भारत की राजनीति में बदलाव तो आया है या, यूं कहें कि हिंदी पट्टी में राजनेताओं की सोच बदली है। राजनैतिक दृष्टि से मुस्लिमों को बड़ा वोट बैंक माना जाने लगा था, जिससे धार्मिक क्रियाकलापों के द्वारा मुस्लिमों को लुभाने के अतिरिक्त प्रयास किये जाने लगे थे। मुस्लिमों को लुभाने की राजनैतिक दलों के बीच प्रतियोगिता शुरू हो गई थी, रोजा इफ्तार पार्टियों के आयोजन में राजनैतिक दल आस्था न होने के बावजूद बढ़-चढ़ कर रूचि लेने लगे थे, जिससे बहुसंख्यक स्वयं को उपेक्षित महसूस करने लगे थे।
केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की प्रचंड बहुमत की सरकार बन गई, जिसके बाद राज्य-दर-राज्य भारतीय जनता पार्टी फतेह हासिल करती चली गई, जिससे राजनेता व्यवहार बदलने को मजबूर हो गये। कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी स्वयं को हिंदू के रूप में प्रचारित करने लगे, जनेऊ धारण कर मंदिर-मंदिर भटकने लगे, हाल ही में हुए विधान सभा चुनावों में वर्ग विशेष को विशेष महत्व नहीं दिया गया, चुनाव परिणाम भाजपा के विरुद्ध आये तो, अन्य दल भी सतर्क हो गये।
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी को मुस्लिम हितैषी दल के रूप में जाना जाता है। रोजा इफ्तार पार्टियों के आयोजन में समाजवादी पार्टी सबसे आगे रही है। अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे, उस समय उन्होंने मुख्यमंत्री आवास में ही विशाल पार्टी आयोजित की थी, इसी तरह बदायूं लोकसभा क्षेत्र से सांसद धर्मेन्द्र यादव ने विशाल रोजा इफ्तार पार्टी आयोजित कर रिकॉर्ड बनाया था, इन नेताओं को भी लगा होगा कि एकतरफा सोच के चलते उन्हें राजनैतिक रूप से नुकसान हुआ है, सो अब व्यवहारिक दृष्टि से बदलने लगे हैं।
अखिलेश यादव हिंदू हैं, वे बचपन से ही हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार पूजा-अर्चना करते रहे होंगे लेकिन, नेता के रूप उन्होंने यह सब बहुत ज्यादा प्रचारित नहीं किया पर, अब खुल कर कहने लगे हैं कि श्रीकृष्ण उनके भगवान हैं, वे नवरात्रि पूजन करते हैं, प्रयागराज भी पहुंचे, वहां से स्नान की फोटो जारी करा दी गई हैं। पिछले दिनों सपा-बसपा का गठबंधन हुआ तो, प्रेसवार्ता के दौरान बराबर में मुस्लिम नेता को नहीं बैठाया गया।
पिछले विधान सभा चुनाव के दौरान भी राहुल गाँधी और अखिलेश यादव मंदिर गये थे लेकिन, चुनावी बेला में वे हास्य का पात्र बन कर रह गये, इसलिए निरंतर दर्शा रहे हैं कि वे सिर्फ मुस्लिमों के प्रतिनिधि नहीं हैं, वे हिन्दुओं के भी प्रतिनिधि हैं, इसीलिए तस्वीरें बदलने लगी हैं। टोपी वाली तस्वीरों की जगह गंगा में पूजन करने वाली तस्वीरें आ रही हैं, इस सबका राजनैतिक दृष्टि से कोई लाभ होगा या, नहीं, इस बारे में समय आने पर ही पता चल सकेगा।
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