प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते लोकसभा चुनाव में जनता से समर्थन मांगते हुए कई महत्वपूर्ण दावे और वादे किये थे, उन दावों और वादों में कई सारे वादे और दावे ऐसे हैं, जिनके साकार होने में समय लग सकता है। विकास दर अचानक नहीं बढ़ाई जा सकती, उद्योग धंधे तत्काल शुरू नहीं कराये जा सकते, काला धन यूं ही नहीं लाया जा सकता, कश्मीर समस्या क्षण भर में नहीं सुलझाई जा सकती, नक्सल समस्या को एक दम नहीं सुलझा सकते, ऐसे अन्य तमाम मुददे हैं, जिनके सही होने में एक निश्चित समय लगेगा, लेकिन नरेंद्र मोदी के कुछ दावे और वादे ऐसे भी थे, जो प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठते ही पूरे किये जा सकते थे।
नरेंद्र मोदी ने राजनीति में शुचिता की बात बड़े जोर-शोर के साथ उठाई थी, उन्होंने संसद को अपराधियों से मुक्त करने का वादा कर जनता का दिल जीत लिया था। उनकी छवि वादे पूरे करने वाले व्यक्ति के रूप में बन चुकी थी, लेकिन प्रधानमंत्री बनने के बाद उनकी कार्यप्रणाली से अब तक यही निष्कर्ष निकला है कि उनके वादे भी अन्य तमाम नेताओं की तरह ही थे, जो सत्ता में आने के लिए कुछ भी बोल जाते हैं, ऐसा न होता, तो नरेंद्र मोदी कम से कम मंत्रिमंडल में तो ऐसे लोगों को ही लेते, जिन पर पुलिस जाँच में और न्यायालय में किसी तरह का दोष सिद्ध न हुआ हो, लेकिन उनके मंत्रिमंडल में भी ऐसे चेहरे हैं, जिस पर लज्जित होने की जगह वे अपने दागों को अच्छा बता कर जनादेश को अपमानित करते नजर आ रहे हैं।
ताज़ा प्रकरण की बात करें, तो केन्द्रीय अल्पसंख्यक कल्याण एवं संसदीय कार्य राज्यमंत्री मुख़्तार अब्बास नकवी को न्यायालय ने 14 जनवरी 2015 को एक वर्ष की सजा सुनाई है और चार हजार रूपये का जुर्माना लगाया है। सजा होने के बावजूद मुख़्तार अब्बास नकवी ने न स्वयं त्याग पत्र दिया है और न ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें मंत्रिमंडल से बर्खास्त किया है। तर्क दिया जा सकता है कि निचली अदालत के विरुद्ध उच्च अदालत में अपील करेंगे, लेकिन अपील करने भर से कोई व्यक्ति दोष मुक्त नहीं हो जाता। हो सकता है कि उच्च अदालत भी निचली अदालत के आदेश को ही बरकरार रखे, ऐसी स्थिति में संवैधानिक दायित्व का निर्वहन करना गैर कानूनी तो नहीं है, पर नैतिक बिल्कुल भी नहीं कहा जा सकता और तब तो बिल्कुल भी नहीं है, जब नरेंद्र मोदी ने जनता से यह कह कर समर्थन माँगा हो कि वे स्वच्छ छवि के जनप्रतिधियों को चुनने के लिए कानून लायेंगे।
मुख्तार अब्बास नकवी वर्ष 2009 में रामपुर लोकसभा क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी थे। 24 अप्रैल 2009 को आचार संहिता के उल्लंघन में उनके प्रचार वाहन को थाना पटवाई पुलिस ने सीज कर दिया था, जिसके बाद पुलिस पर मनमानी का आरोप लगाते हुए उन्होंने और उनके कुछ समर्थकों ने बवाल किया एवं जाम लगा दिया था, इस पर पुलिस ने धारा 141, 341, 342, 188 और 7 क्रिमिनल लॉ एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया था। इस मुकदमे में 21 अगस्त, 2009 को पुलिस ने मुख्तार अब्बास नकवी सहित 23 लोगों के विरुद्ध न्यायालय में आरोप पत्र दाखिल कर दिया था। 23 आरोपियों में से एक आरोपी की मृत्यु हो चुकी है एवं तीन आरोपियों की पत्रावलियों पर अलग सुनवाई चल रही है। शेष बचे मुख़्तार अब्बास नकवी सहित 19 लोगों को अपर सिविल जज (सीनियर डिविजन) रामपुर मनीष कुमार ने 14 जनवरी, 2014 को धारा 141, 341, 342 और 7 क्रिमिनल लॉ एक्ट में दोषी मानते हुए एक-एक वर्ष की सजा सुनाई एवं चार-चार हजार रूपये का जुर्माना भी डाला। धारा 188 में संदेह का लाभ देते हुए सभी आरोपी बरी कर दिये एवं 15 हजार के मुचलके पर जमानत भी दे दी। प्रकरण भले ही गंभीर नहीं है, लेकिन मुददा नैतिकता का है और अगर, मुख्तार अब्बास नकवी केन्द्रीय मंत्री बने रहने लायक अब भी हैं, तो फिर ए. राजा, सुरेश कलमाणी, कनिमोझी को लेकर कांग्रेस की यही दलील क्यूं नहीं मानी, ऐसे में तो मुख्तार अंसारी, डीपी यादव और साबिर अली के चरित्र पर भी सवाल नहीं उठा सकते।
माना इलाहाबाद में पढ़े-गुने मुख्तार अब्बास नकवी बहुत अच्छे वक्ता हैं। प्रखर समाजवादी राजनारायण के खास रहे हैं और राष्ट्रवादी हैं। कांग्रेस के उत्पीड़न के विरुद्ध आवाज बुलंद करते हुए आपातकाल के दौरान जेल गये हैं। स्याह और दंगा जैसी पुस्तकें लिख चुके हैं। मृदुभाषी और मिलनसार होने के साथ उनमें अन्य तमाम खूबियाँ हैं, लेकिन वे स्वयं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आरोप और आरोप सिद्ध होने के अंतर को भली-भांति समझते होंगे, वे कानून और नैतिकता के अंतर को भी समझते होंगे, इसलिए मंत्रिमंडल से त्याग पत्र देकर राजनैतिक मूल्यों को एक नये शिखर पर स्थापित करना चाहिए, इससे भारतीय जनता पार्टी, सरकार और नरेंद्र मोदी के प्रति लोगों का विश्वास भी बढ़ेगा।