पानी राष्ट्रीय समस्या बनता जा रहा है। लगातार गिर रहे भू-जलस्तर को लेकर संभावना जताई जा रही है कि भविष्य में हालात और भी भयावह हो सकते हैं। भू-वैज्ञानिक तालाबों और छोटी-छोटी नदियों के संरक्षण का सुझाव देते रहे हैं। चिंतित न्यायालय अलग-अलग प्रकरणों में सरकार को जल संरक्षण से संबंधित कड़े दिशा-निर्देश देता रहा है। न्यायालय तालाबों से अवैध कब्जे हटाने का आदेश पारित कर चुका है, साथ ही न्यायालय तालाबों को समतल करने एवं खनन पर भी रोक लगा चुका है, लेकिन उच्चतम न्यायालय के आदेशों का उत्तर प्रदेश में अक्षरशः पालन होता नजर नहीं आ रहा। देश के साथ उत्तर प्रदेश भी जल संकट से जूझ रहा है। मनुष्य किसी न किसी तरह दोहन कर अपनी आवश्यताओं की पूर्ति कर ही लेता है, लेकिन जल समस्या के चलते सैकड़ों तरह के जीवों की प्रजातियाँ लुप्त हो चुकी हैं। वनस्पति का भी नाश हो रहा है, इसके बावजूद उत्तर प्रदेश सरकार तालाबों और छोटी नदियों को बचाने की दिशा में गंभीर नजर नहीं आ रही है। सरकार खनन पर भी रोक नहीं लगा पा रही है, लेकिन जल संरक्षण और पानी की आपूर्ति का श्रेय लेने में आगे नजर आ रही है। हाल-फिलहाल केंद्र सरकार द्वारा पानी की समस्या से जूझते बुंदेलखंड को भेजी गई ट्रेन विवाद का कारण बनी हुई है। उत्तर प्रदेश सरकार ने पानी लेने से मना कर दिया है, यहाँ सवाल यह उठता है कि नागरिकों की सेवा को लेकर प्रदेश और केंद्र सरकार के समान कर्तव्य हैं, तो पानी पर दोनों सरकारें राजनीति क्यों कर रही हैं?, दोनों सरकारें मिल कर जल संकट से निपटने की दिशा में प्रयास क्यों नहीं कर सकतीं?
खैर, जल संकट के मुददे पर उत्तर प्रदेश सरकार कठघरे में खड़ी नजर आ रही है, क्योंकि तालाबों और छोटी नदियों को बचाने में प्रदेश सरकार असफल साबित हो रही है। पूर्णतयः प्रतिबंध होने के बावजूद खनन पर भी प्रदेश सरकार रोक नहीं लगा पा रही है। ग्राम सभा और नगर निकाय के साथ जिला पंचायत के अधिकार क्षेत्र में तालाब आते हैं, इसके अलावा सरकार की ओर से गाँव-गाँव लेखपाल तैनात हैं, जिनका प्रमुख कार्य जमीन संबंधी ही है, लेकिन भ्रष्टाचार ने इन सबका ऐसा मजबूत गठबंधन बना दिया है कि तालाबों पर इन सबकी संलिप्तता से ही कब्जे हो रहे हैं। प्रदेश के छोटे-छोटे गांवों में भी एक-एक, दो-दो दर्जन से अधिक तालाब हुआ करते थे, लेकिन बीते कुछ वर्षों में अधिकांश गाँवों के अधिकतर तालाब कब्जा लिए गये हैं, जो गिरते भू-जलस्तर का प्रमुख कारण कहे जा सकते हैं।
गाँव और छोटे कस्बों में तालाबों पर हो रहे अवैध कब्जों की शिकायतें तहसील और जिला स्तर तक नहीं आ पातीं। चूँकि स्थानीय सरकारी संरक्षक कब्जा करने वालों से मिले होते हैं, इसलिए तालाब की आसानी से हत्या कर दी जाती है, लेकिन किसी-किसी तालाब को बचाने का जनता अभियान भी चलाती है, पर वरिष्ठ प्रशासनिक अफसर ऐसे तालाबों को भी बचाने नहीं आते, क्योंकि जिस प्रकार गाँव स्तर पर लेखपाल संलिप्त होता है, उसी प्रकार जिला मुख्यालय पर वरिष्ठ प्रशासनिक अफसर भी संलिप्त होते हैं, साथ ही सत्ता पक्ष के जनप्रतिनिधियों की सहभागिता होने के कारण सरकार भी मौन धारण कर लेती है।
हाल-फिलहाल उत्तर प्रदेश के जिला बदायूं में एक प्राचीन तालाब को बचाने का जनता अभियान चला रही है। बताते हैं कि यहाँ दातागंज तिराहे के पास कई एकड़ में फैला विशाल प्राचीन तालाब था, जिसे बेखौफ भू-माफियाओं द्वारा खुलेआम कब्जाया जा रहा है। उक्त तालाब ऐतिहासिक दृष्टि से धरोहर माना जाता है, इस तालाब में सैकड़ों तरह के जीवों की प्रजातियाँ सुरक्षित थीं, जिन्हें मौत के घाट उतार दिया गया है, साथ ही आर्य सभ्यता से जुड़े प्राचीन सागर ताल और इस तालाब पर प्रवास करने के लिए कई लुप्त होती प्रजातियों के हजारों पक्षी प्रतिवर्ष प्रवास करने आते रहे हैं। बताते हैं कि 1177 ई. में रानी चन्द्राबलि ने इस तालाब का निर्माण कराया था, जिसे चन्द्रसरोवर के नाम से जाना जाता था, इस प्राचीन तालाब पर भू-माफियाओं की नजर पड़ गई और अप्रैल के प्रथम सप्ताह से कब्जा करना शुरू कर दिया। कई जेसीबी, सैकड़ों डंपर और ट्रैक्टर-ट्राली रात-दिन अवैध खनन कर मिटटी लाने में जुटे हुए हैं, जो लगातार मिटटी को समतल भी कर रहे हैं। बड़ी संख्या में लोग इस तालाब को बचाने का अभियान चला रहे हैं, लेकिन प्रशासनिक अफसर पूरी तरह मौन हैं, जबकि प्राचीन तालाब हर पल तेजी से मृत्यु की ओर बढ़ रहा है।
स्तब्ध कर देने वाली बात यह है कि 23 मई को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव बदायूं जिले के दौरे पर आ रहे हैं। भू-माफियाओं के विरुद्ध कार्रवाई न करने वाले बदायूं के जिलाधिकारी चन्द्र प्रकाश त्रिपाठी ने प्राचीन चन्द्रसरोवर तालाब के समतल हो चुके भाग को ही मुख्यमंत्री की जनसभा के लिए चयनित कर दिया है, जहाँ जनसभा आयोजित कराने के लिए युद्धस्तर पर तैयारी शुरू हो रही हैं। बताया जा रहा है कि प्राचीन तालाब की लाश पर मुख्यमंत्री की जनसभा के लिए वातानुकूलित मंच तैयार किया जायेगा। मुजफ्फरनगर के एक टेन्ट हाउस व्यवसायी को पंडाल बनाने का ठेका दे दिया गया है, जो एक से डेढ़ लाख लोगों के बैठने के लिए विशाल पंडाल बनायेगा, इसी तरह मुख्यमंत्री की सभा के लिए साठ फुट लम्बा, चालीस फुट चौड़ा तथा आठ फुट ऊंचा मंच लखनऊ की राज डिजाइनिंग कम्पनी द्वारा तैयार किया जायेगा।
बदायूं जिले के प्रकृति प्रेमी प्राचीन सोत नदी को बचाने की आस लगाये बैठे थे। प्रकृति प्रेमियों को लगता था कि एक दिन सदानीरा कब्जा मुक्त होगी, लेकिन प्राचीन चन्द्रसरोवर पर खुलेआम हो रहे कब्जे को लेकर उन प्रकृति प्रेमियों की आस अब पूरी तरह टूट गई है, क्योंकि भू-माफियाओं के विरुद्ध कार्रवाई करने की जगह जिलाधिकारी चन्द्र प्रकाश त्रिपाठी ने भू-माफियाओं द्वारा किये गये समतल हिस्से को ही मुख्यमंत्री की जनसभा के लिए चयनित कर दिया, उन्हें यह भी भय नहीं है कि तालाब की हत्या होने की जानकारी मुख्यमंत्री को हो गई, तो वे दंडित भी कर सकते हैं, ऐसे प्रशासनिक और राजनैतिक वातावरण में तालाब और नदियों को बचाने का अभियान चलाने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। जनभावनाओं के विपरीत तालाब की लाश को ताकत की मिटटी से दबाने के बाद उस पर अहंकार की रंगीन चादर बिछा दी जायेगी। 23 मई को सरकार की उपलब्धियों से प्रशासनिक अफसरों और सत्ता पक्ष के नेताओं द्वारा तालाब की सिसकियों को दबाने का प्रयास किया जायेगा, लेकिन इस प्राचीन चन्द्रसरोवर तालाब की हत्या की भयावह घटना इतिहास के पन्नों से कभी मिटाई नहीं जा सकेगी।
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