समाजवादी पार्टी के अंदर चल रहे घमासान के पीछे सिर्फ और सिर्फ ठा. अमर सिंह का शातिर दिमाग है। मात खाये अमर सिंह घात लगाये बैठे थे और अनुकूल समय आते ही ऐसी चाल चली कि देश का सबसे मजबूत समझा जाने वाला राजनैतिक परिवार का भवन भरभरा के गिर गया। हालात अब इतने भयावह हो चले हैं कि हर ईंट यह समझ रही है कि भवन का आधार वही है। महाभारत जैसी ही स्थिति है। शकुनि के रूप में अमर सिंह भले ही सबको दिखाई दे रहे हैं, लेकिन अन्य पात्र भी विपरीत विचारधारा होने के बावजूद अखिलेश के विरुद्ध एकजुट हो गये हैं। कृष्ण विहीन अखिलेश महाभारत में फंसे तो हैं, लेकिन अच्छी बात यह है कि अखिलेश अभी तक विचलित नजर नहीं आ रहे हैं, उनके अंदर साहस स्पष्ट दिखाई दे रहा है।
उच्च स्तरीय सूत्रों का कहना है कि समाजवादी पार्टी से राज्यसभा जाते ही अमर सिंह ने सरकार में दखल देने के प्रयास शुरू कर दिए, लेकिन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उन्हें सरकार के आसपास भी नहीं फटकने दिया। अब समाजवादी पार्टी में अमर सिंह राज्यसभा सांसद के रूप में वेतन लेने तो आये नहीं थे। पारिवारिक स्थितियां उन्हें पता ही थीं। अखिलेश के सामने मनमानी कोई नहीं कर पा रहा था। मंत्री के रूप में शिवपाल सिंह यादव अपने विभागों तक सीमित थे, साथ ही बड़े निर्णयों में मुख्यमंत्री के रूप में स्वयं अखिलेश यादव हस्तक्षेप कर रहे थे, इससे शिवपाल सिंह यादव आहत तो थे ही। प्रो. रामगोपाल यादव पूरी गंभीरता के साथ दिल्ली अकेले संभाल रहे थे, वहीं उत्तर प्रदेश में भी विवादों से दूर रहते हुए कई जगह हावी थे। इन सबसे अलग साधना गुप्ता वाली शाखा अस्तित्व की लड़ाई भी नहीं लड़ पा रही थी। हाथ-पैर मारने के बाद सफलता दूर नजर आई, तो प्रतीक यादव ने राजनीति से स्वयं को अलग ही कर लिया और सपा सुप्रीमो के माध्यम से दो-चार लोगों को लाभान्वित कराने तक सिमट गये। उनकी पत्नी अपर्णा के पिता पत्रकार हैं, सो वे पिता के निर्देशन में राजनीति में स्थापित होने का प्रयास करती रहीं। इतना सब लंबे समय से घट रहा था, लेकिन सपा सुप्रीमो के सम्मान और अखिलेश की सैद्धांतिक सोच के चलते कोई कुछ कह नहीं पा रहा था। शतरंज से पूरा परिवार दूर था, इस सबसे अमर सिंह भली-भांति परिचित थे ही, सो उन्होंने बड़ी ही चालाकी से एक चाल चल दी, जिसके बाद बाकी सब अपनी-अपनी चालें चलने को मजबूर हो गये।
सूत्रों का कहना है कि घमासान के पीछे कारण तो कई हैं, लेकिन अमर सिंह ने जिस कारण से घमासान कराया, वो है लखनऊ-बलिया एक्सप्रेस-वे। लखनऊ, बाराबंकी, सुल्तानपुर, फैजाबाद, अंबेडकरनगर, आजमगढ़, मऊ और गाजीपुर होते हुए बलिया तक जाने वाले 11 हजार करोड़ से भी ज्यादा के 348 किमी लंबे इस एक्सप्रेस-वे को लेकर अखिलेश यादव बेहद उत्साहित थे। आगरा एक्सप्रेस- वे के निर्माण में कोई बड़ा विवाद नहीं हुआ, आरोप नहीं लगा। भ्रष्टाचार मुक्त और गुणवत्तायुक्त कार्य होने से अखिलेश गद्गद् थे और चाहते थे कि ऐसे ही लखनऊ-बलिया एक्सप्रेस-वे का भी निर्माण हो, लेकिन वे यह भूल बैठे थे कि आगरा एक्सप्रेस-वे के समय अमर सिंह नहीं थे। सूत्रों का कहना है कि अमर सिंह ने लखनऊ-बलिया एक्सप्रेस-वे बनाने का कार्य किसी और कंपनी को दिलाने की बात परिवार के बीच आगे बढ़ाई, जिसे अखिलेश द्वारा ठुकरा ही देना था। अमर सिंह को पहले से आभास होगा ही कि अखिलेश मना ही करेंगे और मना करते ही दो लोगों के बीच की जिद बड़े घमासान में तब्दील होती चली गई। अमर सिंह ने पहले हालात उत्पन्न किये और फिर आहत लोगों को एकजुट कर दिया। साधना गुप्ता की शाखा को समझाया कि आप सीधे लड़ेंगे, तो पूरा परिवार आपके विरुद्ध एकजुट हो जायेगा, इसलिए आप स्वयं मत लड़ो और नेता जी के सहारे शिवपाल को शक्ति दो। चूँकि नेता जी का झुकाव अब साधना गुप्ता की ओर है, सो वे मौन होने को मजबूर हैं। नेता जी के मौन होते ही शिवपाल का शक्तिशाली होना स्वाभाविक ही था। शिवपाल को यह लगता रहा है कि अखिलेश उन्हें प्रो. रामगोपाल यादव के कहने पर आहत करते रहे हैं, वहीं मथुरा कांड के समय दोनों में टकराव हो भी गया था, इसके अलावा अमर सिंह अपने अपमान का बदला भी चाहते हैं, सो शक्तिशाली होते ही शिवपाल का पहला वार प्रो. रामगोपाल यादव के गुट पर ही हुआ है। शिवपाल सहित यह सभी जानते हैं कि अगले चुनाव में अखिलेश के बिना समाजवादी पार्टी जा भी नहीं सकती, सो सीधे तौर पर अखिलेश पर वार कोई नहीं कर रहा, लेकिन उन्हें इतना कमजोर किया जा रहा है कि अखिलेश को यह अहसास हर समय रहे कि वे मुख्यमंत्री उनकी कृपा पर हैं, वे चाहेंगे, तो एक क्षण भी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठ पायेंगे, इसी अवस्था में रखते हुए अखिलेश के नेतृत्व में चुनाव लड़ना चाहते हैं, लेकिन अपने निजी हितों के चलते यह किसी को अहसास ही नहीं है कि जनता अखिलेश को मजबूर मुख्यमंत्री के रूप में देख कर बेहद आहत है और चुनाव में बदला लेने को आतुर नजर आ रही है।
खैर, समाजवादी पार्टी में चल रहे पूरे घमासान में अहम बात यह है कि महाभारत के विदुर की तरह आजम खान भी चाल चल रहे हैं। विदुर नीति दुनिया की सबसे घातक नीति इसीलिए कही जाती है कि इस नीति पर चलने वाला शख्स दिखाई नहीं देता और बड़े दुश्मन को धराशायी करने के लिए छोटे दुश्मन को कुछ देर के लिए भूल जाता है। आजम खान भी अखिलेश को कमजोर करने के लिए हाल-फिलहाल अमर सिंह को भूल गये हैं और सपा सुप्रीमो को शिवपाल के पक्ष में ही बने रहने में अपना योगदान करते नजर आ रहे हैं, इस सबके बीच चाल अखिलेश ने भी चल दी है, वे रानी के रूप में प्रदेश अध्यक्ष का दायित्व गंवा चुके हैं और कई प्यादे भी मरवा चुके हैं, लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि शतरंज के खेल में रानी गंवाने के बाद मिली जीत के मायने और बड़े हो जाते हैं।
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