उत्तर प्रदेश मान्यता प्राप्त संवावददाता समिति के लोकप्रिय सचिव व वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस जातिवाद के आरोपों से घिरी समाजवादी पार्टी के पक्ष में न सिर्फ खड़े हो गये हैं, बल्कि उन्होंने सपा सरकार को बरी भी कर दिया है। उन्होंने बेबाकी के साथ तर्क देते हुए सिद्ध किया है कि सपा सरकार में मायावती से कम यादवों को नौकरियां दी गई हैं, साथ ही उच्च कुल के घनघोर जातिवादियों पर कटाक्ष भी किया है। श्री कलहंस द्वारा फेसबुक वॉल पर शेयर की गई पोस्ट निम्नलिखित है …
सुबह मित्र हरिशंकर शाही की पोस्ट देखी यूपीएससी के यादवीकरण के आरोपों की कुछ सच्चाई दिखाते हुए। तभी साथी नचिकेता मिश्रा जो यूपी में रिक्रूटमेंट के पैटर्न पर शोध कर रहे के साथ हुयी बातचीत में मिली जानकारी जेहन में कौंध गयी।
भाई लोगों ने जैसी तस्वीरें शाया कर दी सोशल मीडिया पर उससे मुझे भी लगने लगा था कि इस समाजवादी राज में यूपीएससी व दीगर सरकारी नौकरियों में यादव ही भरे जाते होंगे। उपर से अनिल यादव की यूपीएससी के चेयरमैन पद से न हटाने को लेकर सरकारी थेंथरई ने तो इसे और पुख्ता किया था। हालांकि तस्वीर तो उलट ही है।
अपनी 11 फीसदी आबादी के बरअक्स 13.6 फीसदी यादव ही बीते पांच सालों में राज्य की सेवाओं में चुने गए (हां उच्चकुल जन्मना लोगों की नजर गाय-भैंस चराने वाली कौम को इतना भी ऊंचा नहीं जाना चाहिए)। सबसे ज्यादा 15 फीसदी से थोड़ा उपर यादवों को सरकारी सेवा में प्रवेश 2009 में मायावती के कार्यकाल में मिला था।
और मुसलमान कौम तो भांटे का पानी है। लौट-लौट कर वही पस्ती के दौर में चली जाती है, यानी दो फीसद भी नहीं।
अफसोस कि दो दशक पहले तक 50 फीसदी से ज्यादा और अब भी अपनी आबादी के कई गुना सरकारी सेवाओं में पहुंचने वालों पर कभी सवाल नहीं।
शायद, पेट से प्रतिभा लेकर आते होंगे।
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