उत्तर कोरिया में हाल ही में चुनाव हुआ है, वहां की संसद सुप्रीम पीपल्स असेंबली के सदस्यों के चुनाव के लिए वोट तो डाले गए, लेकिन देश भर के 687 जिलों में हुए चुनाव में बैलेट पेपर पर सिर्फ एक उम्मीदवार का नाम था, जिस पर मतदाताओं को सिर्फ ‘हां’ या ‘नहीं’ लिखना था, इसके बावजूद परंपरागत परिधानों में सजे-धजे मतदाता झूमते-गाते हुए मतदान केंद्रों पर पहुंचे, मतदान प्रतिशत 99.98 रहा। तानाशाह किम जोंग-उन अपने पिता की ही जगह माउंट पाकेटू के चुनाव क्षेत्र नंबर- 111 से चुनाव लड़े, ऐसे चुनाव के बावजूद उत्तर कोरिया स्वयं को लोकतांत्रिक राष्ट्र मानता है, जबकि विश्व तानाशाही प्रणाली कहता है।
अब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में अध्यक्ष पद के लिए होने वाले चुनाव पर नजर डालिए, यहाँ भी एक मात्र उम्मीदवार हैं राहुल गाँधी। देश भर के कांग्रेसी चुनाव में भाग लेंगे और विकल्प भी सिर्फ “हाँ” ही है, जो कांग्रेस को उत्तर कोरिया से भी पीछे दर्शाने को काफी है। सिर्फ एक विकल्प होने के बावजूद कांग्रेसी उत्तर कोरिया के ही मतदाताओं की तरह नये परिधान पहन कर झूमते-गाते हुए आयेंगे और जश्न मनायेंगे। मतदान प्रतिशत भी उत्तर कोरिया जैसा ही रहेगा। राजनैतिक विरासत भी राहुल गाँधी किम जोंग-उन की ही तरह संभालने का प्रयास कर रहे हैं, साथ ही उत्तर कोरिया की ही तरह कांग्रेसियों का दावा है कि उनका दल भी लोकतांत्रिक है, लेकिन बाकी सब तानाशाही व्यवस्था ही मानते हैं। उत्तर कोरिया और कांग्रेस में एक बड़ा अंतर यह है कि उत्तर कोरिया के मतदाता किम जोंग-उन के भय में ऐसा कर रहे हैं और कांग्रेस में चापलूसी के चलते यह सब हो रहा है।
इसके अलावा कांग्रेसी एक और झूठ निरंतर फैलाते रहते हैं कि उनकी पार्टी ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था और भारत को स्वतंत्र कराया था, जबकि ऐसा कुछ नहीं हुआ था। कांग्रेस की स्थापना भी भारत को स्वतंत्र कराने को नहीं, बल्कि अंग्रेजों की षड्यंत्रकारी नीति के अंतर्गत की गई थी। भारत में विरोध के स्वर गूंजने लगे, तो डफरिन ने एक योजना बनाई, जिस पर आगे का कार्य एनीबेसेंट ने किया, उनकी थियोसोफिकल सोसाइटी के प्रमुख सदस्य थे एलेन ओक्टेवियन ह्यूम। एनीबेसेंट ने ए. ओ. ह्यूम को दायित्व दिया कि भारत के प्रभावशाली लोगों की एक संस्था बनायें, जो अंग्रेजों की नीतियों को सही बताते हुए भारतीयों को समझायें। ए. ओ. ह्यूम अति पिछड़े इटावा जिले के कलेक्टर रहे थे, इस दौरान उन्होंने कई उल्लेखनीय कार्य किये थे। उन्होंने देश भर में कुख्यात चंबल के सर्वाधिक खतरनाक डाकू सुल्ताना को गिरफ्तार कराया था। अस्पताल के साथ 32 शिक्षण संस्थान खोले थे एवं इटावा को व्यापारिक केंद्र बनाने के उद्देश्य से ह्यूमगंज की स्थापना की थी, इससे वे देश की जनता के बीच बेहद लोकप्रिय हो गये और भारतीय उन पर विश्वास करने लगे, इसलिए एनीबेसेंट ने ए. ओ. ह्यूम को चुना, लेकिन वे अंग्रेजों की ओर नहीं थे।
ए. ओ. ह्यूम ने वर्ष- 1874 में भारतीय राष्ट्रीय संघ की स्थापना की, जिसका एक वर्ष बाद 28 दिसंबर से 31 दिसम्बर 1875 तक बंबई के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत विद्यालय में अधिवेशन आयोजित किया गया, इस अधिवेशन में दादाभाई नौरोजी ने संगठन का नाम बदलकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस रखने का सुझाव रखा, तो स्वीकार कर लिया गया एवं इस संगठन का झंडा तिरंगा रखा गया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पहले अध्यक्ष कोलकाता उच्च न्यायालय के प्रमुख वकील व्योमेश चंद्र बनर्जी को बनाया गया, उस समय कुल 72 सदस्य थे, जो उच्च वर्ग के थे, धनाढय और अंग्रेजी बोलने व समझने वाले थे, इसमें बाद में अन्य तमाम लोग जुड़ते चले गये, इसी क्रम में राष्ट्रवादी और स्वतंत्र भारत की कल्पना रखने वाले लोग भी जुड़े, तो अंग्रेजों की षड्यंत्रकारी सोच की उपज वाला संगठन स्वतंत्रता आंदोलन का मुखिया बनता चला गया, लेकिन कांग्रेस में अंग्रेजों के शुभचिंतक पूरी तरह समाप्त नहीं हुए।
अंत में भारत स्वतंत्र हुआ, तो अंग्रेज अपने शुभचिंतक जवाहर लाल नेहरू को सत्ता सौंप कर ब्रिटेन चले गये। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस राजनैतिक दल बन गया, जिसे चुनाव चिन्ह मिला “दो बैलों की जोड़ी”। अनुशासनहीनता के चलते इंदिरा को पार्टी से निष्कासित कर दिया गया, जिसके बाद 1969 में कांग्रेस में विभाजन हुआ, तो पार्टी कांग्रेस (ओ) और कांग्रेस (आर) में विभाजित हो गई। इंदिरा प्रिदर्शिनी गांधी के गुट को कांग्रेस (आर) के नाम से जाना गया, जिसको चुनाव चिन्ह मिला “गाय और बछड़ा”। अर्थात भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाली कांग्रेस पीछे छूट गई।
भारत को स्वतंत्र कराने का फर्जी दावा करने वाली कांग्रेस ने वर्ष- 1975 में देश पर कब्जा कर लिया और इंदिरा प्रिदर्शिनी गाँधी तानाशाह बन गईं, जिसके बाद वर्ष- 1977 में हुए चुनावों में कांग्रेस बुरी तरह हार गई, इसके बाद कांग्रेस का पुनः विभाजन हुआ, तो इंदिरा ने कांग्रेस (आई) का गठन किया, अर्थात भारत को कथित तौर पर स्वतंत्र कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली कांग्रेस का वर्तमान कांग्रेस में एक अंश भी शेष नहीं बचा है। कहा जाता है कि आपातकाल के बाद मिली हार से इंदिरा अवसाद में चली गईं, तो कांचि कामकोटि के तत्कालीन शंकराचार्य स्वामी चन्द्रशेखरेन्द्र सरस्वती से मिलने गईं। इंदिरा शंकराचार्य के सामने धारा-प्रवाह बोलती रहीं, पर शंकराचार्य ने उनके किसी सवाल का कोई उत्तर नहीं दिया। इंदिरा प्रणाम कर जाने लगीं, तो शंकराचार्य ने दाहिना हाथ उठाकर आशीर्वाद दिया, इसी संकेत को इंदिरा ने आशीर्वाद माना और फिर अपने गुट का चुनाव चिन्ह “पंजा” बनाने का निर्णय ले लिया।
अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का झंडा स्वतंत्रता के बाद राष्ट्रीय ध्वज बन गया। संगठन को सही मान लें, तो वह कांग्रेस (आर) और कांग्रेस (आई) के बाद आंशिक रूप में भी नहीं बचा है। सिर्फ कांग्रेस शब्द जुड़ा होने से ही प्राचीन कांग्रेस है, तो फिर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, हरियाणा जनहित कांग्रेस, कांग्रेस समाजवादी दल और भारतीय युवा कांग्रेस भी दावा कर सकते हैं कि उसने देश स्वतंत्र कराया था।
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