मेरी बाँहों में झूलते थे जो, वे भी अब तमतमाये बैठे हैं: नरेंद्र गरल

मेरी बाँहों में झूलते थे जो, वे भी अब तमतमाये बैठे हैं: नरेंद्र गरल

नरेंद्र गरल स्वयं में साहित्य का चलता-फिरता ग्रंथ हैं। साहित्य की हर विधा में पारंगत हैं, साथ ही लिखते हुए और मंच पर काव्य पाठ करते हुए उन्हें लंबा समय हो गया है। अनुभव के चलते उनकी रचनायें और गूढ़ हो गई हैं, सरल भी हो गई हैं, जिससे उन्हें सुनते हुए श्रोता अब वाह-वाह […]