तालाब था ही नहीं कभी, वहां तो किसानों की फसल है: डीएम

तालाब था ही नहीं कभी, वहां तो किसानों की फसल है: डीएम
समाधान दिवस में जिलाधिकारी से हाथ जोड़ कर गुहार लगाता एक वरिष्ठ नागरिक।
समाधान दिवस में जिलाधिकारी से हाथ जोड़ कर गुहार लगाता एक वरिष्ठ नागरिक।
बदायूं के जिलाधिकारी ने एक ओर कहा कि ग्राम सभा की सम्पत्ति पर कब्जा करने वाले जेल जायेंगे, वहीं दूसरी ओर कहा कि दातागंज तिराहे के पास कोई तालाब नहीं है, साथ ही कहा कि वह किसानों की जमीन है और वहां खेती हो रही है मौके पर डाली जा रही मिटटी के संबंध में जिलाधिकारी का कहना है कि ट्रैक्टर-ट्रालियों में शहर से बाहर कीचड़ डाला जा रहा है  
जिलाधिकारी चन्द्र प्रकाश त्रिपाठी ने आज कोतवाली दातागंज में समाधान दिवस के अवसर पर अपना दरबार लगाया, जहां हाथ जोड़ कर और पैर छूकर लोगों ने अपनी-अपनी समस्यायें बताईं, इस दौरान ग्राम समाज की जमीन पर कब्जा करने का प्रकरण आया, तो जिलाधिकारी ने कहा कि ग्राम समाज की जमीन कब्जाने वाले जेल भेजे जायेंगे, यह सुन कर मौके पर मौजूद लोग खुश हो गये, लेकिन दोपहर बाद उनका बयान आया कि दातागंज तिराहे के पास कोई तालाब नहीं है।
जिलाधिकारी का कहना है कि मुख्यमंत्री के कार्यक्रम स्थल में चन्दोखर तालाब के कुछ हिस्से को पाटकर मिलाए जाने सम्बन्धी सभी शिकायतें और विवाद पूर्णतया तथ्यहीन है। बताया कि उनके निर्देश पर गठित तीन सदस्यीय समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंपी दी है। समिति द्वारा दी गई रिपोर्ट का अपर जिलाधिकारी (प्रशासन), अपर जिलाधिकारी (वित्त एवं राजस्व) तथा बदायूं के अधिशासी अधिकारी द्वारा संयुक्त परीक्षण किया गया। 1924 से 1964 के राजस्व अभिलेखों के अनुसार कार्यक्रम स्थल विभिन्न काश्तकारों के नाम राजस्व अभिलेखों में दर्ज है, वहां तालाब अंकित नहीं हैं और खसरे में फसल भी दर्ज है।
समाधान दिवस में जिलाधिकारी के पैर छूता एक नागरिक।
समाधान दिवस में जिलाधिकारी के पैर छूता एक नागरिक।
नगर मजिस्ट्रेट, एसडीएम सदर और तहसीलदार की तीन सदस्यीय समिति से जांच कराने पर ज्ञात हुआ कि 1952 की खतौनी, प्रथम बन्दोबस्त फसली वर्ष 1331 (सन् 1924) तथा द्वितीय बन्दोबस्त फसली 1371 (सन् 1964) के अनुसार कार्यक्रम स्थल का गाटा विभिन्न काश्तकारों के नाम अभिलेखों में अंकित है। अभिलेखों में उक्त स्थल पर तालाब अंकित नहीं है। 1952 के खसरे में भी उक्त स्थल काश्तकारों के नाम दर्ज है और खसरे में फसलों का इन्द्राज है। इस प्रकार स्पष्ट होता है कि सम्बन्धित स्थल पर तालाब नहीं है, बल्कि यहां शहर की बड़ी हुई आबादी की नालियों का पानी भर जाता है। जिलाधिकारी ने उक्त आशय की जानकारी देते हुए बताया कि जांच समिति के अधिकारियों द्वारा शिकायतकर्ताओं तथा स्थानीय निवासियों के बयान अंकित किए गए हैं। स्थानीय निवासियों द्वारा बताया गया कि जिस स्थान की शिकायत की गई है, वह जगह प्रस्तावित कार्यक्रम स्थल से लगभग एक किलो मीटर दूर है।
समाधान दिवस में जिलाधिकारी से हाथ जोड़ कर गुहार लगाता एक नागरिक।
समाधान दिवस में जिलाधिकारी से हाथ जोड़ कर गुहार लगाता एक नागरिक।
खनन और मौके पर मिटटी डालने के मुददे पर जिलाधिकारी का कहना है कि स्थानीय लोगों द्वारा मोहल्ले से मिट्टी भरकर निकलने वाली ट्रैक्टर ट्रालियों से गन्दगी होने और अत्याधिक प्रदूषण व शोर की शिकायत की गई थी। सम्बंधित शिकायत को गम्भीरता से लेते हुए पुलिस एवं सम्बन्धित अधिकारियों को कड़े निर्देश दिए हैं कि ट्रैक्टर-ट्रालियों को आबादी के बीच से न निकलने दिया जाए और मोहल्ले में किसी प्रकार की गन्दगी तथा प्रदूषण एवं शोर न हो।
खैर, समिति की आख्या और जिलाधिकारी के बयान का आशय यह है कि तालाब प्रकरण में प्रशासन कोई कार्रवाई नहीं करने वाला, जबकि मौके पर मैदान जिलाधिकारी भी नहीं मान रहे हैं, उनका कहना है कि वहां किसानों की जमीन है और उसमें फसल है, तो सवाल स्वतः उठ जाता है कि किसानों की फसल पर जनसभा की तैयारी कैसे चल रही हैं?
भू-माफियाओं द्वारा प्राचीन तालाब के समतल किये जा चुके इसी भाग पर मुख्यमंत्री की जनसभा के लिए तैयारियां चल रही हैं।
भू-माफियाओं द्वारा प्राचीन तालाब के समतल किये जा चुके इसी भाग पर मुख्यमंत्री की जनसभा के लिए तैयारियां चल रही हैं।
कई सवाल हैं, पर प्रशासन अब किसी सवाल का जवाब नहीं देने वाला, जबकि सच्चाई यह है कि उक्त तालाब सात गाटा नंबरों में फैला हुआ था। मौके पर तालाब होने के बावजूद तालाब सिर्फ चार गाटा नंबरों में ही दर्ज था, बाकी नंबरों में पर्ती और आबादी गलत दर्ज थी। जिन नंबरों में तालाब दर्ज था, उन्हें भी परिवर्तित करा दिया गया है, साथ ही पुराना रिकॉर्ड गायब करा दिया गया है। जिलाधिकारी संबंधित भूमि किसानों के नाम बता रहे हैं, जबकि तालाब से संबंधित सभी गाटा नंबरों के बैनामे जिला संभल स्थित कस्बा चंदौसी की एक कंपनी और मुरादाबाद के एक व्यक्ति के नाम दर्ज हैं। अंतिम बैनामा 18 मई 2015 को कराया गया है। कागजों से हट कर मौके की बात की जाये, तो आज भी पचास बीघे से भी ज्यादा तालाब शेष है, जिसमें लगातार मिटटी डाली जा रही है, पर प्रशासन यहाँ जाँच और मौजूद अभिलेखों में उलझा कर प्रकरण को दबाने का प्रयास कर रहा है, जबकि बदायूं की पूरब दिशा में बहने वाली प्राचीन सोत नदी अभिलेखों में भी नदी के रूप में ही दर्ज है, जिसका आज अस्तित्व ही मिट चुका है, अर्थात प्रशासन को न नदी बचानी है और न ही तालाब, ऐसे में गुहार लगाना पत्थरों से सिर टकराने जैसा ही है।
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