शपथपत्र का खुलेआम उल्लघंन कर रहे हैं आईपीएस अमिताभ

शपथपत्र का खुलेआम उल्लघंन कर रहे हैं आईपीएस अमिताभ
आईपीएस अधिकारी अमिताभ
आईपीएस अधिकारी अमिताभ

सच्चाई का स्वयं के जीवन के साथ संपूर्ण समाज में आज भी बड़ा महत्व है और संकल्प का सच्चाई से भी बड़ा महत्व है। अगर, कोई सार्वजनिक रूप से संकल्प ले ले और उस संकल्प को निभाये भी, तो उस व्यक्ति का सम्मान समाज में और अधिक बढ़ जाता है, लेकिन सार्वजनिक रूप से संकल्प लेने के बाद व्यक्ति संकल्प को न निभाये पाये, तो समाज फिर उसे सामान्य व्यक्ति जैसा भी सम्मान नहीं देता, ऐसा सामाजिक नियम व परंपरा प्राचीन काल से ही चली आ रही है, इसलिए लोग समाज के समक्ष लिए गये संकल्प को निभाने का संपूर्ण प्रयास करते हैं।

शासन-प्रशासन और न्यायालय में भी संकल्प लेने की परंपरा को बरकरार रखा गया है। कोई व्यक्ति शपथ पूर्वक कुछ कहता है, तो शासन-प्रशासन और न्यायालय भी जाँच कराये बिना स्वीकार कर लेता है, लेकिन सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव पर आरोप लगाने वाले और एक महिला द्वारा यौन शोषण के मामले में आरोपित किये गये आईपीएस अधिकारी अमिताभ ने भी संकल्प लिया था, जिस पर वो खरे उतरते नजर नहीं आ रहे हैं।

अमिताभ वर्ष- 2011 में ईओडब्ल्यू- मेरठ में पुलिस अधीक्षक का दायित्व संभाल रहे थे। 8 अप्रैल 2011 को उन्होंने ओथ कमिश्नर- मेरठ के समक्ष शपथ पत्र देते हुए कहा था कि जाति-प्रथा के अहितकारी और बाधक असर को उसकी सम्पूर्णता में देखते हुए मैंने यह निर्णय लिया है कि भविष्य में मेरी कोई भी जाति नहीं होगी, इस प्रकार सभी आधिकारिक, शासकीय और सामाजिक अभिलेखों, दस्तावेजों, मान्यताओं और सन्दर्भों में किसी भी आवश्यकता पड़ने पर मेरी जाति “कोई नहीं” अथवा “शून्य” मानी जाए, साथ ही मैंने अपने नाम के साथ जातिसूचक उपनाम को भी हटा कर आगे से सभी आधिकारिक, शासकीय और सामाजिक अभिलेखों, दस्तावेजों, मान्यताओं और सन्दर्भों में भी अपना नाम “अमिताभ ठाकुर” नहीं मात्र “अमिताभ” कर दिया है। मैं अपनी तरफ से अपने सामर्थ्य भर एक जातिविहीन समाज की दिशा में अपना भी योगदान देने की पूरी कोशिश करूँगा, लेकिन उक्त शपथ पत्र देने के बावजूद वे आज भी सरनेम “ठाकुर” लगा रहे हैं। उनकी फेसबुक आईडी ही नहीं, बल्कि उनके प्रार्थना पत्र में और उनके द्वारा जारी की गईं खबरों में भी उनके नाम के साथ “ठाकुर” सरनेम जुड़ा रहता है।

आईपीएस अधिकारी अमिताभ ने शपथ देकर अपना कृत्य सार्वजनिक किया था, तब उन्हें बड़े पैमाने पर बधाई दी गई थी। बुद्धिजीवी वर्ग ने उनकी बड़ी सराहना की थी, जिससे वे गदगद थे। उस समय उन्होंने अपनी फेसबुक आईडी से “ठाकुर” सरनेम हटा भी दिया था एवं कुछ दिनों तक प्रार्थना पत्रों आदि में सिर्फ “अमिताभ” नाम ही लिखा था, पर और कुछ दिनों बाद सब कुछ पहले जैसा ही नहीं हो गया, बल्कि अब वे शान से “ठाकुर” सरनेम का प्रयोग करते नजर आ रहे हैं। चूँकि उन्होंने विधिवत शपथ पत्र दिया है, तो यह कानूनी रूप से भी गलत होना चाहिए, लेकिन कानूनी रूप से गलत न भी हो, तो इससे उनकी नीयत तो स्पष्ट होती ही है कि वे आत्मबल से सशक्त नहीं हैं। सार्वजनिक तौर पर लिए गये संकल्प के प्रति जो व्यक्ति ईमानदार नहीं है, उसको लेकर अन्य मामलों में भी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा को लेकर उसकी मंशा पर सवाल उठना स्वाभाविक ही है। स्पष्ट है कि जाति और सरनेम त्यागने का ऐलान महान बनने भर के लिए ही किया था और अगर, यही सच है, तो यह भी स्पष्ट हो जाता है कि वे चर्चा में बने रहने के लिए कुछ भी कर सकते हैं।

आईपीएस अधिकारी अमिताभ द्वारा शपथपत्र में जो शपथ ली गई थी, वो निम्नलिखित है। 

                                                 शपथ पत्र

मैं, वर्तमान नाम अमिताभ ठाकुर पुत्र श्री तपेश्वर नारायण ठाकुर, पता- 5/426, विराम खंड, गोमती नगर, लखनऊ इस समय पुलिस अधीक्षक, आर्थिक अपराध अनुसन्धान शाखा, मेरठ के पद पर कार्यरत सशपथ यह वयान करता हॅू कि-

1- यह कि मेरा जन्म 16 जून 1968 को मुजफ्फरपुर, बिहार में हुआ था।
2- यह कि मेरा जन्म एक हिंदू “भूमिहार ब्राह्मण” परिवार में हुआ था।
3- यह कि मेरा नाम मेरे घर वालों ने अमिताभ ठाकुर रखा था।
4- यह कि मैं आज तक इसी नाम “अमिताभ ठाकुर” तथा इसी जाति “भूमिहार ब्राह्मण” से जाना जाता रहा हूँ।
5- यह कि अपने गहरे तथा विषद चिंतन के बाद मेरा यह दृढ़ मत हो गया है कि हमारे देश में जाति-प्रथा का वर्तमान स्वरुप एक अभिशाप के रूप में कार्य कर रहा है और समय के साथ इसकी स्थिति बद से बदतर होती जा रही है।
6- यह कि मैं यह समझने लगा हूँ कि देश की प्रगति में बाधक प्रमुख तत्वों में एक तत्व जाति-प्रथा भी है।
7- यह कि जाति के इस प्रकार के स्वरुप के कारण कई बार सामाजिक विद्वेष तथा तमाम गलत-सही निर्णय भी होते दिखते रहते हैं।
8- यह कि मेरा यह दृढ़ मत हो गया है कि देश और समाज के समुचित विकास के लिए यह सर्वथा आवश्यक है कि हम लोग जाति के बंधन को तोड़ते हुए इस सम्बन्ध में तमाम महापुरुषों, यथा भगवान महावीर, गौतम बुद्ध, संत कबीर से लेकर आधुनिक समय के विचारकों की बातों का अनुसरण करें और जाति के इस प्रकार के बंधन से निजात पायें।
9- यह कि इन स्थितियों में मैं अपनी यह न्यूनतम जिम्मेदारी समझता हूँ कि मैं अपने आप को इस जाति-प्रथा के इस बंधन से विमुक्त करूँ।
11- यह कि तदनुरूप मैं यह घोषित करता हूँ कि भविष्य में मेरी कोई भी जाति नहीं होगी।
12- यह कि सभी आधिकारिक, शासकीय और सामाजिक अभिलेखों, दस्तावेजों, मान्यताओं और सन्दर्भों में किसी भी आवश्यकता पड़ने पर मेरी जाति “कोई नहीं” अथवा “शून्य” मानी जाए।
13- यह कि तदनुरूप मैं अपने नाम के साथ जातिसूचक उपनाम को भी हटाता हूँ।
14- यह कि मैं आज से आगे अपने आप को मात्र “अमिताभ” नाम से ही पुकारा तथा माना जाना चाहूँगा, साथ ही सभी आधिकारिक, शासकीय और सामाजिक अभिलेखों, दस्तावेजों, मान्यताओं और सन्दर्भों में भी अपना नाम “अमिताभ” ही समझूंगा, “अमिताभ ठाकुर” नहीं।
15- यह कि इस हेतु आधिकारिक तथा शासकीय अभिलेखों, दस्तावेजों आदि में अपने नाम के परिवर्तन हेतु मैं अग्रिम कार्यवाही इस शपथपत्र की कार्यवाही के पूर्ण होने के बाद आज से ही प्रारंभ कर दूँगा।
16- यह कि मैंने अपने सम्बन्ध में यह निर्णय अपने पूरे होशो-हवास में, अपना सब अच्छा-बुरा सोचने के बाद लिया है और यह निर्णय मात्र मेरे विषय में लागू है। मैं अपने इस निर्णय से अपनी पत्नी डॉ. नूतन ठाकुर तथा अपने दोनों बच्चों तनया ठाकुर और आदित्य ठाकुर को ना तो बाध्य कर सकता हूँ और ना ही तदनुसार बाध्य कर रहा हूँ, इस सम्बन्ध में वे अपने निर्णय अपने स्तर से ही लेने को सक्षम हैं।

अतः ईश्वर मेरी मदद करें।

अमिताभ

5/426, विराम खंड,
गोमती नगर, लखनऊ

पुलिस अधीक्षक
ईओडब्ल्यू, मेरठ।

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