भारत के महान स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी, प्रखर चिन्तक और आदर्श समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया ने महात्मा गांधी को वाइसराय के नाम पत्र लिखने के लिए प्रेरित किया, जिसमें महात्मा गांधी ने लिखा कि अहिंसानिष्ट सोशलिस्ट डॉ. लोहिया ने भारतीय शहरों को बिना पुलिस व फौज के शहर घोषित करने की कल्पना निकाली है। इसके अलावा महात्मा गाँधी ने डॉ. लोहिया की प्रेरणा से ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन चलाया, जिसमें “करो या मरो” का संदेश दिया गया, इस आंदोलन को डॉ. लोहिया ने सफल बनाने में अपनी पूरी शक्ति लगा दी। आज़ादी के बाद वे अंग्रेजों को भगाने की तरह ही अंग्रेजी के विरुद्ध अभियान चलाते रहे, साथ ही लोकसभा में उनकी सर्वाधिक चर्चित बहस को “तीन आना बनाम पन्द्रह आना” के नाम से जाना जाता है, जिसमें उन्होंने 18 करोड़ आबादी के चार आने पर जिंदगी काटने तथा प्रधानमंत्री पर 25 हजार रुपए प्रतिदिन खर्च करने का आरोप लगाया था।
अब बात करते हैं समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव की, जो स्वयं को डॉ. लोहिया के आदर्शों का सब से बड़ा पहरेदार मानते हैं। उनके बेहद खास कहे जाने वाले आजम खां ने अपने गृह नगर रामपुर में उनके जन्मदिन पर समारोह आयोजित किया, जिसमें सब कुछ अंग्रेजी और कीमती ही था। रामपुर के जिलाधिकारी आवास के सामने से अपने पुत्र मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, भाई शिवपाल सिंह यादव और आजम खां के साथ सवार होकर लगभग पांच-छः किमी दूर स्थित गांधी समाधि तक मुलायम सिंह यादव दो घोड़ों की बग्घी से गये, उसके बारे में बताया गया कि रानी विक्टोरिया की बग्घी ख़ास उनके लिए लंदन से रामपुर मंगाई गई। पंडाल, मंच और चारों ओर लगे बड़े-बड़े स्क्रीन भी अंग्रेजी तकनीकी वाले ही थे। जन्मदिन के अवसर पर काटी गई विशेष केक के साथ भोजन भी अंग्रेजी तरीकों से ही बनाया गया, इस सब के अलावा लगभग 14 किमी ऐसा क्षेत्र पूरी तरह विशेष सुरक्षा बलों की निगरानी में रहा, जहां आम आदमी बिना जाये रह ही नहीं सकता। अब यहाँ सवाल उठता है कि व्यक्तिगत तौर पर मुलायम सिंह यादव को इस भव्य आयोजन से क्या लाभ हुआ, समाजवादी पार्टी का क्या हित हुआ?
वास्तव में इस विवादित और भव्य आयोजन से मुलायम सिंह यादव और समाजवादी पार्टी को लेकर आम आदमी के बीच प्रतिकूल संदेश ही गया है। समाजवादी सोच के साथ विवादित और भव्य शब्द जुड़ेंगे, तो स्वाभाविक ही है कि आम आदमी के मन में प्रतिकूल विचार ही आयेंगे और जब यह पहले से निश्चित है, तो विवादित और भव्य आयोजन करने की आवश्यकता क्या थी? यहाँ फिर यह सवाल उठता है कि विवादित और भव्य आयोजन हुआ क्यूं? सवाल यह भी है कि इस आयोजन से लाभ किसे हुआ?
रामपुर शहर क्षेत्र से विधायक और उत्तर प्रदेश सरकार में मुख्यमंत्री के बाद सर्वाधिक शक्तिशाली मंत्री कहे जाने वाले आजम खां की सोची-समझी नीति का हिस्सा प्रतीत होता है यह आयोजन। पुनः वापसी के बाद से वे पार्टी में हावी हैं और सरकार बनी, तो सरकार पर भी वे लगातार हावी बने हुए हैं। उनके अधिकाँश विरोधी किनारा कर गये हैं। पिछले दिनों थोड़ी सी नाराजगी का असर यह हुआ कि पत्नी को भी पार्टी ने राज्यसभा भेज दिया। सब कुछ उनके मन के अनुसार हो रहा है, लेकिन वे यह भी जानते ही होंगे कि राजनैतिक वैभव और सम्मान अस्थाई है, इसका कुछ पता नहीं कि कब चला जाये, इसलिए उनका संपूर्ण ध्यान अब अपनी चर्चित मौलाना जौहर अली यूनिवर्सिटी पर आ गया है। पिछले दिनों यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक दर्जा मिलने से उनकी खुशी सातवें आसमान पर है ही, ऐसे में वे सरकार के रहते यूनिवर्सिटी को और भव्य रूप देना चाहते हैं। शोध, विषय, भवन और स्टाफ के साथ अन्य तमाम आवश्यकताओं की पूर्ति करना चाहते हैं, विस्तार देना चाहते हैं। हालाँकि इस सब से जनता का ही हित होना है, लेकिन अजर-अमर रहने वाला यश और कीर्ति आजम खां को ही मिलनी है, इसी चाह में उन्होंने यूनिवर्सिटी कैंपस में जन्मदिन मनाने का निर्णय लिया, जिसे मुलायम सिंह यादव टाल ही नहीं सकते थे, क्योंकि भोले से मुलायम सिंह यादव इस प्रस्ताव को सिर्फ अपने प्रति प्रेम और आदर ही समझे होंगे।
अब बात करते हैं भव्य आयोजन और उस पर हुए व्यय की, तो इसमें भी बुद्धि का विशेष प्रयोग किया गया है। मंच के पीछे लगे होर्डिंग में मुलायम सिंह यादव के जन्मदिन का उल्लेख तक नहीं है, उसमें मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के कर-कमलों द्वारा साइकिल वितरण समारोह बताया गया है, अर्थात बाहरी तौर पर मुलायम सिंह यादव के जन्मदिन के रूप में समारोह को प्रचारित किया गया, जबकि कागजी तौर पर यह समारोह पूरी तरह सरकारी ही रहा, इसीलिए समस्त विभाग तन-मन और धन से सहयोग कर पाये, लेकिन सरकारी विभागों की ओर से भी मुलायम सिंह यादव को जन्मदिन की शुभकामनायें देने वाले बैनर, पोस्टर, होर्डिंग आदि नहीं लगाये गये। जन्मदिन संबंधी होर्डिंग सड़क किनारे छुटभैयों नेताओं ने ही लगाये, जिससे वातावरण जन्मदिन का ही दिखाई दिया, पर यह सब भी अधिकांशतः यूनिवर्सिटी कैंपस से बाहर तक ही सीमित रहा। कुल मिला कर भव्यता और धन की पूर्ति सरकारी समारोह होने से ही हो गई, लेकिन तमाम जरूरी कार्य ऐसे भी होते हैं, जिनके बिल-बाउचर सरकारी खातों में नहीं डाल सकते, ऐसे कार्यों के लिए धन की पूर्ति आजम खां द्वारा रामपुर जिले में विशेष तौर पर लाये गये प्रमोटिड जिलाधिकारी सीपी त्रिपाठी ने ही की।
सीपी त्रिपाठी इससे पहले बदायूं जिले के जिलाधिकारी थे, वहां उन्होंने समस्त विभागों के सहयोग से कई भव्य आयोजन कर सांसद धर्मेन्द्र यादव के लिए प्रसन्न किया था। बदायूं में आयोजित समारोह में आजम खां गये, तो वे स्वयं सीपी त्रिपाठी के दिमाग का कमाल देख कर स्तब्ध रह गये और जिन्न की तरह इच्छाओं की पूर्ति करने वाले सीपी त्रिपाठी को रामपुर का जिलाधिकारी बना कर ले गये। विरोधी और मीडिया भले ही आजम खां की आलोचना कर रहे हैं, लेकिन आयोजन के पीछे मुख्य दिमाग प्रमोटिड जिलाधिकारी सीपी त्रिपाठी का है।
प्रमोटिड जिलाधिकारी सीपी त्रिपाठी के प्रयासों से शक्तिशाली कैबिनेट मंत्री आजम खां के नंबर मुलायम सिंह यादव की नजर में भले ही और अधिक बढ़ गये हों, लेकिन आम आदमी की नजर में जिलाधिकारी सीपी त्रिपाठी पूरी तरह फेल नजर आये। आजम खां को खुश करने की अति में सीपी त्रिपाठी ने रामपुर शहर के ही नहीं, बल्कि जिले भर के स्कूलों के बच्चे और अध्यापक सुबह ही बुला लिए और जिलाधिकारी आवास से लेकर यूनिवर्सिटी की ओर जाने वाले मार्ग के किनारे रामपुर के बाहर करीब 8 किमी दूर तक कतार में खड़े कर दिए, जिनके हाथों में फूल थे, मुलायम को शुभकामनायें देते हुए तख्तियां थीं और गुब्बारे आदि थे। बच्चे सुबह 11 बजे के आसपास बुला लिए गये और शाम 7 बजे के आसपास छोड़े गये, जिनमें 4 साल के बच्चे से लेकर बीस साल तक की आयु वर्ग के थे। हाई स्कूल, इंटर के छात्र-छात्राओं के साथ उनके साथ आई अध्यापिकाओं का बुरा हाल हो गया, ऐसे में सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि चार-पांच और छः साल वर्ष तक के बच्चों का क्या हाल हुआ होगा। परेशानी यहीं तक सीमित नहीं रही, जब छोटे बच्चे दोपहर एक-दो बजे तक घर नहीं लौटे, तो उनके परेशान माता-पिता भी मौके पर आ गये, तो उन्हें भी अंत तक खड़ा रहना पड़ा, इसके अलावा रामपुर को जोड़ने वाले अधिकाँश मार्गों की यातायात व्यवस्था बाधित कर दी गई एवं शहर का मुख्य सिविल लाइन क्षेत्र सुबह से ही बंद कर दिया गया, जिससे शहर के साथ जिले भर में हाहाकार मचा रहा। दर्दनाक बात तो यह रही कि जिलाधिकारी आवास के सामने मुलायम सिंह यादव बग्घी में बैठे, वहीं उनकी बग्घी को सैकड़ों सपा कार्यकर्ताओं और पत्रकारों ने चारों दिशाओं से घेर लिया और अंत तक घेरे ही रहे, जिससे सुबह से कतार बनाये खड़े हजारों बच्चों को मुलायम सिंह यादव देखने तक को नहीं मिले, साथ ही भीड़ के दबाव में जवान छात्रायें व अध्यापिकायें असहज भी नजर आईं। यातायात व्यवस्था को आंशिक तौर पर बाधित करना और चुनिंदा बच्चों के मंच पर कार्यक्रम करा देना सराहनीय कार्य होता, लेकिन जिलाधिकारी सीपी त्रिपाठी की अदूरदर्शिता के चलते आम जनता, अध्यापिकायें, बच्चे और उनके अभिवावक शीर्ष नेतृत्व को ही कोसते नजर आये। जिलाधिकारी सीपी त्रिपाठी के मौखिक तानाशाही पूर्ण आदेश का ही दुष्परिणाम कहा जायेगा कि मुलायम सिंह यादव को शुभकामनायें देने के लिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा संचालित कॉलेज के छात्र-छात्रायें भी कतार में ही नहीं खड़े थे, बल्कि नाच-गा भी रहे थे। संघ के शीर्ष नेतृत्व के संज्ञान में यह सब नहीं पहुंचा है। अगर, संघ की ओर से यह जवाब माँगा गया कि उनके कॉलेज के छात्र-छात्राओं को जबरन क्यूं बुलाया गया, तो इसका जवाब जिलाधिकारी सीपी त्रिपाठी ही नहीं, बल्कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को भी देते नहीं बनेगा।
खैर, भव्य आयोजन था और राजनैतिक समारोह था, तो तमाम कमियां भी हो सकती हैं और विवाद भी स्वाभाविक ही हैं। बग्घी इंग्लैण्ड से आई या रामपुर में ही खड़ी थी, वो अंग्रेजी काल की है या आज़ाद भारत की? समारोह शालीन और सहज था या अतिवादी? धन कितना खर्च हुआ और किस स्रोत से हुआ?, ऐसे अन्य तमाम सवालों को किनारे रख देते हैं, फिर भी एक नया सवाल यह उठ रहा है कि समाजवादी मुलायम सिंह यादव का कद सामंतवादी व्यवस्था पर सवार होने से बढ़ेगा या घटेगा?, वैसे मुलायम सिंह यादव ने आज तक स्वयं को सुप्रीमो कहने पर भी आपत्ति दर्ज नहीं कराई है, ऐसे में उनका बग्घी पर बैठना कोई बड़ी घटना नहीं मानी जानी चाहिए, क्योंकि सुप्रीमो, मुखिया और प्रमुख शब्द समाजवादियों के लिए नहीं बनाये गये थे, ऐसे माहौल में कल्पना करने की बात तो यह है कि अगर, डॉ. लोहिया कहीं से यह सब देख रहे होंगे, तो उनकी मनःस्थिति क्या होगी?
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