उत्तर प्रदेश के युवा और लोकप्रिय मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को इतिहास से सबक लेकर आगे बढ़ना चाहिए। इतिहास को दरकिनार कर देंगे, तो उन्हें इतिहास में उचित स्थान भी नहीं मिल सकेगा। अखिलेश यादव को यह निर्णय लेना ही पड़ेगा कि उन्हें मोह के रास्ते पर चलना है, या वैराग के? मोह के सिंहासन पर बैठ कर वैराग की बातें न कोई पसंद करता है और न ही उसके सकारात्मक परिणाम निकल सकते हैं, ऐसा करते रहने से उनकी छवि खराब ही होगी। अखिलेश के पास बहुत ज्यादा समय नहीं है, इसलिए वे शीघ्र मोह, या वैराग में से एक रास्ता चुन कर जनता के सामने स्थिति स्पष्ट कर दें, क्योंकि उनके निर्णय न ले पाने के कारण उत्तर प्रदेश की जनता भी असमंजस की स्थिति में नजर आ रही है।
उत्तर प्रदेश के सफल मुख्यमंत्री के रूप में अखिलेश यादव पर किसी को संदेह नहीं हो सकता। अखिलेश यादव पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जिनसे आम जनता, उद्योगपति, विपक्षी और नौकरशाही एकसमान प्रेम करते हैं, इसीलिए वे हर वर्ग में लोकप्रिय हैं। किसी दल को वोट देने और न देने के मतदाता के पास कई कारण हो सकते हैं और किसी कारण से जो अखिलेश यादव को वोट नहीं दे सकते, वे मतदाता भी अखिलेश यादव की व्यक्ति के तौर पर प्रशंसा करते दिखाई देते हैं, इसी पूँजी के बल पर समाजवादी पार्टी चुनाव में जाने का साहस कर सकती है। अखिलेश यादव के अलावा समाजवादी पार्टी के पास चुनाव में भाग लेने का हाल-फिलहाल दूसरा कोई कारण नहीं दिख रहा है। विकास कार्य, योजनायें और अखिलेश यादव के संपूर्ण व्यक्तित्व पर कोई सवाल नहीं उठाता। सवाल सरकार और सरकार से बाहर के लोगों पर उठते रहे हैं। सरकार की जब-जब फजीहत हुई है, उसमें भूमिका अन्य लोगों की ही रही है, इसलिए उत्तर प्रदेश की जनता में यह अटूट विश्वास नजर आता है कि अनुभवहीन अखिलेश यादव ने जब इतना शानदार कार्य किया है, तो अनुभव आने के बाद और भी बेहतर करेंगे। जनता के इस विश्वास की अनुभूति अखिलेश को भी है, तभी उनका मनोबल बढ़ा हुआ नजर आता है, लेकिन हाल-फिलहाल चल रहे समाजवादी पार्टी के घमासान में चार दिन के बाद सामने आई उनकी भूमिका से जनता असमंजस की स्थिति में नजर आने लगी है।
जनता को कहीं न कहीं यह विश्वास था कि अखिलेश यादव अगर, पुनः मुख्यमंत्री बनेंगे, तो और बेहतर शासन दे सकेंगे, पारदर्शी सरकार होगी, पर शिवपाल सिंह यादव के अचानक हावी होने से उनके प्रति जनता का विश्वास कमजोर हुआ नजर आ रहा है। जनता को यहाँ तक लगने लगा है कि इस बार समाजवादी पार्टी को बहुमत दे दिया, तो शायद, अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री ही नहीं बनने दिया जायेगा। अखिलेश यादव स्वयं भी कह रहे हैं कि सभी शांत रहें और नेता जी (मुलायम सिंह यादव) के निर्णय का सम्मान करें, इससे जनता को लगने लगा है कि चुनाव बाद नेता जी उनकी जगह किसी और को भी मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय ले सकते हैं। जनता के मन में सवाल यह भी उठ रहा है कि अखिलेश यादव ही मुख्यमंत्री बने, तो भी उनसे दबाव में कुछ भी कराया सकता है। अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देना पड़ जाता, विधान सभा भंग हो जाती, वे पद छोड़ कर अलग हट जाते और उनकी जगह नेता जी, अथवा शिवपाल सिंह यादव मुख्यमंत्री बन जाते, तो जनता का विश्वास उनके प्रति कमजोर नहीं होता, उनके आत्मसमर्पण कर देने से जनता न सिर्फ असमंजस की स्थिति में दिख रही है, बल्कि मायूस भी नजर आ रही है।
उत्तर प्रदेश में उड़ रही तमाम अफवाहों और आशंकाओं के बीच अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी का घोड़ा सरपट दौड़ता नजर आ रहा था, जो शिवपाल वार के बाद पूरी तरह घायल हो गया है, इस घोड़े पर बैठ कर अब अखिलेश भी चुनावी समर में नहीं जा सकते, इसलिए अखिलेश को मिशन- 2017 से स्वयं को अलग कर लेना चाहिए, उनके प्रति जनता के भाव अच्छे बने रहेंगे, जिसका लाभ अगले चुनाव में उन्हें मिल सकता है और अगर, इस चुनाव से वे अलग नहीं हट सकते, तो उन्हें समाजवादी पार्टी और शिवपाल में से किसी एक को चुनना पड़ेगा, यह दोनों एक ही हैं, तो उन्हें तत्काल अपना अलग दल गठित कर लेना चाहिए। अखिलेश को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठना है, उत्तर प्रदेश का विकास करना है और जनभावनाओं का आदर करते हैं, तो तत्काल अलग दल गठित कर अगले चुनाव में भाग लें, इसके विपरीत उन्हें वैराग की राह चुननी है, तो मुख्यमंत्री का दायित्व भी तत्काल छोड़ दें। उत्तर प्रदेश और जनता की दुर्गति अपने नेतृत्व में न करायें। जो लोग दुर्गति कर रहे हैं, उन्हें ही कुर्सी सौंप दें। इन दोनों ही अवस्थाओं में जनता उनके साथ खड़े होने को तैयार नजर आ रही है।
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