बदायूं जिले की नगर निकायों में व्याप्त भ्रष्टाचार और मनमानी के बारे में संभावना व्यक्त की जा रही थी कि सत्ता परिवर्तन के बाद सब कुछ समाप्त हो जायेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। टीएसी के पद पर लगभग 12 वर्षों से तैनात अविनाश सक्सेना जैसे चाह रहा है, वैसे ही करा रहा है। नियम के विरूद्ध ललितेश सक्सेना और मुकेश जौहरी को ईओ का कार्यभार दिला रखा है। चौंकाने वाली बात यह है कि अविनाश सक्सेना के कारनामों की जानकारी भाजपा के विधायकों को भी है, तभी तीन विधायकों ने अविनाश सक्सेना को हटाने की संस्तुति की है, लेकिन अविनाश सक्सेना की सेटिंग के चलते विधायकों के पत्र रद्दी की टोकरी में डाल दिए गये हैं, जिससे भाजपा विधायकों की बड़ी फजीहत हो रही है।
उल्लेखनीय है कि गिरधारी लाल व अन्य बनाम राज्य सरकार रिट याचिका संख्या- 47309/13 पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय द्वारा स्पष्ट आदेश दिया जा चुका है कि अधिशासी अधिकारी न होने की दशा में अतिरिक्त कार्यभार सिर्फ अधिशासी अधिकारी को ही दिया जाये, इस आदेश के क्रम में 2 जून 2017 को ही नगर विकास विभाग के प्रमुख सचिव कुमार कमलेश ने आदेश जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि अतिरिक्त कार्यभार सिर्फ अधिशासी अधिकारियों को ही दिया जाये एवं नियम विरुद्ध दिए गये कार्यभार तत्काल प्रभाव से निरस्त किये जाते हैं, इसके बावजूद बदायूं नगर पालिका परिषद में कर निर्धारण अधिकारी के पद पर तैनात ललितेश सक्सेना को रुदायन और सखानूं नगर पंचायत में ईओ का कार्यभार दे दिया गया है। बरेली जिले की नगर पंचायत दियोरनियाँ में ट्यूबवैल ऑपरेटर के पद पर नियुक्त किये गये मुकेश जौहरी को बिसौली, फैजगंज बेहटा और बिल्सी में ईओ का दायित्व दे रखा है, यह भी लगभग 12 वर्षों से ईओ का पद हथियाये हुए है, इस सबके पीछे 12 वर्षों से टाउन एरिया क्लर्क के पद पर तैनात अविनाश सक्सेना का शातिर दिमाग माना जाता है। कहा जाता है कि अफसर से सेटिंग कर अनैतिक कार्य अविनाश सक्सेना ही कराता है। सपा सरकार में अविनाश को हटाने की चर्चा हुई, तो अविनाश ने साहू साहब यादव को भी टीएसी बनवा लिया, जिसकी आड़ में मनमानी होती रही।
टीएसी अविनाश सक्सेना इस हद तक हावी है कि भाजपा के तीन विधायकों द्वारा उसे हटाने की संस्तुति के पत्र रद्दी की टोकरी के हवाले कर दिए गये हैं। शासन निरंतर फर्जी ईओ हटाने की बात कह रहा है, पर अविनाश शासनादेशों को भी अहमियत नहीं दे रहा। फर्जी ईओ बनाने को लेकर उच्च न्यायालय का भी स्पष्ट आदेश है। अविनाश की मनमानी के विरुद्ध कोई उच्च न्यायालय की शरण में चला गया, तो अविनाश के साथ एडीएम और डीएम ही नहीं, बल्कि सरकार भी जवाब नहीं दे पायेगी।
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