बदायूं जिले की पुलिस हत्या, लूट, राहजनी, यौन शोषण और अवैध कब्जों जैसी जघन्य वारदातें नहीं रोक पा रही है, लेकिन आम आदमी की तो बात ही छोड़िये, मानसिक रोगियों तक पर बल प्रयोग करती नजर आ रही है। मानव अधिकार उल्लंघन की जघन्य वारदात का खुलासा होने के बावजूद एसएसपी ने अभी तक सिर्फ जांच अधिकारी नामित किया है, जबकि दरिंदगी की हदें पार करने वाले दोषी पुलिस कर्मियों को सेवा में रहने तक का अधिकार नहीं है।
उल्लेखनीय है कि बदायूं जिले की बिसौली कोतवाली पुलिस ने बिसौली से सटे गांव पिंदारा निवासी सुभाष यादव को रोडवेज बस स्टैंड के पास से बेवजह हिरासत में ले लिया था। बताते हैं कि सुभाष मानसिक रोगी है, वह एक दुकान पर बैठा चाय पी रहा था, तभी उसने कप फेंक दिया, इसी बात पर चाय विक्रेता ने न सिर्फ सुभाष को हड़काया, बल्कि पहचान के पुलिस वालों से उसे पकड़वा दिया।
पुलिस सुभाष को बिसौली कोतवाली ले गई, जहां उसकी अर्द्ध नग्न कर पटे से जमकर मार लगाई गई। उसे कई दिनों तक कोतवाली में बंधक बना कर रखा गया और बारी-बारी से पीटा गया। एक पुलिस कर्मी थमले से चिपका कर उसे खड़ा कर लेता था और दूसरा पुलिस कर्मी उसे जमकर मारता था, वह बुरी तरह चीखता भी था, लेकिन कोतवाली में तैनात किसी अफसर और सिपाही पर उसकी चीखों का असर नहीं हुआ।
मानसिक रोगी सुभाष को पुलिस तीन दिन तक बंधक बना कर मारती रही। इस बीच किसी ने उसके उत्पीड़न का वीडियो बना लिया, जिसके वायरल होते ही पुलिस ने उसे छोड़ दिया। समूचा प्रकरण पुलिस अधिकारियों के संज्ञान में भी पहुंच चुका है, लेकिन पुलिस अफसर दबाने के प्रयास कर रहे हैं। एसएसपी सौमित्र यादव ने प्रकरण की जांच सीओ बिसौली राजवीर सिंह को सौंपी है, जबकि मानव अधिकार से जुड़े इस प्रकरण में तत्काल कार्रवाई होनी चाहिए थी। सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेश हैं कि पुलिस अपराधी को चौबीस घंटे से अधिक हिरासत में नहीं रख सकती, ऐसे में सुभाष यादव को बेवजह तीन दिन तक न सिर्फ हिरासत में रखा, बल्कि जानवरों की तरह मारा भी।