किरन कांत
गाय और गंगा के प्रति आस्था भी अब पूरी तरह राजनैतिक हो गई है। भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री गाय और गंगा के संरक्षण के लिए कठोरतम कानून बना रहे हैं, वहीं कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्री गाय और गंगा को निचोड़ कर खजाना भरने के प्रयास में जुटे नजर आ रहे हैं। बात फिलहाल उत्तराखंड की करते हैं, तो यहाँ की सरकार गंगा को आस्था की जगह सिर्फ पर्यटन का माध्यम मानती है।
उत्तराखंड सरकार टिहरी क्षेत्र को पर्यटन के रूप में विकसित कर रही है। भागीरथी और भिलंगना नदियों का जल टिहरी बांध में समाया हुआ है, यही जल आगे चल कर गंगा का रूप धारण कर लेता है। खूबसूरत पहाड़ियों के बीच साठ किलो मीटर लंबे और बयालीस किलो मीटर चौड़े क्षेत्र में फैली झील को देखने के लिए विदेशियों को लुभाने की उत्तराखंड सरकार की योजना है, जिसके तहत स्पेशल नाव व हाउस वोट तैयार कराई जा रही हैं, जिसमें भ्रमण करते हुए गंगा के बीच खाने, पीने की भी व्यवस्था की जायेगी। तन्दूरी चिकन, मटन टिक्का और फिश करी के साथ पर्यटक मदिरा और मांस का भी सेवन कर सकते हैं। सवाल यह भी है कि गाय का मांस विदेशियों की पहली पसंद रहता है, तो स्पष्ट है कि उत्तराखंड सरकार पर्यटकों को गंगा के बीच गाय का मांस भी उपलब्ध करा सकती है। गंगा स्वच्छ और निर्मल तो पहले से ही नहीं बची है, ऐसे में उत्तराखंड सरकार के कृत्य से पवित्रता पर भी संकट मंडराने लगा है, इसे गंगा भक्तों की आस्था पर गहरी चोट माना जा रहा है।
सवाल यह भी है कि एक ओर गंगा को स्वच्छ बनाने के लिए केंद्र सरकार विशेष मिशन चला रही है, जिसमें करोड़ों रूपये खर्च करने का प्रावधान है, वहीं उत्तराखंड सरकार का गंगा के बीच मांस व मदिरा परोसने का इरादा स्वच्छता अभियान को एक तरह से धक्का ही लगायेगा, साथ ही इस सबसे पर्यावरण को भी नुकसान होगा।
उधर मुख्यमंत्री हरीश रावत ने आज नमामि गंगे मिशन को लेकर केंद्र सरकार को ही घेर लिया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस सरकार द्वारा चलाई जा रही योजना का ही भाजपा सरकार ने नाम परिवर्तित कर दिया है। उन्होंने गंगा स्वच्छ अभियान के तहत केंद्र से राज्य को मिलने वाली मदद न मिलने का भी आरोप मढ़ा। उन्होंने विशेष प्रस्ताव लाने के संकेत भी दिए, साथ ही चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि केंद्र सरकार की नीतियाँ राज्य का विशेष दर्जा खत्म कर सकती हैं।