भारत माँ को कलंकित कर चुकी है राहुल-प्रियंका वाली नकली कांग्रेस

भारत माँ को कलंकित कर चुकी है राहुल-प्रियंका वाली नकली कांग्रेस

अखिल भारतीय कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी और उनकी महासचिव बहन प्रियंका वाड्रा स्वतंत्रता संग्राम में कांग्रेस के योगदान को लेकर गौरवांवित दिखाई देते हैं, जबकि वे स्वतंत्रता संग्राम में योगदान देने वाली कांग्रेस के पदाधिकारी नहीं हैं। वर्तमान कांग्रेस को अगर, स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाली कांग्रेस से जोड़ा जायेगा तो, वर्तमान कांग्रेस को निश्चित ही नकली कांग्रेस कहा जायेगा, क्योंकि स्वतंत्रता से पूर्व जिस भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की गई थी, उससे उनकी कांग्रेस का कोई संबंध नहीं है।

असली कांग्रेस अर्थात, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की बात करते हैं। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना अंग्रेजों की ही एक चाल थी। भारतीयों में अंग्रेजों के प्रति घृणा भाव बढ़ने लगा तो, अंग्रेजों ने ही एक ऐसा संगठन बनाने का विचार रखा, जिसमें भारतीय नेता रखे जायें और वे अंग्रेजों की छवि सही करने की दिशा में आम जनता के बीच कार्य करें, इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए ए. ओ. ह्यूम की अध्यक्षता में 72 प्रतिनिधियों की पहली सभा 28 दिसम्बर 1885 को बाम्बे स्थित गोकुलदास तेजपाल संस्कृत महाविद्यालय में आयोजित की गई, जिसमें व्योमेश चंद्र बनर्जी को प्रथम अध्यक्ष बनाया गया।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अंग्रेजों की योजना के अनुरूप ही कार्य कर रही थी लेकिन, बाल गंगाधर तिलक ने स्वराज का नारा बुलंद कर दिया, जिससे गरम और नरम दल के रूप में नेता बंट गये। वर्ष- 1915 में महात्मा गांधी भारत आये, जिसके बाद स्वराज के नारे को और गति मिली। सरदार वल्लभभाई पटेल, सुभाष चंद्र बोस, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और महादेव देसाई के जुड़ने से कांग्रेस आम जनता के बीच लोकप्रिय हो गई। तमाम कुरीतियों के विरुद्ध आंदोलन चलाते हुए स्वराज की दिशा में भी कांग्रेस बढ़ती रही। आम जनता से चार आना शुल्क लेकर सदस्यता अभियान भी चलता रहा। तमाम उतार-चढ़ाव और असंख्य घटनाक्रमों के साथ ही बड़ी कुर्बानी देने के बाद सत्ता हस्तांतरण हुआ, जिसे कथित स्वतंत्रता कहा जाता है। कथित शब्द इसलिए भी लगाया कि अंग्रेजों से जवाहर लाल नेहरू ने सत्ता हथिया ली थी।

खैर, महात्मा गांधी सत्ता हस्तांतरण के बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को भंग करने के पक्ष में थे पर, कांग्रेस के प्रति आम जनता की आस्था के कारण सत्ता सुख भोगने वालों ने कांग्रेस को भंग नहीं होने दिया। जवाहर लाल नेहरू स्वयं-भू प्रधानमंत्री बन गये। स्वतंत्रता मिलने के बाद पहली बार वर्ष- 1951 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में दरार पड़ी। जे. कृपलानी ने किसान मजदूर प्रजा पार्टी और एन. जी. रंगा ने हैदराबाद स्टेट प्रजा पार्टी बना ली, जिसके बाद सौराष्ट्र खेदुत संघ बनाई गई। अगले वर्ष- 1956 में सी. राजगोपालाचारी ने इंडियन नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी की स्थापना कर ली। वर्ष- 1959 में राज्यों में तमाम नेताओं ने कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टियाँ बना लीं। वर्ष- 1964 में के. एम. जॉर्ज ने केरल-कांग्रेस नाम से पार्टी बना दी। वर्ष- 1966 में उड़ीसा में हरकृष्णा महाताब ने उड़ीसा-जन-कांग्रेस नाम की पार्टी बना ली।

वर्ष- 1967 में कांग्रेस से अलग होकर चरण सिंह ने भारतीय क्रांति दल बना दिया, इसी वर्ष बंगाल में अजय मुखर्जी ने बांग्ला-कांग्रेस बना ली। वर्ष- 1968 में मणिपुर में भूचाल आया और वर्ष- 1969 में कांग्रेस पार्टी से बीजू पटनायक और मारी चेन्ना रेड्डी भी अलग हो गये, इन्होंने उत्कल-कांग्रेस और तेलंगाना प्रजा समिति नाम से पार्टी बनाईं।

वर्ष- 1997 में बंगाल में ममता बनर्जी ने तृणमूल कांग्रेस बनाई एवं तमिलनाडु में बी. रामामूर्ति ने मक्काल कांग्रेस की स्थापना की। वर्ष- 1978 में कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र और गोवा में कांग्रेस में फिर युद्ध हुआ और पार्टी फिर टूटी, जिससे इंडियन नेशनल कांग्रेस बनी। वर्ष- 1981 में शरद पवार ने अलग होकर इंडियन नेशनल कांग्रेस सोशलिस्ट बना ली, इसी वर्ष बिहार में जगजीवन राम ने जगजीवन-कांग्रेस पार्टी की स्थापना कर दी। वर्ष 1984 में असम में शरत चंद्र सिन्हा ने अपनी पार्टी बना ली। वर्ष- 1986 में प्रणब दा ने राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस बना दी। वर्ष- 1988 में शिवाजी गणेशन ने तमिलानाडु में टीएमएम बना ली। वर्ष- 1994 में तिवारी कांग्रेस बनाई गई, जिसमें नारायण दत्त तिवारी, अर्जुन सिंह, नटवर सिंह भी शामिल रहे। वर्ष- 1994 में ही कर्नाटक में बंगरप्पा, अरुणाचल प्रदेश में गेगांग अपंग, तमिलनाडु में मुपनार और मध्य प्रदेश में माधवराव सिंधिया ने भी विद्रोह किया था।

वर्ष- 1998 में गोवा राजीव कांग्रेस, अरुणाचल कांग्रेस, ऑल इंडिया इंदिरा कांग्रेस (सेकुलर), महाराष्ट्र विकास अगाढ़ी बनाई गईं, इसके बाद वर्ष- 1999 में नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी बनी और जम्मू कश्मीर में मुफ्ती मोहम्मद सईद ने पीडीपी बना ली, इसके बाद तमिलनाडु, पांडिचेरी, गोवा, अरुणाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, केरल, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, बंगाल और आंध्र प्रदेश में कांग्रेस टूटती ही रही है।

खैर, एक बार बात फिर शुरू से ही करते हैं। स्वतंत्रता मिलने के बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस चुनाव मैदान में उतरी तो, उसे चुनाव चिन्ह बैल का जोड़ा दिया गया। 12 नवंबर 1969 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से इंदिरा गांधी को बर्खास्त कर दिया गया था, जिसके बाद इंदिरा गांधी ने अलग पार्टी बना ली, जिसे गाय-बछड़े का चिन्ह मिला। आपातकाल के बाद कांग्रेस (आर) में फिर विद्रोह हुआ। इंदिरा ने कांग्रेस (आई) नाम से एक और पार्टी बना ली, इस बार चुनाव चिन्ह पंजे का निशान चुना गया, इसी नाम को तानाशाह के रूप में कार्य करने वाली इंदिरा गांधी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के रूप में बदलवा लिया, जिसका अंग्रेजों के षड्यंत्र के तहत बनाई गई और स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाली भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से कोई संबंध नहीं हैं, इसलिए राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा के लिए गौरव की नहीं बल्कि, शर्म की बात इसलिए है कि वर्तमान कांग्रेस की स्थापना करने वाली उनकी दादी इंदिरा गांधी ने आपातकाल जैसा कलंक भारत माँ के माथे पर ऐसा लगाया है, जो कभी नहीं मिट सकता।

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