उत्तर प्रदेश की राजनीति में बीती रात भूचाल आ गया। किसी शरारती तत्व ने नगर निकायों से संबंधित फर्जी पत्र वायरल कर दिया, जिसमें 30 नगर पालिका परिषदों के अध्यक्षों का आरक्षण परिवर्तित होने का दावा किया गया था। फर्जी पत्र कुछ ही देर में प्रदेश भर में फैल गया, जिससे संभावित प्रत्याशी मायूस हो गये थे एवं नये-नये चेहरे मैदान में कूदने का दावा करने लगे थे।
उत्तर प्रदेश शासन के नाम से वायरल किये गये फर्जी पत्र में 30 नगर पालिका परिषदों के अध्यक्ष पदों के आरक्षण में बदलाव का दावा किया गया था, इस फर्जी सूची में बरेली मंडल की भी कई नगर पालिका परिषदें दर्शाई गई थीं। बदायूं नगर पालिका परिषद का अध्यक्ष पद सामान्य था, जिसे फर्जी पत्र में अनुसूचित वर्ग के लिए आरक्षित दर्शा दिया गया था, इसी तरह शाहजहाँपुर और पीलीभीत में आरक्षण बदलने का दावा किया गया था, इस फर्जी पत्र के वायरल होते ही प्रदेश भर की राजनीति में भूचाल आ गया था। चुनाव लड़ने की तैयारियों में जुटे संभावित प्रत्याशी मायूस हो उठे थे, वहीं नये-नये चेहरे सामने आ गये थे, जिन्हें लोग बधाई तक देने लगे थे और वे बधाई स्वीकार भी करने लगे थे। राजनैतिक दलों में टिकट को लेकर तत्काल सिफारिश करने में भी जुट गये थे, लेकिन पत्र फर्जी था, यह जानने के बाद अब ऐसे लोग शर्मिंदगी महसूस कर रहे हैं।
उक्त फर्जी पत्र का खुलासा शीघ्र ही हो गया था, क्योंकि पत्रांक नंबर गलत था, लेकिन इतनी बारीकी से कमी को आम लोग कम ही देख पाते हैं, जिससे फर्जी पत्र लगातार वायरल होता रहा। फर्जी शासनादेश जारी होने की कई घटनायें हो चुकी हैं, इससे पहले परिसीमन की फर्जी सूची जारी हुई थी एवं उससे पहले शिक्षा मित्रों के संबंध में फर्जी शासनादेश बना कर वायरल कर दिया गया था, इस तरह की घटनाओं से लोगों को कई तरह की तात्कालिक समस्यायें हो जाती हैं। शासन को इस तरह की घटनाओं को गंभीरता से लेते हुए कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि भविष्य में ऐसे फर्जी शासनादेश जारी करने की पुनरावृत्ति न हो, क्योंकि जब तक फर्जी पत्र की पुष्टि होती है, तब तक तमाम लोग आहत हो चुके होते हैं।
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