सुप्रसिद्ध कवि नरेंद्र गरल की सर्वाधिक चर्चित रचनाओं में से एक रचना है कि “छोड़ आये गाँव फसलों की फिजायें छोड़ आये”। भारत का बड़ा वर्ग गांवों में रहता है। रोजी, रोटी के साथ अन्य तमाम कारणों से व्यक्ति को गाँव छोड़ना पड़ जाता है पर, तमाम झंझावतों के बीच व्यक्ति के अंदर गाँव हमेशा जीवित रहता है।
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नरेंद्र गरल जब मंच पर यह गुनगुनाते हैं कि “छोड़ आये गाँव फसलों की फिजायें छोड़ आये” तो, प्रत्येक व्यक्ति के अंदर का गाँव जागृत हो उठता है। अचानक से व्यक्ति को ऐसा महसूस होने लगता है कि वह उड़ कर गाँव पहुंच जाये। दिखावटी खुशी मायूसी में बदल जाती है। बचपन से लेकर वर्तमान तक की यात्रा होने लगती है, इस रचना को सुनते हुए प्रत्येक व्यक्ति के अंदर एक कहानी चलने लगती है, जिससे इस रचना को जो भी सुनता है, वह भूल नहीं पाता, इसीलिए यह रचना सर्वाधिक चर्चित रचनाओं में से एक कही जाती है।
वीडियो में पूरी रचना सुनी जा सकती है, जिसमें ऐसे-ऐसे प्रतीकों का उल्लेख किया गया है कि व्यक्ति को लगेगा कि यह सब उसकी ही बातें की जा रही हैं। नरेंद्र गरल की अन्य रचनाओं को पढ़ने और उनके वीडियो सुनने का मन करे तो, बेवसाईट पर नरेंद्र गरल के नाम से सर्च कर सकते हैं।
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