बदायूं जिले में सत्ता परिवर्तन के बाद भी हालातों में सुधार नहीं हो पा रहा है। रिश्वत लेने वाले, दलाली करने वाले और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वालों के सिर्फ चेहरे बदले हैं, बाकी सब यथावत चल रहा है। आम आदमी तक मूलभूत सुविधायें आज भी नहीं पहुंच पा रही हैं, जिससे त्राहि-त्राहि मची हुई है।
भ्रष्टाचार का राक्षस जिले भर में और हर विभाग में हावी है, लेकिन बात पूर्ति विभाग की करें, तो इस विभाग में सिर्फ भ्रष्टाचार ही है, और कुछ नहीं है। रिश्वतखोरों से भरे इस विभाग में दलालों और नेताओं का भी सर्वाधिक दखल है, इसीलिए अभियान चला कर क्षेत्रवार लूट की जा रही है, इस लूट में हर प्रभावशाली आदमी संलिप्त बताया जा रहा है। सहसवान विधान सभा क्षेत्र में हालात और भी भयावह हैं। बताया जा रहा है कि सरकार बदलते ही प्रत्येक कोटेदार से पचास हजार रूपये की मांग की गई और जिसने नहीं दिए, उसे जेल भेजने का प्रयास किया गया, दुकान निलंबित करा दी गई, कुछेक को तो पुलिस से भी धमकवाया गया है। राशन कोटे को लेकर एक बड़े भाजपा नेता की पिटाई भी हो चुकी है, जिससे पार्टी और सरकार की बड़ी फजीहत हुई थी।
सहसवान तहसील क्षेत्र में व्यवस्थायें किस स्तर तक खराब हो गई हैं, यह एक ऑडियो से सिद्ध हो रहा है। एक ऑडियो सामने आया है, जिसमें गाँव कोल्हार के राशन डीलर मुकेश मौर्य और पूर्ति निरीक्षक संतोष श्रीवास्तव के बीच मोबाइल पर हुई बातचीत है। मुकेश की दुकान निलंबित चल रही है, वह बहाल करने को फोन करता है, तभी बातचीत के बीच में कई सारी बातें सामने आती रहती हैं। मुकेश दुकान को बहाल कराने के लिए 1 लाख 10 हजार रूपये दे चुका है, तभी पूर्ति निरीक्षक संतोष रिकार्डिंग को लेकर सतर्क हो जाता है और फिर कहता है कि उसने रूपये वापस कर दिए। हालाँकि मुकेश का कहना है कि रूपये वापस नहीं किये है, पर सच मान लें, तो भी यह तो सिद्ध हो ही जाता है कि पूर्ति निरीक्षक ने रूपये लिए थे, साथ ही वह एक ओर कह रहा है कि कभी गाँव देखने तक नहीं आया, वहीं धमका भी रहा है कि हिसाब गड़बड़ होने के कारण जेल जाना पड़ सकता है, मतलब रूपये वापस मांगे, तो कार्रवाई हो सकती है।
बताते हैं कि संतोष श्रीवास्तव स्वयं को एक बड़े अफसर का सगा रिश्तेदार बताता है। संतोष का तबादला हो चुका है, लेकिन उसे रिलीव नहीं किया जा रहा है, जिससे उसकी बात सच भी प्रतीत होती नजर आ रही है, जो भी हो। बात परिवर्तन की थी, सुशासन की थी, भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था की थी, जो अभी कोसों दूर नजर आ रही है। आम आदमी त्रस्त ही नजर आ रहा है।
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