देश के तीसरे सर्वाधिक लोकप्रिय राजनैतिक दल समाजवादी पार्टी की स्थापना मुलायम सिंह द्वारा 4 अक्टूबर 1992 को की गई थी। स्थापना के दिन से ही समाजवादी पार्टी और मुलायम सिंह यादव की लोकप्रियता लगातार बढ़ती रही है, जो निरंतर जारी है, ऐसा कड़े संघर्ष के चलते संभव हो पाया है। समाजवादी पार्टी पच्चीसवें वर्ष में प्रवेश कर रही है, इस क्षण को बेहद अहम मानते हुए पार्टी जश्न मना रही है। जश्न मनाना भी चाहिए, क्योंकि तमाम उतार-चढ़ाव के बावजूद समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि देश की रजनीति में अपनी अहम भूमिका बनाने में सफल रही है।
समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव का जन्म 22 नवंबर 1939 में फिरोजाबाद जिले की शिकोहाबाद तहसील क्षेत्र के मूल निवासी विपरीत परिस्थितियों से जूझ रहे गरीब किसान सुधर सिंह और मूर्ति देवी के घर दूसरे बेटे के रूप में हुआ था, जो इटावा जिले के गाँव सैफई आकर बस गए थे। मुलायम सिंह यादव का लालन-पालन सैफई में ही हुआ है, उन पर राजनीति में आने के बाद तमाम गंभीर आरोप लगते रहते हैं, लेकिन अन्य तमाम राजनैतिक दलों के समकक्ष नेताओं को सामने रख कर तुलनात्मक अध्ययन किया जाये, तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि मुलायम सिंह यादव और उनके द्वारा तराशी गई युवा पीढ़ी के सामने आज भी कोई नहीं ठहर सकता, इस पर शायद ही किसी को आपत्ति होगी कि समाजवादी विचारधारा को आगे बढ़ाने का काम सिर्फ समाजवादी पार्टी ही कर रही है।
बात मुलायम सिंह यादव की करें, तो उन्होंने परंपरागत तरीके से स्थापित घरानों से छीन कर राजनीति को आम आदमी के स्तर का बनाया है। उस दौर में जनप्रतिनिधियों को आम जनता राजा ही समझती थी, ऐसे माहौल में समाजवादी पार्टी का गठन कर मुलायम सिंह यादव ने आम जनता के सामने ऐसा विकल्प रखा, जिसके प्रतिनिधि राजा नहीं, बल्कि उसके बीच के लोग थे, तभी आम जनता ने समाजवादी पार्टी को हाथों-हाथ लिया। समाजवादी पार्टी पर बाहुबलियों को संरक्षण देने का आरोप लगता रहा है। सामान्यतः देखा जाये, तो आरोप सही लगता है, लेकिन आरोप की पृष्ठभूमि में जाकर देखें, तो समझ आयेगा कि आरोप में सच्चाई नहीं, बल्कि सपा को कमजोर करने का षड्यंत्र रचा गया था, जिसे आम जनता नकारती रही है। असलियत में उस दौर में राजनीति पर अधिकांशतः घाघ किस्म के शातिर लोग हावी थे, जो प्रतिद्वंदी को अपने षड्यंत्रों में फांस कर बदनाम कर देते थे, अथवा हत्या करवा देते थे, ऐसे लोगों के नीचे से कुर्सी खींच लेना आसान कार्य नहीं था। मुलायम सिंह यादव ने ऐसी टीम बनाई, जिससे आम जनता प्रेम करे और परंपरा के आधार पर राजनीति में हावी लोग देखते ही रास्ता छोड़ दें और वे इसमें किसी हद तक सफल भी हुए। राजनीति में समाजवादी पार्टी के स्थापित होते ही उन्होंने बदनाम चेहरों से आसानी से किनारा भी किया, क्योंकि उनकी सोच बाहुबलियों को बढ़ावा देने की नहीं, बल्कि कांटे से कांटा निकालने वाली रही।
मुलायम सिंह यादव युवा काल से ही क्रांतिकारी किस्म के रहे हैं, इसलिए दुश्मन भी युवा काल से ही उनके पीछे पड़ गये थे, उन पर हमले होते रहे हैं, उनकी हत्या के षड्यंत्र रचे जाते रहे हैं। वे जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष चुने गये, तब उन्होंने बलरई में एक सहकारी बैंक खोला, जहाँ उन्हें गोली मारी गई, लेकिन नाटे कद के चलते गोली उनके ऊपर से निकल गई और पीछे खड़े एक लंबे व्यक्ति के सीने में जाकर धंस गई, इसके बाद छोटे भाई शिवपाल सिंह यादव उनकी सुरक्षा का दायित्व संभालने लगे। बीहड़ के आसपास के क्षेत्र में उन दिनों अपनी अलग राजनीति करना जितना कठिन था, उतना झेलने के बाद ही मुलायम सिंह यादव यहाँ तक पहुंचे हैं। मुलायम सिंह यादव पर आज विरोधी परिवारवाद का आरोप लगा देते हैं, लेकिन साथ में यह नहीं जोड़ते कि वंशवाद और अपराध के घालमेल से बनी राजनीति की कुर्सी पर बैठे लोगों से टकराने में मुलायम के साथ परिवार भी रहा है। मुलायम के असली व्यक्तित्व को समझने के लिए वर्ष 1960 की घटना का उल्लेख करना भी आवश्यक है। मैनपुरी जिले के करहल स्थित जैन इंटर कॉलेज में हो रहे कवि सम्मेलन में विख्यात कवि दामोदर स्वरूप ‘विद्रोही’ अपनी चर्चित रचना ‘दिल्ली की गद्दी सावधान’ सुना रहे थे, तभी एक पुलिस इंस्पेक्टर ने उनसे माइक छीन कर कहा कि सरकार के विरुद्ध कवितायें पढ़ना बंद करो, इस पर एक लड़का फुर्ती से मंच पर चढ़ा और उसने इंस्पेक्टर को मंच पर ही उठाकर पटक दिया, जो मुलायम सिंह यादव ही थे, उस वक्त वे नेता नहीं, बल्कि आम युवा थे, अर्थात उनकी सोच युवा काल से ही क्रांतिकारी थी। चौंकाने वाली बात तो यह है कि मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, तो उन्होंने सानुरोध दामोदर स्वरूप ‘विद्रोही’ को उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का साहित्य भूषण सम्मान दिया, उन्हें क्या आवश्यकता थी ऐसा करने की, वे तो आगे बढ़ ही रहे थे, इस घटना का मंथन करने वाले ही समझ सकते हैं कि मुलायम सिंह यादव असलियत में क्या हैं। समाजवादी पार्टी ने अनगिनत सफल आंदोलन किये हैं। सत्ता और घाघ राजनेताओं से सीधा टकराव रहा है। आम आदमी की राजनीति करने वाली समाजवादी पार्टी ने आम आदमी के तरीके से आंदोलन किये हैं। बड़े घरानों के दबाव में एक मीडिया संस्थान समाजवादी पार्टी की गलत तस्वीर पेश कर रहा था, तब मुलायम सिंह यादव ने हल्ला बोल नाम से आंदोलन शुरू कर दिया था, उस दौर में देश भर में हल्ला बोल शब्द को लेकर व्यापक स्तर पर चर्चा हुई थी।
सहकारिता और पशुपाल मंत्री के रूप में लखनऊ में बैठने के बाद मुलायम सिंह यादव आठ बार विपक्ष के नेता और तीन बार मुख्यमंत्री बन चुके हैं। प्रधानमंत्री बनने की कतार में थे, जिससे चूक गये, पर देश के रक्षामंत्री का दायित्व भी संभाल चुके हैं। राजनैतिक विकल्प होने के बावजूद कांग्रेस और भाजपा से समर्थन लेते-देते रहे हैं, लेकिन दोनों से ही समान दूरी भी रखते रहे हैं, ऐसा सिर्फ मुलायम सिंह यादव ही कर सकते हैं। वे कब क्या कर बैठें, इस बारे में कोई भी संभावना व्यक्त नहीं कर सकता। पिछले राष्ट्रपति चुनाव की बात करें, तो उन्होंने यूपीए समर्थित उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी को समर्थन देने का वादा कर दिया, लेकिन मतदान के समय उन्होंने विरोधी प्रत्याशी पी.ए. संगमा के नाम के आगे निशान लगाया, जिससे उनका मत निरस्त हो गया, इस घटना को कुछ ने सामान्यतः लिया, तो कुछ राजनीतिज्ञों ने बड़ी चाल कहा, क्योंकि ऐसा करने से उन्होंने दोनों पक्षों को साध लिया।
अधिकांश उपलब्धियां मुलायम सिंह यादव और समाजवादी पार्टी की समान ही हैं, लेकिन लंबी यात्रा तय करने के बावजूद समाजवादी पार्टी को गाँव और गरीब की पार्टी कहा जा रहा था। शहरी नागरिक और युवा वर्ग समाजवादी पार्टी से दूरी बनाये हुए थे, इस कमी को मुलायम की दूसरी पीढ़ी ने पूरा कर दिया। मुलायम से ही राजनीति की वर्णमाला सीखने वाले अखिलेश यादव और धर्मेन्द्र यादव ने समाजवादी पार्टी से शहरियों और युवाओं को भी जोड़ दिया, तो समाजवादी पार्टी ने न सिर्फ उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बना ली, बल्कि देश की प्रमुख पार्टी बन कर उभर आई। समाजवादी पार्टी की चर्चा आज न सिर्फ दिल्ली, बल्कि मुंबई और देश से बाहर भी होने लगी है। बीस वर्ष पहले किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि मुलायम जैसा नेतृत्व समाजवादी पार्टी को मिल सकेगा, लेकिन अखिलेश यादव की कार्यप्रणाली देखने के बाद आम जनता यह कहने लगी है कि अखिलेश तो मुलायम से भी बेहतर हैं, इस पर मुलायम सिंह यादव को भी गर्व ही होता होगा।
इंटरनेट के दौर में पोस्टकार्ड से काम नहीं चलेगा। लग्जरी गाड़ियों और प्लेन की रफ्तार के सामने साईकिल से मुकाबला नहीं किया जा सकता। समय के साथ स्वयं में परिवर्तन लाना आवश्यक होता है, उस परिवर्तन का नाम ही अखिलेश यादव है। अखिलेश साईकिल से दूर नहीं गये हैं, वे साईकिल को भी अपने साथ चुनाव प्रचार के समय पजेरो और बीएमडब्ल्यू में रख कर घूमते रहे हैं, ऐसा करना समय की जरूरत है। समाजवादी पार्टी पच्चीसवें वर्ष में प्रवेश कर रही है, इस परिवर्तन को स्वीकार करने का इससे बेहतर समय नहीं हो सकता। समूचे नेतृत्व और समस्त कार्यकर्ताओं को जयंती के अवसर पर संकल्प लेना चाहिए कि समय के साथ वे सब भी आगे आयेंगे, क्योंकि समाजवादी पार्टी के द्वारा अभी गौरवशाली इतिहास लिखा जाना शेष है।
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