अनुशासनहीनता में आईपीएस अधिकारी अमिताभ निलंबित

अनुशासनहीनता में आईपीएस अधिकारी अमिताभ निलंबित
अमिताभ ठाकुर
अमिताभ ठाकुर

उत्तर प्रदेश शासन द्वारा पुलिस महानिरीक्षक नागरिक सुरक्षा के पद पर कार्यरत अमिताभ ठाकुर को स्वेच्छाचारिता, अनुशासनहीनता, शासन विरोधी दृष्टिकोण, उच्च न्यायालय के निर्देशों की अनदेखी, अपने पद से जुड़े दायित्वो एवं कर्तव्यो के प्रति उदासीनता व नियमों आदि के उल्लंघन मे प्रथम दृष्टया दोषी पाते हुए तात्कालिक प्रभाव से निलम्बित करने का निर्णय लिया गया है। इस दौरान अमिताभ ठाकुर पुलिस महानिदेशक कार्यालय से सम्बद्ध रहेंगे तथा उनकी पूर्वानुमति के बिना मुख्यालय नहीं छोड़ेंगे।

उल्लेखनीय है कि आईपीएस अमिताभ ठाकुर को उच्च न्यायालय, खण्डपीठ- लखनऊ द्वारा एक रिट याचिका के संबंध में पारित निर्णय में आदेशित किया गया था कि सरकारी सेवा में रहते हुए शासन की अनुमति प्राप्त किये बिना लोकहित याचिका योजित न की जाये। उच्च न्यायालय द्वारा यह भी निर्देशित किया गया कि शासन की अनुमति के बिना कोई भी लोकसेवक इस प्रकार की लोकहित याचिका दाखिल नहीं करेगा, जब तक संगत प्रकरण में उसके व्यक्तिगत हित अन्तर्निहित न हों।

अमिताभ ठाकुर द्वारा नियम विरूद्ध ढंग से और उच्च न्यायालय के उक्त निर्देशों की अवहेलना करते हुए अनेक याचिकायें योजित की गयी हैं, साथ ही श्री ठाकुर द्वारा अपने अधिकार क्षेत्र के बाहर जाकर शासन एवं विभिन्न शासकीय विभागों के प्रकीर्ण प्रकरणों की स्वस्फूर्त जाँच बिना किसी अधिकार के तथा बिना सक्षम अधिकारी की अनुमति के की गयी तथा मीडिया के माध्यम से शासन की नीतियों एवं अधिकारियों के विरूद्ध बिना समुचित एवं औचित्यपूर्ण कारणों के बयानबाजी की गई। उनके इस आचरण से पुलिस विभाग में अनुशासनहीनता को बढ़ावा मिल रहा है तथा जनता में शासन व पुलिस विभाग की छवि धूमिल हुई है।

श्री ठाकुर के द्वारा नियमों की अवहेलना करते हुए बिना अनुमति के विभिन्न संगठनों की बैठकों में भाग लेने, सरकारी संसाधनों का दुरूपयोग करने, जनता को उकसाकर अथवा दिग्भ्रमित कर के शासकीय अधिकारियों के कार्यो में बाधा पहुँचाने, पुलिस प्रशासन एवं शासन की छवि को धूमिल करने संबंधी क्रियाकलापों में संलिप्त होने, राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के विरूद्ध सार्वजनिक रूप से गरिमाविहीन एवं आपत्तिजनक टिप्पणी करने, मुख्यालय पुलिस महानिदेशक के सामने धरना देने, अखिल भारतीय सेवायें (आचरण) नियमावली, 1969 के अन्तर्गत वार्षिक सम्पत्ति विवरण त्रुटिपूर्ण एवं अनियमित ढंग से प्रेषित करने, अपनी शासकीय क्षमता एवं सरकारी संसाधनों का अनुचित प्रयोग कर के सरकारी विभागों से सूचनाएँ प्राप्त कर उनके आधार पर अपनी पत्नी के माध्यम से तथा स्वयं भी जनहित याचिकाएँ दाखिल कराने के तथ्य भी शासन के संज्ञान में आये, जिससे उन्हें निलंबित कर मुख्यालय से संबद्ध कर दिया गया।

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