बदायूं जिले के सहसवान विधान सभा क्षेत्र में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के रूप में ओमकार सिंह यादव विजयी घोषित किये गये हैं, उनकी जीत कई मायनों में बहुत बड़ी मानी जा रही है। प्रचंड मोदी लहर के अलावा अधिकांश क्षेत्रीय नेता उनके विरोध में खड़े थे, कुछेक नेता तो भितरघात भी कर रहे थे, लेकिन आम जनता ने उनका साथ नहीं छोड़ा।
ओमकार सिंह यादव पांच बार विधायक चुने गये हैं, लेकिन वे कभी भी लगातार दो बार विजयी नहीं हो सके हैं, पर इस बार उन्होंने इस क्रम को तोड़ दिया। हाल-फिलहाल वे सपा सरकार में ग्राम्य विकास राज्यमंत्री थे, उनके सुपुत्र ब्रजेश यादव जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष हैं। राज्यमंत्री बनने के बाद ओमकार सिंह यादव की व्यस्ततायें बढ़ गईं, तो विधान सभा क्षेत्र की कमान पूरी तरह से उनके बेटे ब्रजेश यादव ने संभाल ली। ओमकार सिंह यादव अनुभवी हैं और मृदुभाषी हैं, वे विरोधियों को भी नहीं दुत्कारते, लेकिन ब्रजेश यादव सिर्फ अपनों से प्रेम करते हैं, वे विरोधियों को पास फटकने भी नहीं देते। पिता-पुत्र में यह बढ़ा अंतर है। ब्रजेश ने स्वार्थी किस्म के मठाधीशों को किनारे कर दिया और आम जनता से सीधे संबंध बना लिये, जिससे क्षेत्र के अधिकांश मठाधीश उनसे चिढ़ गये, जिससे चुनाव में उनका कुछ खुल कर, तो कुछ अंदर ही अंदर विरोध करने लगे।
सहसवान नगर पालिका के अध्यक्ष नूरुद्दीन सपा के मंचों पर तो रहे, लेकिन पीछे से ओमकार सिंह यादव की बगावत करते रहे, जिसके चलते चुनाव बाद उन्हें सपा से निष्कासित कर दिया गया, इसी तरह इस्लामनगर नगर पालिका के अध्यक्ष वीरेंद्र कुमार लीडर और उनके भाई जिला पंचायत सदस्य कुलदीप गुप्ता खुल कर विरोध कर रहे थे, वहीं पूर्व ब्लॉक प्रमुख ठा. श्रीपाल सिंह ने भी उन्हें हराने के लिए अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगा रखी थी, इसके अलावा उनके मुकाबले बसपा से धनबली अरशद अली चुनाव लड़ रहे थे, जिन्होंने हेलीकॉप्टर से प्रचार किया और कई फिल्मी कलाकारों का भी सहारा लिया, इसी तरह डीपी यादव की पत्नी उमलेश यादव भी प्रभावशाली हैं, जो अपने रापद से ही चुनाव लड़ रही थीं, लेकिन सब कुछ दरकिनार कर आम जनता ने ओमकार सिंह यादव को ही आशीर्वाद दिया। हालाँकि सहसवान विधान सभा क्षेत्र के लिए सांसद धर्मेन्द्र यादव ने भी वरीयता दी, उन्होंने कई बार अलग-अलग स्थानों पर सभाओं को संबोधित किया, जिससे रुष्ट आम जनता का गुस्सा दब गया, फिर भी ओमकार सिंह यादव की जीत व्यक्तिगत रूप से बड़ी कही जायेगी, क्योंकि क्षेत्रीय मठाधीश सांसद के प्रयासों से भी पक्ष में नहीं आये थे।
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