प्रशासनिक व्यवस्था इतनी जटिल है कि यहाँ एक बार जो लिख जाये, वह गलत ही क्यों न हो, उसे सही करना बड़ा मुश्किल हो जाता है। सोत नदी के प्रकरण में भी ऐसा ही हो रहा है। जमीनी और कागजी सच्चाई सभी को पता है, सभी को दिख रहा है कि दिनदहाड़े उनकी आँखों के सामने सोत नदी की हत्या कर दी गई है, लेकिन सज्जाद नाम के एक मामूली लेखपाल की रिपोर्ट समूची व्यवस्था पर हावी है, उसकी रिपोर्ट के विरुद्ध जाकर कोई कार्रवाई नहीं कर पा रहा। राजनैतिक रूप से बेहद शक्तिशाली और शातिर भू-माफियाओं ने नदी पर कब्जा करने से पहले कागजी रूप से बड़ी तैयारी की है। तहसील स्तर से रिकॉर्ड गायब है, या उसमें हेरा-फेरी करा दी गई है, जिसमें मुख्य भूमिका लेखपाल सज्जाद की बताई जा रही है, इस पर भी करोड़ों की नामी-बेनामी संपत्ति बताई जाती है।
उल्लेखनीय है कि बदायूं शहर के उत्तर-दक्षिण से होकर गुजर रही सोत नदी की लाखों लोगों के सामने हत्या कर दी गई है, जिसे कब्जा मुक्त कराने का मुद्दा उठता रहता है। सपा सरकार में निवर्तमान जिलाधिकारी पवन कुमार ने रूचि दिखाई, तो तहसील स्तर से रिपोर्ट लगा दी गई कि नदी पर कब्जा नहीं किया गया है, उसका क्षेत्रफल सुरक्षित है। चुनाव के दौरान भाजपा प्रत्याशी के रूप में महेश चंद्र गुप्ता ने सोत नदी को कब्जा मुक्त कराने का वादा किया था। सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी से मिलते ही उन्होंने सोत नदी को कब्जा मुक्त कराने का आग्रह किया, तो मुख्यमंत्री ने तत्काल जिलाधिकारी अनीता श्रीवास्तव से फोन पर बात की और सोत नदी को विधिवत कब्जा मुक्त कराने का आदेश दिया।
मुख्यमंत्री के आदेश के क्रम में जिलाधिकारी ने सीडीओ की अध्यक्षता में टीम गठित कर सोत नदी को कब्जा मुक्त कराने का आदेश दे दिया। सीडीओ ने माथापच्ची की, लेकिन लेखपाल सज्जाद द्वारा फैलाये गये मकड़जाल में वे भी उलझ गये और चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं। जिस लेखपाल, जिस कानूनगो, जिस तहसीलदार और जिस एसडीएम ने कब्जा कराया है, वह स्वयं को फंसाने वाली कार्रवाई कर ही नहीं सकते। सच्चाई सीडीओ अच्छे लाल सिंह यादव भी जान गये हैं, लेकिन कागजों के अभाव में कार्रवाई नहीं कर पा रहे हैं। उन्होंने 18 मई को नदी से संबंधित समस्त रिकॉर्ड तलब किया है, जिसे वे स्वयं जाचेंगे। रिकॉर्ड कितना पहुंचेगा, या कैसा पहुंचेगा, यह 18 मई को ही ज्ञात हो सकेगा। हाल-फिलहाल लेखपाल सज्जाद चर्चा का विषय बना हुआ है, उसकी रिपोर्ट को सीडीओ और डीएम भी नकार नहीं पा रहे हैं, लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि रिकॉर्ड में हेरा-फेरी और उल्टी रिपोर्ट लगाने के आरोपी सज्जाद के विरुद्ध कोई मुकदमा भी दर्ज नहीं करा रहा है, जबकि अब तक उसे सलाखों के पीछे होना चाहिए था, जिससे लग रहा है कि शीर्ष अफसरों की सोच भी स्पष्ट नहीं है। यहाँ यह भी बता दें कि सोत नदी के अलावा अन्य जमीनों पर भी सज्जाद ने मोटी रकम लेकर कब्जे कराये हैं, जिनमें प्राचीन तालाब भी शामिल हैं और कब्जा करने वाले कुछेक माफिया भाजपा में भी आ चुके हैं, जो सज्जाद के मददगार साबित हो रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि सज्जाद पर करोड़ों रूपये की नामी-बेनामी संपत्ति है, जिसकी जांच होना चाहिए।
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