांग्रेस नहीं थी, तो भाजपा वहां टिक नहीं पाई, क्योंकि कांग्रेस किसी जाति, धर्म और वर्ग का प्रतिनिधित्व नहीं करती, साथ ही सोनिया गाँधी के अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस राष्ट्रीय मुददों से दूर जाती रही है। कांग्रेस के मुकाबले भाजपा दक्षिणपंथी विचारधारा का प्रतिनिधित्व करती है, इसलिए कांग्रेस लगातार मात खा रही है, लेकिन क्षेत्रीय दलों की मूल शक्ति ही जाति और धर्म हैं। भाजपा जाति और धर्म के मुददे पर क्षेत्रीय दलों से उलझेगी, तो उल्टा मात ही खायेगी।
संबंधित लेख पढ़ने के लिए क्लिक करें लिंक
मीडिया का मुंह काला हुआ, तो सफेद किसका बचेगा?