मंदिर से लाउड स्पीकर भले ही उतर गया हो, पर अकबरपुर चैदरी की आवाज प्रदेश ही नहीं, बल्कि देश भर में गूंज रही है। मुरादाबाद जिले के कांठ थाना क्षेत्र का यह विवादित गाँव अकबरपुर चैदरी धामपुर मार्ग पर स्थित है। यूं तो पूरा इलाका मुस्लिम बाहुल्य है, पर इसी गाँव की बात करें, तो इस गाँव में भी अस्सी प्रतिशत से ज्यादा आबादी मुस्लिमों की ही है। विवादित स्थल अकबरपुर चैदरी ग्राम सभा का मजरा है, लेकिन कोई अलग नाम नहीं है। मूल गाँव रामगंगा की तलहटी में है, जो हाइवे से मल्लीवाला गाँव जाते हुये रास्ते में पड़ता है। बताते हैं कि रामगंगा में आने वाली बाढ़ से तंग कर आकर कुछ लोगों ने सत्तर के दशक में मुरादाबाद-धामपुर हाइवे के किनारे घर बना लिए थे, जिनकी बाद में संख्या बढ़ती चली गई। गाँव सभा में कुल मतदाता पैंतीस सौ के आसपास हैं, जिनमें चार-पाँच सौ के करीब जाटव मतदाता हैं। यहाँ प्रधान पद के लिए कमरुल हसन चुने जाते रहे हैं। भले, शालीन और सभ्य लोगों में शुमार कमरुल हसन स्थानीय स्तर पर काफी लोकप्रिय हैं। पिछले पंचायत चुनाव में प्रधान पद अनुसूचित महिला वर्ग के लिए आरक्षित हो गया, तो कमरुल हसन ने अपने नौकर घसीटा राम जाटव की पत्नी ओमवती को उम्मीदवार बना दिया और वह आसानी से जीत गई, लेकिन चुनाव जीतने के बाद घसीटा राम ने कमरुल हसन से विद्रोह कर दिया और ग्राम पंचायत के निर्णय स्वयं लेने लगा। पत्नी की जगह सभी कार्य घसीटा राम ही करते हैं।
कांठ विधान सभा क्षेत्र के विधायक अनीसुर्रहमान एडवोकेट इसी विवादित मजरा अकबरपुर चैदरी के ही निवासी हैं, जो पिछला चुनाव पीस पार्टी के टिकट पर जीते थे, लेकिन उत्तर प्रदेश के कद्दावर नगर विकास मंत्री आजम खाँ के खास माने जाते हैं, इसलिए एक तरह से अघौषित सपाई कहे जा सकते हैं, इसलिए पुलिस-प्रशासन में उनकी बात को वरीयता के आधार पर सुना जाता है। कांठ विधान सभा क्षेत्र से ही कई बार बसपा विधायक रह चुके रिजवान अहमद खाँ पड़ोस के ही गाँव गढ़ी सलेमपुर के रहने वाले हैं, पर उनका इंटर कॉलेज और जमीन की प्लाटिंग का काम अकबरपुर चैदरी में ही है, इसलिए दिन भर यह भी अकबरपुर में ही रहते हैं, पर इस विवाद से पूरी तरह दूर हैं और पूरी तरह अपने काम में ही लगे रहते हैं।
हाइवे पर गाँव एक ही है, पर गाँव के बीच की एक सड़क गाँव को बाँट देती है। सड़क के इस पार के हिस्से को नया गाँव कासमपुर कहते हैं और उस पार के हिस्से को अकबरपुर चैदरी। मुरादाबाद से जाते समय पहले नया गाँव कासमपुर पड़ेगा। दोनों ही गावों में सवर्ण नहीं हैं। नया गाँव कासमपुर में दो-तीन घर बिजनौरिया चौहान कहे जाने वाले लोगों के ही हैं। विवादित मंदिर अकबरपुर चैदरी का ही अंग है, जो उत्तर-पूरब में गाँव के अंत में स्थित है और मंदिर के आसपास ही सभी दलितों (जाटवों) के घर हैं। इस गाँव में मंदिर के चारों तरफ चार मस्जिद हैं और एक ठीक सामने लगभग बीस मीटर दूरी पर ही है। लगभग डेढ़ दशक पहले बने इस मंदिर को लेकर किसी मुस्लिम को कोई आपत्ति नहीं थी। किसी चंचल नाथ नाम के साधू ने बनवाया था और आसानी से बन गया, लेकिन लाउड स्पीकर को लेकर विवाद काफी पहले से है। पुलिस-प्रशासन के सहयोग से हुई स्थानीय पंचायत में शिवरात्रि और होली पर लाउड स्पीकर लगाने की मुस्लिम मूक सहमति दे चुके हैं। इन दोनों अवसरों पर लाउड स्पीकर बजता रहा है, जिसको लेकर समझौते के बाद कभी किसी ने आपत्ति दर्ज नहीं कराई।
पिछली बार 24 फरवरी को मंदिर पर लाउड स्पीकर लगाया था, जिस पर आपत्ति हुई थी। शिवरात्रि और होली का पर्व मनाने के बाद 7 मार्च को लाउड स्पीकर पुलिस के हस्तक्षेप से ही उतार लिया गया था, जिसके बाद सब कुछ सही चल रहा था, लेकिन अब उसी लाउड स्पीकर ने अकबरपुर चैदरी और मुरादाबाद ही नहीं, बल्कि समूचे उत्तर प्रदेश की शांति को ग्रहण लगा दिया है। ताज़ा घटना क्रम के अनुसार जाटवों ने हाल ही में लाउड स्पीकर मंदिर पर लगा कर बजाना शुरू कर दिया, जिस पर मोहल्ले के ही मुस्लिमों ने सवाल किया कि न शिवरात्रि है और न होली, तो लाउड स्पीकर क्यूँ बजा रहे हैं?, इस पर जाटवों ने मुस्लिमों की बात अनसुनी कर दी, तो एक व्यक्ति ने थाने में लिखित में शिकायत कर दी। चूंकि लाउड स्पीकर को लेकर हुये समझौते की जानकारी पुलिस को थी ही, सो पुलिस ने मौके पर आकर लाउड स्पीकर उतरवा दिया। यहाँ तक कोई बवाल नहीं हुआ, इसके अगले दिन नवनिर्वाचित भाजपा सांसद सर्वेश कुमार सिंह अपने दल-बल के साथ मौके पर आए और उसी लाउड स्पीकर से लोगों को संबोधित कर मंदिर पर लगवा गये। बताते हैं कि उन्होंने 5100 रुपए मंदिर को चन्दा भी दिया, इसके बाद पुनः पुलिस आई। एक सिपाही सीढ़ी पर चढ़ कर मंदिर पर लगा लाउड स्पीकर खोल रहा था, तभी जाटवों की तीन-चार औरतें आईं और पुलिस से आकर भिढ़ गईं। एक महिला ने सीढ़ी पकड़ कर खींच ली, तो सिपाही नीचे आ गिरा और चोटिल भी हो गया, इस घटना के बाद पुलिस ने जाटवों के अधिकांश घरों में घुस कर महिला, पुरुष जो भी हाथ लगा, सभी को बेरहमी से पीटा। यहाँ से हिन्दू-मुस्लिम और लाउड स्पीकर को लेकर उपजा विवाद पीछे छूट गया और पुलिस व जाटवों का विवाद शुरू हो गया। असलियत में बसपाई समझ कर पुलिस जाटवों को बिल्कुल भी अहमियत नहीं दे रही थी, लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में यहाँ के जाटवों ने भाजपा प्रत्याशी को खुल कर समर्थन दिया था, इसलिए पुलिस की गैर कानूनी कार्रवाई के बाद सांसद सर्वेश कुमार सिंह खुल कर जाटवों के पक्ष में आ गये।
पुलिस से मोर्चा लेने के लिए महापंचायत करने का ऐलान हुआ। 4 जुलाई को पुलिस और भाजपाइयों में संघर्ष हो गया, जिसमें डीएम सहित पुलिस-प्रशासन के कई लोग और भाजपा कार्यकर्ता भी बुरी तरह से घायल हो गये। जमकर बवाल होने के कारण कांठ का बाजार पूरी तरह बंद हो गया। असलियत में 4 जुलाई का बवाल मुरादाबाद, कांठ और अकबरपुर चैदली के लोगों के मत्थे मढ़ दिया गया है, क्योंकि अधिकांश बवाली बाहर के थे। कांठ से बिजनौर जिले की सीमा मात्र तीन-चार किमी दूर ही है। सटी हुई नूरपुर विधान सभा क्षेत्र से लोकेन्द्र सिंह चौहान विधायक हैं। नेशनल शुगर फैक्ट्री के पास होने वाली महापंचायत में अधिकांश लोग उनके आह्वान पर उन्हीं के क्षेत्र से आए थे, लेकिन पुलिस ने उन लोगों को जेल भेज दिया, जो बवाल से पहले ही पुलिस की हिरासत में थे। मुरादाबाद के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक धर्मवीर सिंह यादव ने भी मीडिया के समक्ष बयान दिया था कि 4 जुलाई का बवाल बाहरी लोगों द्वारा किया गया है, लेकिन मुकदमा स्थानीय लोगों के विरुद्ध दर्ज किया गया है, जिससे स्पष्ट है कि पुलिस कि भूमिका पहले दिन से ही विवाद को सुलझाने की नहीं, बल्कि हिटलर के अंदाज़ में एक पक्ष को दबाने वाली रही है, जबकि लाउड स्पीकर विवाद को शुरुआत में ही स्थानीय लोगों की पंचायत बुला कर सुलझाया जा सकता था, क्योंकि पूर्व में हो चुके फैसले को आमने-सामने बैठ कर जाटव भी टाल नहीं पाते, पर ऐसा नहीं किया गया। अब लाउड स्पीकर विवाद पीछे छूट गया है। मूल विवाद अब पुलिस और भाजपा नेताओं के बीच सिमट गया है, जिसे जनमत जुटाने के लिए मंदिर और लाउड स्पीकर से भाजपाई जोड़े हुये हैं। कुल मिला कर सांसद सर्वेश कुमार सिंह, विधायक लोकेन्द्र सिंह चौहान और अदूरदर्शी एसएसपी धर्मवीर सिंह यादव एकतरफा दोषी हैं, क्योंकि लाउड स्पीकर उतरने के बाद सांसद सर्वेश कुमार सिंह ने जाटवों को बरगला कर पुनः मंदिर पर लाउड स्पीकर रखवाया। इसके बाद पुलिस ने दरिंदगी की कार्रवाई की, जिसके विरुद्ध सांसद को धरना-आंदोलन वगैरह करना चाहिए था, पर महापंचायत बुला ली और उसमें लोकेन्द्र सिंह चौहान बवाली लोगों के साथ कूद पड़े। इसी तरह एसएसपी धर्मवीर सिंह यादव की कार्यप्रणाली सुलझे हुये अफसर की नहीं, बल्कि एक अनाड़ी व्यक्ति जैसी रही है, जिससे बवाल थमने की जगह लगातार उग्र होता चला गया, लेकिन शासन एसएसपी धर्मवीर सिंह यादव के विरुद्ध कार्रवाई नहीं करेगा, क्योंकि मुरादाबाद जब शांत था, तब कोई अच्छा-भला आईपीएस आने को तैयार नहीं था, ऐसे में शासन ने अगर, धर्मवीर सिंह यादव को हटा भी दिया, तो सबसे बड़ा सवाल यही है कि मुरादाबाद में तैनात किसे किया जायेगा, साथ ही वे शीर्ष सपा नेतृत्व के भी चहेते माने जाते हैं, इसलिए संभावना धर्मवीर सिंह यादव के ही रहने की अधिक है, और यह भी सच है कि उनके रहते बवाल थमने नहीं वाला, क्योंकि भाजपाइयों पर एकतरफा कार्रवाई करने के कारण भाजपा का शीर्ष नेतृत्व उन्हें रहने देने के पक्ष में नहीं है, साथ ही विधान सभा और लोकसभा के उपचुनाव में भाजपा के लिए एक बेहतरीन मुद्दा मिल गया है, जिसे भाजपा पूरी तरह भुनाने का प्रयास करेगी।
खैर, हाल-फिलहाल इलाके के हालात सामान्य हैं। बाजार खुल गया है, पर ग्राहक गायब हैं। बसें और ट्रेन चल रही हैं, पर यात्री गायब हैं। स्कूल-कॉलेज खुल रहे हैं, पर छात्र-छात्राएं गायब हैं। कांठ और अकबरपुर चैदली में मुस्लिमों के चेहरे देख कर लगता ही नहीं कि यहाँ कुछ हुआ है। कारपेंटर अपने काम में व्यस्त नज़र आये। बेल्ड़र अपने काम में जुटे दिखे। किसान अपनी खेती में व्यस्त दिखे। मुस्लिमों की सभी दुकानें भी खुली थीं। बातचीत और हंसी-मजाक भी करते नज़र आये, लेकिन अकबरपुर चैदली के जाटवों के चेहरों पर दहशत साफ झलक रही है। कांठ और अकबरपुर चैदली में चप्पे-चप्पे पर पुलिस व पीएसी तैनात है, पर कांठ सामान्य नज़र आ रहा है, लेकिन अकबरपुर चैदली में बहुत अधिक चहल-कदमी नहीं है। जाटवों से बात करो, तो वे विधायक अनीसुर्रहमान, आजम खाँ और पुलिस के विरुद्ध एकदम जहर उगलने लगते हैं, साथ ही मुसलमानों से बात करो, तो वे मुस्करा कर यही कहते हैं कि यहाँ कोई बवाल नहीं हैं। नेताओं और पुलिस की लड़ाई है, जिससे हम गाँव वालों का कोई मतलब नहीं है। और अधिक कुरेदने पर बस, यही कहते हैं कि घर-घर मोदी है और मौन हो जाते हैं।
मंदिर की बात करें, तो इस मंदिर पर होशियार नाथ नाम के साधू रहते हैं, जो स्वयं को चंचल नाथ का शिष्य बताते हैं। धार्मिक ज्ञान की बात करें, वेद-पुराण तो दूर की बात उन्हें घर-परिवार में प्रायः होने वाली पूजा-अर्चना का भी ज्ञान नहीं है। संस्कृत के श्लोक तो वे पढ़ कर भी नहीं बोल सकते, ऐसे में स्पष्ट है लाउड स्पीकर भी मात्र प्रतिष्ठा का ही प्रश्न बना हुआ है, उससे वेद-पुराण या शास्त्रों का प्रचार नहीं होने वाला। भजन-कीर्तन के नाम पर साधू सहित बाकी भक्तगण भी फिल्मी कैसेट पर ही निर्भर हैं। मंदिर के शीर्ष पर लगने वाला कलश नहीं लगा है, जो कीमती होता है। मंदिर के अंदर टंगा घंटा भी तीन-चार सौ ग्राम वजन का भी नहीं होगा, जबकि सामान्य तौर पर मंदिरों में एक-दो किग्रा वजन के घंटे होते हैं। किसी भी मंदिर में सबसे आवश्यक तो उस मंदिर के देवता ही होते हैं, तो इस मंदिर में शिवलिंग का प्रतीक पत्थर देख कर लगता है कि यूं ही सड़क से उठा कर कोई पत्थर सीमेंट के सहारे खड़ा कर दिया है। शिवलिंग और आसपास के स्थान को देख कर यह स्पष्ट हो जाता है कि शिवलिंग पर नियमित जलाभिषेक तक नहीं होता होगा। मंदिर के अंदर और बाहर किसी और देवी-देवता की कोई मूर्ति नहीं है, लेकिन मंदिर के अंदर ही कुछ आधे-अधूरे चित्र चिपके हैं। एक-दो चित्र ऐसे ही पड़े हैं। धूप और अगरबत्ती के पैकेट का कवाड़ मंदिर के अंदर ही एक अलमारी में भरा है। शिवलिंग के पास ही एक बेकार सी झाड़ू पड़ी नज़र आती है, जिससे मंदिर में सफाई की जाती होगी। मंदिर के अंदर घुसने के लिए ऐसे ही ईटें रख कर पक्का रास्ता बना लिया गया है।
मंदिर के बाहर सोलर लाइट लगी है, जो बसपा सरकार में बसपा विधायक रिजवान अहमद खाँ ने अपनी निधि से लगवाई थी। कुल मिला कर मंदिर के बाहर और मंदिर के अंदर आध्यात्मिक अनुभूति तक नहीं होती और न ही मंदिर की अन्य आवश्यक चीजों की ओर लोगों का ध्यान है। लाउड स्पीकर लग भी जाये, तो घंटा, कलश, पूजा, भजन और कीर्तन मुस्लिम तो नहीं करेंगे। जलाभिषेक तो जाटवों को ही करना पड़ेगा, इसलिए लाउड स्पीकर से पहले मंदिर में दैवीय अनुभूति कराने की आवश्यकता है, पर इस ओर किसी का ध्यान तक नहीं है, क्योंकि लाउड स्पीकर लगाने की जिद पर अड़े लोग स्वभाव से ही आध्यात्मिक नहीं है। वे तो लाउड स्पीकर सिर्फ इसलिए लगाना चाहते हैं कि सामने वाली मस्जिद पर अजान शुरू हो, तो तेज आवाज में वह भी अपना लाउड स्पीकर बजा दें, जिसकी अनुमति न देना ही समाज हित में बेहतर है।