ठा. अमर सिंह, यह नाम सुनने वाले व्यक्ति के दिमाग में एक ऐसे व्यक्ति की तस्वीर उभर आती है, जो भारतीय राजनीति का अब तक का सबसे बदनाम दलाल है, जिस पर किसी को भी विश्वास नहीं है, जो कुछ भी बोल सकता है, जो अपने कहे शब्दों से ही पलट जाता है और जो चरित्रहीन है। अमर सिंह के माता-पिता का नाम हरिश्चन्द्र और शैलकुमारी है, उनके नामों की गरिमा तार-तार कर देने वाले अमर सिंह का बस यही परिचय है और सभी इसी रूप में उन्हें जानते हैं। विश्वासघाती और शातिर दिमाग व्यक्ति होने के कारण अमर सिंह के चंगुल में दिल्ली का कोई नेता कभी नहीं फंसा। हालांकि अमर सिंह के तमाम राजनेताओं से संबंध माने जाते हैं, लेकिन अमर सिंह से संबंध राजनैतिक नहीं, बल्कि व्यापारिक ज्यादा कहे जा सकते हैं। राजनेताओं से अमर सिंह के इस हाथ दे और उस हाथ ले वाले रिश्ते रहे हैं, इसी तरह के संबध उद्योगपतियों और बॉलीवुड के कलाकारों से रहे हैं, लेकिन ऐसे रिश्ते सिर्फ बुद्धि और व्यवहार से आगे नहीं बढ़ाये जा सकते, पास में शक्ति भी होनी चाहिए। शातिर दिमाग अमर सिंह ने समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के प्रभावशाली नेता मुलायम सिंह यादव को अपने चंगुल में फांसा, जो अनजाने में अमर सिंह की शक्ति का स्रोत बन गये।
मुलायम सिंह यादव ग्रामीण परिवेश के व्यक्ति थे और प्रभावशाली नेता व मुख्यमंत्री रहने के बावजूद हाई-प्रोफाइल कल्चर से पूरी तरह अनिभिज्ञ थे। लुटियंस की गलियों के बारे में उन्हें नहीं पता था, सो अमर सिंह का जादू मुलायम सिंह यादव पर बड़ी तेजी से असर कर गया। चूँकि मुलायम सिंह यादव का न कोई सपना था और न ही कोई आकांक्षा, सो वे वहां पहुंचने भर से ही खुश थे, साथ ही मुलायम सिंह यादव को अपनी राजनैतिक हैसियत का भी अहसास नहीं था, उनकी इसी सरलता का अमर सिंह ने जमकर दुरूपयोग किया। मुलायम सिंह यादव का चेहरा दिखा कर अमर सिंह ने हर क्षेत्र में संबंध स्थापित किये और उनको हर तरह से भुनाया, जिसे मुलायम सिंह यादव समझते रहे कि यह सब अमर सिंह का है, इसी भ्रमजाल में अमर सिंह ने पूरे परिवार को ही फंसा लिया था। राजनीति से हट कर अमर सिंह की हैसियत परिवार में भी दूसरे नंबर की हो गई थी। अमर सिंह परिवार में यह तक तय करने लगे कि किस शहर और किस कॉलेज में किस युवा को पढ़ना है। दूसरी पीढ़ी मुलायम जितना ही सम्मान देती थी और कई सारी फरमाईशें भी अमर सिंह से ही करती थी, जिसे शातिर दिमाग अमर सिंह इसलिए पूरा करते थे कि दूसरी पीढ़ी ता-उम्र उनकी गुलाम बनी रहे। सैफई महोत्सव में बॉलीवुड का तड़का दूसरी पीढ़ी की मांग पर ही अमर सिंह ने लगाया था, इस बीच प्रो. रामगोपाल यादव दिल्ली की राजनीति समझने लगे थे। छन कर ही सही, पर अमर सिंह के कुकृत्य उनके संज्ञान में आने लगे थे, इसके अलावा अमर सिंह से जिनका सौदा नहीं हो पाता, ऐसे असंतुष्ट लोग भी प्रो. रामगोपाल यादव से मिलने लगे, इसी दौर में दूसरी पीढ़ी युवा हो रही थी, जो लुटियंस के साथ अमेरिका तक की गलियों से परिचित थी, सो सभी बहुत जल्द समझ गये कि अमर सिंह कौन हैं, क्या हैं और क्या कर रहे हैं, लेकिन सवाल यह था कि मुलायम सिंह यादव के सामने अमर सिंह का चिट्ठा कौन खोले?
समय का पहिया घूमता रहा और वर्ष- 2008 आया। वामदलों ने परमाणु मुददे पर यूपीए सरकार से समर्थन वापस लिया। अमर सिंह जैसे शातिर दिमाग व्यक्ति ऐसे अवसरों की ही तलाश में रहते हैं, सो अमर सिंह ने कॉंग्रेस और अमेरिका तक तेजी से जाल बिछाया, जिसकी मुलायम सिंह यादव को भनक नहीं लगने दी, उनसे यूपीए सरकार को यूं ही समर्थन दिला दिया, जबकि अमर सिंह के जीवन का सबसे बड़ा गेम था वह, जो तत्काल खुल भी गया। हालांकि वह सब सार्वजनिक नहीं हो पाया और न ही जांच का विषय रहा, पर अमर सिंह को सपा से बाहर करने के मुददे पर मुलायम को मौन होना पड़ा। समाजवादी पार्टी से बाहर होने के बाद अमर सिंह ने कई तरह के हथकंडे अपनाये। कई सारी व्यक्तिगत बातें सार्वजनिक करने की धमकियां दी गईं। मुलायम भोलेपन में अमर सिंह के चंगुल में थे, स्वार्थ और डर में थोड़े ही थे, सो मुलायम ने अमर सिंह की धमकियों पर ध्यान तक नहीं दिया। इमोशनल ड्रामा भी किया, लेकिन मुलायम मूर्ख नहीं, बल्कि भोले हैं, इसलिए वो भी बे-असर रहा, इसके बाद अमर सिंह ने लोकमंच बनाया, जिसमें तमाम प्रयासों के बावजूद लोक सम्मलित नहीं हुआ। राजनीति से संन्यास लेने की भी बात कही, पर जो कोठे की चमक-दमक में रह ले, उसके लिए कोठा छोड़ पाना आसान नहीं होता, वैसे ही अमर सिंह भी नहीं छोड़ पाये।
इधर मुलायम के परिवार में बदलाव हुआ, उनके बेटे अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। अमर सिंह जितना तो नहीं, पर मुलायम के भोलेपन का दुरूपयोग करते रहे उनके ही अनुज शिवपाल सिंह यादव की सीमायें अखिलेश यादव ने तय कर दीं, वहीं मुलायम की दूसरी पत्नी साधना गुप्ता के पुत्र प्रतीक भी बड़े हो गये, उनकी शादी भी हो गई और उनकी पत्नी अपर्णा यादव भांवरें पड़ते ही शॉट लगाने को उतावली सी नजर आने लगी। अपर्णा की तेज चाल देख कर लगा कि वह मुलायम की पुत्रवधू नहीं, बल्कि उनकी राजनैतिक वारिस बनने आई है। राजनीति की सड़क पर अखिलेश यादव सेफ ड्राइविंग करते हुए इस सतर्कता से आगे बढ़ रहे थे कि किसी भी स्थिति में एक्सीडेंट न हो। अखिलेश यादव की सेफ ड्राइविंग से शिवपाल और साधना सर्वाधिक परेशान थे, क्योंकि गलती के बिना आक्रमण नहीं कर पा रहे थे, सो बेचैनी बढ़ती जा रही थी। अमर सिंह दूर भले ही थे, लेकिन उनकी कुदृष्टि घटनाक्रम पर ही जमी हुई थी। अमर सिंह ने तेजी से शिवपाल और साधना से संपर्क साधा और फिर न सिर्फ नजदीक आ गये, बल्कि राज्य सभा में भी घुसने में कामयाब हो गये। अखिलेश के विरुद्ध प्रदेश भर में चुनाव लड़ने वाले अमर सिंह पहले जैसी ही हनक-सनक चाहते थे, लेकिन अखिलेश ने अपनी गाड़ी की स्टेयरिंग अमर सिंह के हाथ में नहीं दी, इससे अमर सिंह बौखला गये और ठीक पीछे चल रही शिवपाल की गाड़ी की रेस बढ़वा कर स्टेयरिंग में अपना हाथ मार दिया, संतुलन बिगड़ा और शिवपाल की गाड़ी अखिलेश की गाड़ी से टकराती, उससे पहले अखिलेश ने अपनी गाड़ी के ब्रेक लगा दिए। शिवपाल की गाड़ी डिवाइडर से टकराते हुए आगे बढ़ती रही, जिससे गाड़ी क्षतिग्रस्त हो गई और वे स्वयं भी चोटिल हो गये। मुलायम सिंह यादव ने तेजी से आकर शिवपाल की गाड़ी हवा में उठा ली, जिससे शिवपाल गंभीर स्थिति में जाने से बच गये। अमर सिंह के लिए यह मायने नहीं रखता कि शिवपाल का क्या हुआ, उनके लिए दुःख की बात यह होगी कि अखिलेश का नुकसान नहीं हुआ, साथ ही दहशत की बात यह है कि अखिलेश को यह पता भी चल गया कि शिवपाल की स्टेयरिंग में अमर सिंह ने हाथ मारा था, इसलिए अखिलेश अपनी गाड़ी से रौंदे बिना छोड़ेंगे भी नहीं। अब देखने वाली बात यह रहेगी कि अमर सिंह कितने दिन स्वयं को बचा पाते हैं।