विश्व प्रसिद्ध गोरखनाथ मंदिर के महंत के रूप में आदित्यनाथ योगी बहुत बड़े वर्ग के वंदनीय और पूज्यनीय हैं, उनके दर्शन करने भर को लोग तत्पर रहते हैं, सामना हो जाये, तो दंडवत प्रणाम करते हैं, बैठने का अवसर मिल जाये, तो सामने जमीन पर बैठने में भी लोग अपना सौभाग्य समझते हैं, यह सब श्रद्धा और आस्था की सीमा के अंदर गौरवशाली संस्कार कहे जाते हैं, लेकिन आदित्यनाथ योगी अब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी हैं, जो संवैधानिक मान्यता के अनुसार जनसेवा करने का बड़ा दायित्व है। आदर्श मुख्यमंत्री कहलाने के लिए इस बात का भी विशेष ध्यान चाहिए कि किसी भी रूप में तानाशाह वाली छवि नहीं बने, इस तथ्य का ध्यान निवर्तमान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने नहीं रखा। सैफई महोत्सव के समय एक बार मेरठ के आईजी के रूप में आशुतोष पांडेय मुख्यमंत्री के रूप में सोफे पर विराजमान अखिलेश यादव के चरणों में बैठे दिखाई दिए थे, इस फोटो के वायरल होने से अखिलेश यादव और आशुतोष पांडेय की छवि तार-तार हो गई थी।
आदित्यनाथ योगी को लंबे समय से जो सम्मान मिलता रहा है, वह सम्मान मुख्यमंत्री के रूप में नहीं मिल सकता और न ही वे महंत वाले सम्मान को मुख्यमंत्री के रूप में ग्रहण कर सकते हैं। महंत और मुख्यमंत्री, दोनों दायित्व एक ही व्यक्ति के पास हैं, इसलिए यह बड़ी ही असमंजस वाली अवस्था है। आदित्यनाथ योगी ने तपोबल से इस तरह मिलने वाले सम्मान से स्वयं को ऊपर कर लिया है, उनके लिए बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण बात नहीं है। वर्षों से प्रतिष्ठित और उम्रदराज व्यक्ति उनके पैर छूते रहे हैं। संसद परिसर में भी तमाम वरिष्ठ मंत्री, सांसद और नेतागण उनके पैर छूते दिखते रहे हैं। महंत के रूप में गेरुआ वस्त्रधारी को ऐसा सम्मान देना आम बात है, लेकिन भाव की एक अपनी महत्ता है। विधायक, मंत्री, आईएएस और आईपीएस अफसर भी दंडवत प्रणाम करने लगें और उनके सामने जमीन पर बैठने लगें, इससे लोकतांत्रिक व्यवस्था कमजोर ही होगी।
आदित्यनाथं योगी के सामने यह भी एक चुनौती है कि उन्हें महंत और मुख्यमंत्री की भूमिका को अलग-अलग रखना होगा, वरना महंत के रूप में सम्मान देकर शातिर किस्म के लोग मुख्यमंत्री वाली शक्ति का किसी न किसी रूप में दुरूपयोग कर ही लेंगे। अखिलेश यादव का ताजा उदाहरण सामने है, उनके साथ फोटो खिंचा कर फेसबुक, ट्वीटर की डीपी के साथ मोबाईल की स्क्रीन पर वॉलपेपर बना कर ही शातिर किस्म के लोग चंद दिनों में ही अरबपति हो चुके हैं, जिनके नामों से लखनऊ का चप्पा-चप्पा परिचित है।
उक्त प्रसंग की चर्चा इसलिए करनी पड़ी कि सोशल साइट्स पर एक फोटो वायरल हुआ है, जिसमें आदित्यनाथ योगी सोफे पर बैठे हैं, उनके पैरों के पास विधायक राजीव कुमार सिंह “बब्बू” और विधायक महेश चन्द्र गुप्ता बैठे नजर आ रहे हैं, इस फोटो को लेकर विधायकों और भाजपा के समर्थकों के भाव सकारात्मक हैं, वहीं विरोधी नकारात्मक टिप्पणी करने से नहीं चूक रहे हैं, जिससे प्रकरण चर्चा का विषय बना हुआ है। हालाँकि आदित्यनाथ योगी ने नीचे बैठने के निर्देश नहीं दिए होंगे और न ही विधायकों के चेहरे पर गलत भाव दिख रहे हैं, फिर भी ऐसे दृश्यों से बचना होगा। आईएएस और आईपीएस अफसर के साथ भी ऐसा फोटो सामने आया, तो विवाद खड़ा होना स्वाभाविक ही है, जिस पर उत्तर नहीं सूझेगा, ऐसी स्थिति से ही बचने को आदित्यनाथ योगी के लिए महंत और मुख्यमंत्री की भूमिका अलग-अलग निभानी होगी।
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