समाजवादी पार्टी के अंदर अभी भी सब कुछ ठीक नजर नहीं आ रहा है। पार्टी के अंदर पहली पीढ़ी के नेताओं को हाशिये पर धकेलने का कार्य निरंतर जारी है। मुलायम सिंह यादव, शिवपाल सिंह यादव और अमर सिंह के बाद अखिलेश यादव का अगला निशाना बने हैं वरिष्ठ नेता आजम खान। हाल-फिलहाल माना जा रहा था कि अखिलेश और आजम एक ही हैं लेकिन, आजम खान की इच्छा के विपरीत अखिलेश यादव ने डॉ. मौलाना यासीन अली उस्मानी को समाजवादी पार्टी की अल्पसंख्यक सभा का राष्ट्रीय अध्यक्ष मनोनीत कर दिया है। डॉ. मौलाना यासीन अली उस्मानी के मनोनयन की सूचना सार्वजनिक होते ही आजम खान का समाजवादी पार्टी में कद घटने की चर्चायें जोर पकड़ गई हैं।
आजम खान समाजवादी पार्टी से 1993 में जुड़े थे, जिसके बाद वे समाजवादी पार्टी को ही सींचने में जुटे रहे, उन्होंने मुलायम सिंह यादव को “नेता जी” नाम दिया लेकिन, जया प्रदा को लेकर अमर सिंह के दबाव में मुलायम सिंह यादव ने आजम खान को 6 साल के लिए सपा से निष्कासित कर दिया पर, आजम खान कहीं और नहीं गये, वे निर्वासित जीवन जीते रहे, फिर दौर बदला, अमर सिंह का दबाव कम हुआ तो, 4 दिसंबर 2010 में उनका निष्कासन रद्द कर दिया गया, जिसके बाद से माना जा रहा था कि मुलायम सिंह यादव के बाद सपा में आजम खान ही हैं।
विधान सभा चुनाव से पहले हाई-प्रोफाइल पारिवारिक विवाद हुआ, जिसमें सभी प्रमुख लोग निष्कासित हुए, फिर वापस हुए मतलब, अखिलेश यादव, शिवपाल सिंह यादव, प्रो. रामगोपाल यादव और अमर सिंह कभी पार्टी से निकाले गये तो, कभी अंदर आये और अंत में समाजवादी पार्टी अखिलेश यादव के कब्जे में आ गई, इस पूरे घटनाक्रम में आजम खान ने सुलह का प्रयास किया और खुल कर अखिलेश यादव के साथ भी खड़े हुए, इस घटना क्रम के बाद मुलायम सिंह यादव, शिवपाल सिंह यादव और अमर सिंह पूरी तरह किनारे कर दिए गये, इसलिए पुनः यह माना जाने लगा कि अखिलेश यादव के बाद भी दो- नंबर की भूमिका पर आजम खान ही हैं।
आजम खान का बदायूं शहर के निवर्तमान विधायक व पूर्व दर्जा राज्यमंत्री आबिद रजा से आत्मीय रिश्ता है लेकिन, आबिद रजा और डॉ. मौलाना यासीन अली उस्मानी के दिलों में दूरियां हैं, इसीलिए आजम खान भी डॉ. यासीन अली उस्मानी से दूरी बना कर रखते हैं। सपा सरकार में डॉ. यासीन अली उस्मानी को दर्जा राज्यमंत्री मनोनीत किया गया था लेकिन, आजम खान ने भनक लगते ही बना हुआ पत्र निरस्त करा दिया था, साथ ही आबिद रजा को राज्यमंत्री का दर्जा दिलाया था।
विधान सभा चुनाव से पहले ही सांसद धर्मेन्द्र यादव और आबिद रजा के बीच भी विवाद हुआ था, जिसके बाद आबिद रजा को भी पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था और डॉ. यासीन अली उस्मानी को श्रम संविदा सलाहकार बोर्ड का अध्यक्ष बना कर सत्ता की ताकत सौंपते हुए आबिद रजा के विकल्प के रूप में खड़ा करने का प्रयास किया गया था लेकिन, तमाम प्रयासों के बावजूद डॉ. यासीन अली उस्मानी आम जनता के बीच हीरो नहीं बन पाये, वे मृदुभाषी हैं, व्यवहार कुशल हैं, लेकिन जनाधार के मामले में आबिद रजा के सामने नहीं ठहर पाते।
खैर, अखिलेश यादव और आजम खान के हस्तक्षेप से सांसद धर्मेन्द्र यादव और आबिद रजा के बीच जमी बर्फ भी पिघल गई और हालात सामान्य हो गये। अब सवाल यह उठ रहा है कि सब कुछ सही होने के बावजूद गड़बड़ कहाँ है?, इस सवाल का उत्तर खोजने का प्रयास किया गया तो, अखिलेश यादव अब किसी के भी दबाव में रहना नहीं चाहते। बदायूं शहर में हाल ही में सपा का नगर अध्यक्ष बदला गया है, सांसद के चहेते को हटा कर आबिद रजा के चहेते को बनाया गया है। हालाँकि सहमति सांसद की ही थी लेकिन, आम जनता के बीच आबिद रजा के हावी होने का संदेश चला गया, इसके अलावा आंवला लोकसभा क्षेत्र, रामपुर लोकसभा क्षेत्र, अमरोहा लोकसभा क्षेत्र के साथ ही अन्य कई क्षेत्रों में चहेते प्रत्याशियों को लेकर आजम खान का अखिलेश यादव पर दबाव बताया जा रहा है, इस सबसे पार पाने के लिए अखिलेश यादव ने आजम खान की इच्छा के विपरीत डॉ. यासीन अली उस्मानी को अल्पसंख्यक सभा का राष्ट्रीय अध्यक्ष मनोनीत किया है, इस सबसे सपा लाभ में रहेगी या, हानि में, इसको लेकर अभी से कुछ कह पाना मुश्किल है। आजम खान और आबिद रजा की प्रतिक्रिया के बाद ही स्थिति स्पष्ट हो सकेगी।
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