बदायूं नगर पालिका परिषद पर कब्जा बरकरार रखने के उद्देश्य से सांसद धर्मेन्द्र यादव भी जुट गये हैं। सांसद की पहल पर आबिद रजा और अंसारी बंधु एक बार फिर निकट आ गये हैं। सांसद की कोठी पर उनकी उपस्थिति में दोनों के बीच उत्पन्न हुए गिले-शिकवे दूर करने के प्रयास किये गये। परिणाम स्वरूप तय हुआ कि डॉ. राबिया चुनाव मैदान में नहीं उतरेंगी।
निवर्तमान विधायक व पूर्व दर्जा राज्यमंत्री आबिद रजा और डॉ. शकील व वसीम अंसारी के बीच पांच वर्ष पूर्व संबंध अच्छे नहीं थे, दोनों के बीच तलवारें खिंची रहती थीं, लेकिन सपा सरकार बनने के बाद दोनों निकट आ गये। संबंध इतने अच्छे हो गये कि डॉ. शकील को जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ाने में आबिद रजा ने मदद की। सब कुछ सही चल रहा था, इस बीच आबिद रजा और सांसद धर्मेन्द्र यादव के बीच में खटास उत्पन्न हो गई, जो प्रांतीय और राष्ट्रीय स्तर का विषय बनती चली गई, इस जंग में अंसारी बंधु सांसद के साथ खड़े हो गये।
विधान सभा चुनाव के दौरान घटना क्रम तेजी से बदला, तो सांसद धर्मेन्द्र यादव और आबिद रजा के बीच की खटास मिठास में बदल गई, लेकिन साथ खड़े होने वालों को सांसद ने अधर में लटका दिया था, उन्हें आबिद रजा के साथ नहीं बैठाया गया, जिसका दुष्परिणाम यह हुआ कि आबिद रजा विधान सभा चुनाव में नजदीकी से पिछड़ गये।
अब पालिकाध्यक्ष पद के लिए डॉ. राबिया ताल ठोंकने लगीं, जिसका नुकसान फात्मा रजा को ही होता। बात बहुत आगे तक बढ़ती, उससे पहले सांसद सक्रिय हो गये और आबिद रजा व अंसारी बंधुओं को अपनी कोठी पर बैठा कर निकट आने का एक-दूसरे को प्रस्ताव दे दिया। आबिद रजा की ओर से बहुत ज्यादा समस्या पहले से ही नहीं थी, उन्हें बहुत ज्यादा शिकायत भी नहीं थी, अंसारी बंधु ही थोड़े से आहत थे, जो संवाद कायम होने से सामान्य हो गये। आबिद रजा और अंसारी बंधुओं के बीच बात होने से स्पष्ट हो गया कि अब डॉ. राबिया चुनाव नहीं लड़ेंगी, जिसका सीधा लाभ फात्मा रजा को ही मिलेगा।
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