बदायूं नगर पालिका परिषद की अहंकारी अध्यक्ष फात्मा रजा की कुर्सी पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। सभासद उनके विरुद्ध लामबंद होने लगे हैं, जिससे उनके विरुद्ध कभी भी कार्रवाई हो सकती है।
उल्लेखनीय है कि फात्मा रजा सदर क्षेत्र के विधायक कथित आदर्शवादी आबिद रजा की पत्नी हैं। नगर पालिका परिषद के मुख्य चुनाव में वसीम अहमद अंसारी के कारण भाजपा प्रत्याशी ओमप्रकाश मथुरिया के मुकाबले वे हार गई थीं, जिसके बाद कथित आदर्शवादी विधायक आबिद रजा ने शक्ति का दुरूपयोग करते हुए फात्मा रजा को शासन से सभासद नॉमिनेट करा दिया था।
ओमप्रकाश मथुरिया के कार्यकाल में होने वाली परिषद की बैठकों में आबिद रजा उपस्थित रहते थे, साथ ही अन्य तमाम तरीकों से अध्यक्ष ओमप्रकाश मथुरिया के लिए लगातार बाधायें उत्पन्न करते रहे, साथ ही ओमप्रकाश मथुरिया अस्वस्थ भी रहते थे, इस सबके चलते वे हृदय आघात का शिकार हो गये और असमय ही चल बसे, उनके निधन के पश्चात अध्यक्ष पद के लिए उपचुनाव हुआ, जिसमें फात्मा रजा न सिर्फ विजयी घोषित की गईं, बल्कि उनके नाम जीत के अंतर को लेकर प्रदेश स्तर पर रिकॉर्ड भी दर्ज हुआ। मुख्य चुनाव में मिली करारी हार को दरकिनार कर फात्मा रजा उपचुनाव की जीत की न सिर्फ चर्चा करती रहती हैं, बल्कि रिकॉर्ड को लेकर अहंकार से भी ग्रस्त नजर आती हैं, वे बातचीत के दौरान एवं अपने भाषणों में भी अहंकार दर्शाती रहती हैं।
कहा यह भी जाता है कि उपचुनाव में कथित आदर्शवादी आबिद रजा ने फात्मा रजा को जिताने के लिए समूचे सिस्टम का दुरूपयोग किया था, साथ ही मुख्य चुनाव के समय जिले में तेजतर्रार एसएसपी मंजिल सैनी थीं, उनके रहते आबिद रजा गुंडई नहीं कर पाये, तो फात्मा रजा चुनाव भी हार गईं। कुल मिला कर आबिद रजा की राजनीति का आधार पुलिस ही है। पुलिस उनकी गुलाम हो, तो वे स्वयं को शहंशाह ही नहीं, बल्कि तानाशाह समझने लगते हैं और पुलिस के दूर हटते ही स्वयं भी भूमिगत हो जाते हैं।
कथित आदर्शवादी आबिद रजा भी पालिकाध्यक्ष तब चुने गये थे, जब उनके सिर पर सलीम इकबाल शेरवानी का हाथ रखा था, उन्हें और उनकी पत्नी को यहाँ तक समाजवादी पार्टी ने ही पहुंचाया है। अब उन पर शिकंजा कसा जाने लगा है, तो उनकी पालिकाध्यक्ष पत्नी फात्मा रजा की कुर्सी पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं। सूत्रों का कहना है कि पालिकाध्यक्ष चुने जाने से पहले फात्मा रजा ने नॉमिनेट सभासद के दायित्व से त्याग पत्र नहीं दिया था, जो नियम के विरुद्ध है। आरोप यह भी है कि वे पालिका के कार्यालय में नहीं बैठती हैं और पालिका का संचालन अवैध तरीके से अपने आवास से ही करती हैं, जिससे जनता के साथ सभासद भी रुष्ट हैं, तभी सभासद लामबंद होने लगे हैं, वहीं जानकारों का कहना है कि अब अविश्वास प्रस्ताव लाने का नियम शासन ने बदल दिया है। अब अनियमितताओं की शिकायत जांच में सही पाये जाने के बाद सिर्फ पालिकाध्यक्ष के अधिकार जब्त किये जा सकते हैं, साथ ही भ्रष्टाचार से संबंधित कार्रवाई की जा सकती है।