समृद्ध परिवारों के लिए निजी स्कूल स्टेट्स सिंबल होते हैं, वे अपने बच्चों को सिर्फ पढ़ने नहीं भेजते, बल्कि अपने मान-सम्मान और प्रतिष्ठा के लिए निजी स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाते हैं, इसके उलट आम परिवार अपने बच्चों को निजी स्कूलों में सिर्फ इसलिए भेजते हैं कि उनके बच्चे सपने साकार करने में सक्षम हो जायेंगे। आम माता-पिता अपने बच्चे के भविष्य के लिए अभाव ग्रस्त जीवन में थोड़ी सी और कठिनाई झेलने को तैयार हो जाते हैं, ऐसे माता-पिता से एटा हादसे ने सिर्फ बच्चे नहीं छीने हैं, उनके जीवन का सबसे बड़ा सपना भी छीन लिया है।
किसान अपनी फसल की बचत अगली फसल को उगाने के लिए सेविंग के रूप रखता रहा है, लेकिन जब से निजी स्कूलों का चलन बढ़ा है, तब से उस बचत के साथ अन्य तमाम आवश्यक खर्च रोक कर किसान बच्चों का भविष्य संवारने पर खर्च करने लगा है। थोड़ी सी अतिरिक्त बचत होने पर पत्नी को गहने मिल जाते थे, जो अब नहीं मिलते। तिमाही-छमाही पूरे परिवार को कपड़े बन जाते थे, जो अब नहीं बनते। बच्चों को लेकर माँ अक्सर मायके चली जाती थी, पर स्कूल आदेश न दे, तब तक अब माँ अपने मायके तक नहीं जा पाती। संपूर्ण ऊर्जा और संपूर्ण श्रद्धा के साथ बच्चों की दिनचर्या के अनुसार पूरा परिवार जीवन जीने लगा है, लेकिन इन भावनाओं का स्कूल प्रबंधकों के लिए कोई महत्व नहीं है, उनके लिए बच्चे सिर्फ ग्राहक हैं, इसी सोच के चलते बच्चों को डिग्रियां मिल रही हैं, शिक्षा नहीं मिल पा रही, तभी शिक्षा का स्तर बढ़ने के बावजूद आदर्श नागरिकों में कमी आ रही है।
निजी स्कूलों के संचालक भले ही कसाई हो गये हों, पर देश आज भी आस्था और श्रद्धा के साथ जीवन जी रहा है, तभी एटा में दुःखद हादसा होते ही समूचा देश हिल गया। एटा जैसे पिछड़े जिले के ग्रामीण परिवेश में हुई दुर्घटना को भी हर व्यक्ति ने गंभीरता से लिया। जो जहाँ था, वहीं रो पड़ा। हादसे की तस्वीरें तक लोग नहीं देख पा रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घटना को तत्काल संज्ञान में लिया और गहरा दुःख प्रकट किया, इसके बाद गृहमंत्री राजनाथ सिंह, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और सांसद धर्मेन्द्र यादव के साथ हर नेता और अफसर गमगीन हो उठा, सभी ने दुःख प्रकट भी किया।
एटा के हादसे से निजी स्कूलों के संचालकों को सबक लेना चाहिए, उन्हें संकल्प लेना चाहिए कि आज के बाद हर नियम का पालन करेंगे। चालक-परिचालक ट्रेंड रखेंगे। गाड़ियों की स्थिति और स्पीड पर हर दिन नजर रखेंगे। संचालकों को व्यापारिक सोच बदलनी होगी, उन्हें अपने मन में यह बात पहुंचानी होगी कि शिक्षा व्यापार का नहीं, बल्कि सेवा का क्षेत्र है, उन्हें एक परिवार किसी की जिंदगी गढ़ने का दायित्व सौंप रहा है, जिस पर उन्हें खरा उतरना है। सिर्फ फीस पर ही ध्यान रहेगा, तो एक जिंदगी के साथ नहीं, बल्कि वे देश, समाज और संपूर्ण मानवता के साथ यूं ही खिलवाड़ करते रहेंगे।
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