शाहजहाँपुर के जिलाधिकारी विजय किरन आनंद के जाते ही के. आर. पेपर मिल के विरुद्ध चल रही जाँच मिल के मालिक माधोगोपाल के दबाव में निपटा दी गई है। जिला प्रशासन ने एक बार फिर गरीब जनता को तिल-तिल कर मरने को छोड़ दिया है। प्रदूषण के चलते गंभीर बीमारियों से जूझ रही जनता के पक्ष में अब कोई बोलने तक को तैयार नहीं है।
उल्लेखनीय है कि पूर्व गृह राज्यमंत्री और कुख्यात कथित संत चिन्मयानंद ने सोशल साइट्स पर आश्रम द्वारा संचालित संस्थाओं के कर्मचारियों से एक ग्रुप बनवा रखा है। ग्रुप में मुमुक्षु आश्रम द्वारा संचालित संस्थाओं के शिक्षक और शहर के कुछ गणमान्य नागरिक भी हैं। बताते हैं कि चिन्मयानंद ने अपने कारिंदों से ग्रुप में शाहजहाँपुर के कुछ कारखानों के विरुद्ध प्रदूषण को लेकर आंदोलन करने का आह्वान कराया, इस षड्यंत्र को शहर के गणमान्य नागरिक समझ नहीं पाये। उत्साहित और प्रकृति प्रेमी गणमान्य नागरिकों ने एक प्रतिनिधि मंडल गठित किया और तेजतर्रार जिलाधिकारी विजय किरन आनंद को एक ज्ञापन दे दिया।
जिलाधिकारी ने प्रतिनिधि मंडल के ज्ञापन पर सीडीओ की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय कमेटी गठित कर जाँच करने का आदेश दे दिया। जाँच का आदेश होते ही के. आर. पेपर मिल का मालिक माधोगोपाल कथित संत चिन्मयानंद से मिलने पहुंच गया और सूचना मिली कि चिन्मयानंद ने माधोगोपाल को कॉलेज की प्रबंध समिति में सचिव पद दे दिया, जिससे चर्चा होने लगी कि माधोगोपाल ने चिन्मयानंद को बड़ी रकम दी है। माधोगोपाल और चिन्मयानंद की छवि पहले से ही बेहद खराब बताई जाती है, लेकिन इस कांड के बाद दोनों की और अधिक फजीहत हुई।
उधर जिलाधिकारी द्वारा दिए गये जांच के आदेश पर निरंतर कार्रवाई चल रही थी, तो चिन्मयानंद को खरीदने के बाद माधोगोपाल सत्ता पक्ष के नेताओं की शरण में पहुंच गया। बताया जाता है कि एक बड़े नेता को मोटी रकम देकर उसने डीएम विजय किरन आनंद का तबादला करा दिया, उनकी जगह पुष्पा सिंह आईं और उन्होंने कहा कि विजय किरन आनंद के कार्यों को रुकने नहीं दिया जायेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सूत्रों का कहना है कि सीडीओ की अध्यक्षता में चल रही जाँच माधोगोपाल के पक्ष में ही निपटा दी गई है।
बता दें कि के. आर. पेपर मिल द्वारा फैलाए जा रहे प्रदूषण के कारण आसपास के लगभग सौ गांवों के अधिकाँश लोग अस्वस्थ हैं। हृदय और आँखों से संबंधित रोगों से अधिकाँश लोग ग्रस्त हैं, साथ ही मिल से निकलने वाले कैमिकलयुक्त पानी से भूमि बंजर हो रही है एवं कैमिकलयुक्त जल पीने से जानवर भी अस्वस्थ हो रहे हैं और आसपास की वनस्पति समाप्त हो रही है। के. आर. पेपर मिल द्वारा जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम- 1974 तथा 1977, वायु (प्रदूषण एवं नियंत्रण) अधिनियम- 1981, पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम- 1986, जैव-विविधता संरक्षण अधिनियम- 2002 और राष्ट्रीय पर्यावरण नीति- 2004 का खुला उल्लंघन किया जा रहा है, लेकिन समूचा प्रशासन मिल के मालिक माधोगोपाल के दबाव में है।