लोकतंत्र की कल्पना करते हुए किसी ने यह सोचा तक नहीं होगा कि लोकतंत्र में जनप्रतिधियों और उनके परिवार के सदस्यों का आचरण शहंशाहों से भी ज्यादा विवादित हो जायेगा। कुछ जनप्रतिनिधियों और उनके परिजनों ने विलासिता के मुददे पर शहंशाहों को भी पीछे छोड़ दिया है। तमाम नेताओं के भव्य जन्मदिन और भव्य विवाह आदि समारोह आलोचना के केंद्र में बने ही रहते हैं, इसके बावजूद जनप्रतिनिधियों और उनके परिजनों के आचरण में सुधार होता नजर नहीं आ रहा। इस कड़ी में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत के परिवार का नाम भी जुड़ने जा रहा है।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत के तीसरे नंबर के पुत्र दिग्विजय सिंह रावत दिल्ली में रह कर पढ़ते हैं, साथ ही व्यापार आदि में पिता व भाइयों का सहयोग भी करते हैं। दिग्विजय के संबंध में तमाम तरह के अप्रमाणित किस्से चर्चा में रहते हैं, उन किस्सों का उल्लेख करना सही नहीं रहेगा, लेकिन इतना जरूर है कि उनके बारे में चर्चायें यूं ही शुरू नहीं हुई हैं। दिग्विजय के हाव-भाव और आचरण इस तरह का है कि उनके बारे में कुछ सच्ची और कुछ झूठी कहानियाँ बनती रहती हैं।
दिग्विजय के बारे में कहा जाता है कि वे अपने पिता के शक्तिशाली कद का खुलेआम दुरूपयोग करते रहते हैं। सार्वजनिक स्थलों पर शराब पीना, धूम्रपान करना और लालबत्ती लगी गाड़ी में घूमना दिग्विजय के लिए आम बात है। उनका मिजाज भी रंगीन बताया जाता है। लग्जरी गाड़ियों के भी बड़े शौकीन बताये जाते हैं। दिग्विजय को लड़कियों के आसपास रहना भी अच्छा लगता है। यह सब करने में दिग्विजय को किसी तरह का संकोच भी नहीं होता, क्योंकि वह स्वयं ही अपने फोटो अपनी फेसबुक प्रोफाइल पर अपलोड करते रहते हैं। शायद, दिग्विजय को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि लोग उनके बारे में क्या कहेंगे, उन्हें इसका भी डर नहीं है कि लोग उनके आचरण के सहारे उनके पिता पर भी अंगुली उठा सकते हैं।
दिग्विजय के आचरण पर कुछ लोग कह सकते हैं कि यह उनकी व्यक्तिगत जिन्दगी है और उसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, लेकिन जब व्यक्ति किसी बड़े दायित्व का निर्वहन कर रहा होता है, अथवा ऐसे व्यक्ति से सीधा जुड़ा होता है, तब उसका संपूर्ण जीवन व्यक्तिगत नहीं रहता, ऐसे में आम आदमी सवाल उठा सकता है।
आचरण का लोकतंत्र में बड़ा महत्व हो जाता है। व्यवस्था संभालने वालों में अहंकार का भाव न आ जाये, इसीलिए जनप्रतिनिधि नाम दिया गया। लोकतंत्र के विषय में अब्राहिम लिंकन की परिभाषा है कि “लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए और जनता द्वारा शासन-प्रामाणिक मानी जाती है। लोकतंत्र में जनता ही सत्ताधारी होती है, उसकी अनुमति से शासन होता है, उसकी प्रगति ही शासन का एकमात्र लक्ष्य माना जाता है। परंतु लोकतंत्र केवल एक विशिष्ट प्रकार की शासन प्रणाली ही नहीं है, वरन् एक विशेष प्रकार के राजनीतिक संगठन, सामाजिक संगठन, आर्थिक व्यवस्था तथा एक नैतिक एवं मानसिक भावना का नाम भी है। लोकतंत्र जीवन का समग्र दर्शन है, जिसकी व्यापक परिधि में मानव के सभी पहलू आ जाते हैं।”
महात्मा गांधी को लगता था कि अंग्रेजों द्वारा स्थापित प्रशासनिक ढांचे को भारतीयों को स्थानांतरित कर देने से हिंदुस्तान इंगलिस्तान बन जायेगा, इसीलिए वे भारत में आजादी के बाद कांग्रेस पार्टी को भंग करना चाहते थे, ताकि भारत में संपूर्ण रूप से लोकतंत्र स्थापित हो सके, लेकिन ऐसा नहीं हो सका, जिसका दुष्परिणाम यही है कि लोकसेवक और उनके परिजन स्वयं को शहंशाह समझने लगे हैं और दिग्विजय सिंह रावत उस सोच का एक उदाहरण मात्र हैं।