बदायूं शहर क्षेत्र से समाजवादी पार्टी के विधायक और दर्जा राज्यमंत्री आबिद रजा पिछले कई दिनों से चर्चाओं में बने हुए हैं। शहर में डाली जा रही बिजली की भूमिगत लाइन को लेकर वह विद्रोही मुद्रा में आये थे और अब अवैध खनन एवं गाय काटने तक की बात करने लगे हैं। उन्होंने आज फिर पिछली कही बातों को दोहराते हुए कहा कि वे बदायूं में पैदा हुए हैं और यहीं उनकी कब्र बनेगी। परदेसी लोगों को बदायूं की जनता से असली प्यार नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि एक सप्ताह के अंदर अवैध खनन, गोकशी और शहर की सड़कें टूटनी नहीं रुकी, तो वह उत्तर प्रदेश वक्फ़ विकास निगम के अध्यक्ष (दर्जा राज्यमंत्री) पद से त्याग पत्र दे देंगे।
आबिद रजा को दबंग नेता के रूप में जाना जाता है। वे अपनी बात बेबाकी से रखते रहे हैं, इसीलिए लोकप्रियता भी मिली, जिसके चलते जिला पंचायत सदस्य से राजनीति शुरू करने वाले आबिद रजा आज विधायक हैं, वे कभी कोई चुनाव नहीं हारे। उन्होंने पिछले दिनों सड़कों के टूटने की बात उठाई, तो अधिकांश लोगों ने उनकी बेबाकी की दाद दी, लेकिन जब वे गाय, गंगा की बात करते हुए अपनी हत्या तक की आशंका जताने लगे, तो लोगों की सोच बदल गई।
अब लोग यह कहने लगे हैं कि जब आबिद रजा नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष थे, तभी से प्राचीन सोत नदी पर लगातार कब्जा हो रहा है, लेकिन उन्होंने अवैध कब्जा करने वालों के विरुद्ध न कोई कार्रवाई की, न प्रेस वार्ता की, न ही सड़क पर उतर कर आंदोलन करने की चेतावनी दी और न ही आंदोलन किया। अब वे विधायक और दर्जा राज्यमंत्री हैं और उनकी पत्नी फात्मा रजा नगर पालिका परिषद की अध्यक्ष हैं। सपा की सरकार बनी है, तब से उनकी जिले में तूती बोलती रही है, इस सबके बीच सोत नदी लगातार संकरी होती रही है, लेकिन संपूर्ण शक्ति के स्वामी होते हुए भी उन्होंने आज तक सोत नदी को कब्जा मुक्त कराने की बात नहीं की।
दातागंज तिराहे पर प्राचीन चंदोखर तालाब कब्जा लिया गया, लेकिन वे न सिर्फ अवैध कब्जे पर मौन रहे, बल्कि तालाब के विरोध में आंदोलन करने वालों को पुलिस ने पीटा और उन पर मुकदमा भी लिखा, वे तब भी नहीं बोले, इससे पहले बीएसएनएल सड़कें खोदता रहा है, वे तब भी आंदोलन करने नहीं आये। अब गाय काटने की बात की जाये, तो वे एक बड़े नेता की ओर इशारा कर रहे हैं, जबकि उन्हें भी भली-भांति ज्ञात होगा कि तस्करों के विरुद्ध उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी कार्रवाई बदायूं जिले में ही हुई थी। 104 तस्करों को एक दिन में गिरफ्तार किया गया था, इससे सिद्ध होता है कि बड़ा नेता तस्करों के साथ नहीं था।
शहर के नाले साफ कराना उनका और उनकी पत्नी का ही दायित्व है। थोड़ी सी बरसात में शहर तालाब बन जाता है, जिसके विरोध में अन्य तमाम लोग आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन आबिद रजा न सिर्फ मौन हैं, बल्कि आंदोलनरत लोगों का शोषण तक करा रहे हैं। बिजली कटौती को लेकर जनता पिछले दिनों त्राहि-त्राहि कर उठी, पर उन्होंने कोई आवाज नहीं उठाई। बाइक चोरी, चेन स्नेचिंग, लूट और हत्याओं के विरोध में भी वे सड़क पर नहीं उतरे, उनके खास कहे जाने वाले नईम उर्फ राजा की हत्या हुई, वे तब भी मौन रहे।
निजी स्कूल अभिवावकों को खुलेआम लूट रहे हैं, जिसके विरोध में अभिवावक शिकायतें करते ही रहते हैं, लेकिन आबिद रजा के अंदर का विद्रोही इंसान निजी स्कूलों के विरोध में भी नहीं जागा। डूडा ने इंटरलॉकिंग सड़कें बनाई हैं, जिसकी ईंट मानक से छोटी है और ईंटों में सीमेंट भी कम बताया जाता है, लेकिन आबिद रजा की नैतिकता ने डूडा के विरुद्ध बोलने को नहीं कहा। बाल विकास विभाग द्वारा बांटा जाने वाला पोषाहार लगातार ब्लैक होता रहा है, लेकिन आबिद रजा की उस ओर कभी नजर तक नहीं गई, जबकि छोटे-छोटे नन्हें-मुन्नों का आहार माफिया डकारता रहा है, ऐसे ही अनिगिनत प्रकरण हैं, जिन पर आबिद रजा का आदर्श सोता रहा, इसलिए सवाल उठ रहा है कि भूमिगत लाइन को लेकर ही आबिद रजा इतने आक्रामक क्यों हो गये?
सूत्रों का कहना है कि सुनील कुमार सक्सेना बदायूं के एसएसपी बन कर आये, तो उन्होंने सट्टा, गोकशी पर आते ही लगाम कस दी। जमीनों पर अवैध कब्जे पुलिस के द्वारा ही हो रहे रहे थे, लेकिन सुनील कुमार सक्सेना के आते ही पुलिस बहुत दूर हट गई। फर्जी मुकदमे दर्ज करा कर लोगों को पुलिस से पिटवाने की परंपरा खत्म हो गई, जिससे दबंगई अचानक से कम होने लगी। सूत्रों का कहना है कि एसएसपी को नहीं हटवाया गया, तो शीर्ष नेताओं को बदनाम करने का अभियान शुरू कर दिया गया, जिसे जनता अब समझ गई है, इसीलिए जनता साथ देने की जगह दूर हटती जा रही है।
आबिद रजा ने बीती रात डीजीपी के वाट्सएप पर मैसेज किया कि मेरी हत्या हो सकती है और एसएसपी उनका फोन नहीं उठा रहे हैं, जबकि उन्हें पहले से ही पांच गनर मिले हुए हैं। असलियत में आबिद रजा ने बड़ी कूटनीति के तहत यह मैसेज किया है। जिस एसएसपी को लेकर वे पार्टी में शक्तिहीन हो गये हैं, उन्हें वे इस तरह हटवाना चाहते हैं। सपा के विद्रोही सही, पर आबिद रजा मौजूदा विधायक तो हैं ही और विधायक के प्रोटोकॉल को आधार बना कर वे एसएसपी को हटवाना चाहते हैं, उनकी जान को वास्तव में खतरा होता, तो लिखित में शिकायत कर मौन हो जाते। डीजीपी को मैसेज करने के बाद वाट्सएप का स्क्रीन शॉट मीडिया में जारी न करते। हाल-फिलहाल अति की बुद्धिमत्ता के चलते आबिद रजा ने अपना राजनैतिक कैरियर चौपट कर लिया है। हल्की-फुल्की बयानबाजी कर के वे सपा के शीर्ष नेताओं को झुकाना चाहते थे, लेकिन सपा नेताओं ने निरर्थक दबाव स्वीकार नहीं किया, जिससे आबिद रजा की चाल बेकार चली गई।